आओ बात करें: बच्चों को उत्पीड़न और उपेक्षा से बचाना

बच्चों को शोषण और नज़रअंदाज़गी से बचा रहा है: आओ बात करें

बच्चों की सुरक्षा के लिए चलाए जा रहे ग्रुप ‘आओ बात करें’ की दीप्ति मिरानी ने हमसे बