शरीर और मन

शरीर और मन का सामंजस्य

मनोचिकित्सक डॉ. श्याम भट ने एक विशेष साक्षात्कार में शरीर और मन की संगति के महत्व, इंटीग्रल सेल्फ थेरेपी (आईएसटी) और मनोचिकित्सा (साइकेट्री) के क्षेत्र में आगे की राह को स्पष्ट किया है।

कई सूक्ष्म और ठोस मांस, हड्डियों से बने जटिल यंत्र को हर दिन सुचारू रूप से चलता रखना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन 37.2 ट्रिलियन सेल्स और कई अंगों से बना मानवी शरीर जन्म से लेकर मृत्यु तक इस अत्यंत कठिन कार्य को बखूबी पूरा करता है। शरीर इस कठिन काम को मन के तालमेल से एक इकाई के रूप में पूरा करता है। शोध से पता चला है कि मानवी कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए शरीर और मन (Body and Mind) का तालमेल ज़रूरी है। शरीर और मन जुदा नहीं है। एक पर हुए असर को दूसरा अनुभव करता है। शरीर में असंतुलन पैदा होने की जड़ अक्सर मन के असंतुलन में होती है और इसकी उलट स्थिति में भी ऐसा ही होता है।

शरीर और मन की इस अनुकूलता को ध्यान में रखते हुए किसी अच्छी चिकित्सा में शरीर और मन दोनों का विचार किया जाता है। इस संकल्पना को और आगे बढ़ाते हुए बेंगलुरू के डॉ. श्याम भट ने मानसिक विकारों की चिकित्सा के लिए पूर्वी और पश्चिमी दवाओं के समन्वय पर बल दिया है।

‘सोलवेदा’ से एक विशेष साक्षात्कार में डॉ. भट ने एक विशेष साक्षात्कार में शरीर और मन की संगति के महत्व, इंटीग्रल सेल्फ थेरेपी (आईएसटी) और मनोचिकित्सा के क्षेत्र में आगे की राह को स्पष्ट किया है।

तनाव और चिंता इन दिनों आम बात है। पेशेवर मनोचिकित्सक होने के नाते इसे ठीक करने का सही मार्ग बताइए? (Tanav aur chinta in dino aam baat hai. peshevar manochikitsak hone ke nate ise thik karne ka sahi marg bataye)

एंजायटी व डिप्रेशन जटिल अवस्था है। इसमें मस्तिष्क, मन, शरीर, रिश्ते और जीवनशैली का मेल होता है। बेहतर यह है कि इनमें से हरेक पर गौर किया जाए और उसके अनुसार ही इलाज कर संतुलन कायम किया जाए। यदि हालत गंभीर हो और अन्य चिकित्सा का लाभ न हो रहा हो तो हम मस्तिष्क का इलाज करते हैं। हमें समझना होगा कि भावनाओं के हर बदलाव के साथ दिमाग अक्सर रोगी हो जाता है और तब इसका इलाज दवा के जरिए करना होता है।

वेस्टर्न मेडिसिन केवल शारीरिक स्थिति का इलाज करती है। लेकिन समग्रता से सोचने पर समस्या की जड़ तक पहुंचा जा सकता है। क्या इसे आप अधिक स्पष्ट करेंगे?

यह कहना गलत है कि वेस्टर्न मेडिसिन केवल लक्षणों का इलाज करती है। वे तो अंग-प्रत्यंगों की जांच के बाद मूल कारणों का इलाज करती है। इसे मधुमेह का उदाहरण लेकर समझ सकते हैं। मधुमेह का मूल कारण क्या है? एक कारण यह हो सकता है कि पाचक-ग्रंथि यानि अग्नाशय (पैनक्रियाज) में कोई दोष हो, शायद आपके इंसुलिन रिसेप्टर को बदलना पड़े, इंसुलिन के स्तर में परिवर्तन करने की ज़रूरत हो अथवा इंसुलिन के प्रति संवेदना में बदलाव करने की आवश्यकता हो। वेस्टर्न मेडिसिन के कारण हमें मधुमेह के बारे में अपार जानकारी मिली है। हालांकि पूर्वी चिकित्सा प्रणाली इसे अलग ढंग से देखती है।

अच्छी बात यह होगी कि हम दोनों प्रणालियों की दवाओं को जानें, दोनों प्रणालियों की दिशा को समझें और दोनों का सामंजस्यपूर्ण उपयोग करें। पहले यह देखें कि साइंटिफिक, जेनेटिक्स, सेल्युलर और ऑर्गन लेवल पर समस्याओं को जानें। यह भी जानें कि सम्पूर्ण प्रणाली में कहां असंतुलन हो रहा है यही तो पूर्वी चिकित्सा पद्धति है। हमें दोनों के दृष्टिकोणों को समझना होगा।

क्या आप बता सकते हैं कि आप अपने रोगियों का इलाज कैसे करते हैं?

मैं इलाज के लिए मिली-जुली प्रक्रिया अपनाता हूं। इसमें मैं सेल्युलर लेवल पर समस्या को जान लेता हूं और पता करता हूं कि उस अंग की प्रणाली का काम कैसे चल रहा है। पहले तो समझना जरूरी है कि शरीर और मन के विभिन्न अंग किस तरह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और माहौल का उन पर क्या असर पड़ रहा है। मैंने पश्चिमी दवा प्रणाली (वेस्टर्न मेडिसिन) में इंटर्नल मेडिसिन और मनोचिकित्सा के बारे में पढ़ा है। जब आप दो विद्या-शाखाओं में प्रशिक्षित होते हैं तब आप दोनों का समन्वय करते हैं क्योंकि आप जानना शुरू कर देते हैं कि शरीर और मन किस तरह सामंजस्य में काम करते हैं। मिसाल के तौर पर सबसे पहले हमें दवाओं से रोग का इलाज करना होगा और इसके बाद सम्पूर्ण शरीर और मन पर गौर करना होगा।

हम पहले संक्रमण का इलाज करते हैं और बाद में शरीर और मन के संतुलन पर ध्यान देते हैं। पूर्वी चिकित्सा पद्धति के जरिए लक्षणों को देखकर इलाज करते हैं। यही दोनों प्रणालियों का समन्वय है। इस समन्वय का अर्थ है किसी समस्या को अलग-अलग दृष्टिकोणों और अलग-अलग पद्धतियों से जानना।

क्या आप मनशरीर के तालमेल और स्वस्थ होने में उसकी भूमिका को स्पष्ट करेंगे?

मस्तिष्क, शरीर और मन एक इकाई है, जिसे अलग नहीं किया जा सकता। मस्तिष्क में हुए किसी भी बदलाव का असर शरीर पर होता है और शरीर में हुए किसी भी बदलाव का मन और मस्तिष्क पर असर होता है। चिकित्सा करते समय हर हाल में इन सभी पहलुओं पर विचार करना होता है। चाहे इसे आप उच्च रक्तचाप कहें अथवा तथाकथित मनोविकार-अवसाद या चिंता (Depression and Anxiety) कहें। क्योंकि एंग्जायटी केवल मानसिक अवस्था नहीं है, उसका शरीर के हर अंग पर असर पड़ता है। केवल मानसिक या केवल शारीरिक विकार जैसी कोई स्थिति नहीं होती।

इलाज के दौरान किस बिन्दु पर आपको यह महसूस हुआ कि मनोचिकित्सा के प्रति संपूर्णता का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है?

बहुत शुरुआत में ही मैंने यह जान लिया था कि मन और मस्तिष्क को समझे बिना इलाज संभव नहीं है और यथाक्रम ऐसी ही विपरीत स्थिति भी है। इसलिए मैंने ऐसा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम लिया था, जिसमें मैं इंटर्नल मेडिसिन और मनोचिकित्सा (साइकेट्री) दोनों का अध्ययन कर सकूं।

एमबीबीएस के बाद मैंने पाया कि सर्जरी, इंटर्नल मेडिसिन या मनोचिकित्सा में आगे पढ़ाई हो सकती है। लेकिन सबकी एक साथ पढ़ाई नहीं हो सकती। यह बहुत बड़ी समस्या थी। जब मैंने मनोचिकित्सा पढ़ना शुरू किया तब मुझे पता चला कि इंटर्नल मेडिसिन और मनोचिकित्सा (साइकेट्री) का 5 वर्षी्य पाठ्यक्रम है। वहीं दोनों विद्या शाखाओं की उपाधि मिलती है, तब मैंने उसमें प्रवेश ले लिया, क्योंकि मैं दोनों का अध्ययन करना चाहता था।

इस अध्ययन के दौरान और बाद में भी मैंने ध्यान और योग का बरसों तक अध्ययन किया और उसे अपनाया भी। मैंने आयुर्वेद और प्राचीन चीनी दवाओं की जानकारी प्राप्त की। जब मैं अमेरिका में था तब मैंने समन्वय केंद्र स्थापित किया। मैंने चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों को सीखा।

आपने इंटीग्रल सेल्फ थेरेपी अपनाई है। वह क्या है?

इंटीग्रल सेल्फ थेरेपी का मतलब होता है पश्चिमी और पूर्वी मेडिसिन सिस्टम का समन्वय। इस चिकित्सा का लक्ष्य रोगी को अपने ब्रह्मांडीय स्वयं से जोड़ना और उसमें यह भाव जगाना है कि वह महज एक व्यक्ति नहीं पूरे समूह का अंग है। इससे व्यक्ति ‘‘मैं एक व्यक्ति हूं’’ से बदलकर ‘मैं एक ब्रह्मांडीय तत्व हूं और एक व्यक्ति भी हूं। मैं दोनों हूं।’’ यहां तक परिवर्तित हो जाता है। इस बिन्दु पर पहुंचने के लिए हमें दोनों पर गौर करना होगा। दोनों दृष्टिकोणों को अपनाने से व्यक्ति को इससे अधिक अच्छे से जोड़ा जा सकता है।

ऐसा लगता है कि अध्यात्म आपके चिकित्सकीय पेशे का अभिन्न अंग बन चुका है। क्या इस बारे में आप बताएंगे?

जब मैं अध्यात्म की बात करता हूं तब अस्तित्व के प्रश्न उभरते हैं। असल में जो कुछ भी अस्तित्व में है वह अध्यात्म ही है। वहीं जो कुछ अध्यात्म है वह अस्तित्व में है। स्वास्थ्य के बारे में विशेषकर बीमारी की स्थिति में लोग अक्सर आध्यात्मिक-आस्तिक बन जाते हैं।

मैं अपनी चिकित्सा में अस्तित्व के दृष्टिकोण का इस्तेमाल करता हूं। मैं लोगों पर अपनी बातें नहीं लादता बल्कि उन्हें अपना निर्णय स्वयं करने के लिए कहता हूं। मुझे लगता है कि आध्यात्मिक होना स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। अध्यात्म के बिना अच्छा स्वास्थ्य नसीब नहीं हो सकता।

  • साइकेट्री-मनोचिकित्सा (अमेरिकन बोर्ड ऑफ साइकेस्ट्री एंड न्यूरोलॉजी) एवं इंटर्नल मेडिसिन (अमेरिकन बोर्ड ऑफ इंटर्नल मेडिसिन) जैसी दो विद्या शाखाओं का अनूठा समन्वय करने वाले डॉ. भट अमेरिकी बोर्ड से सर्टिफाइड साइकेस्ट्रिक हैं। साइकेस्ट्रिक मेडिसिन में बोर्ड सर्टिफाइड डॉ. भट ने शरीर और मन की संगति पर अध्ययन किया है। इन योग्यताओं के साथ डॉ. भट ने पूर्वी दर्शन और चिकित्सा प्रणालियों का भी गहन अध्ययन किया है।
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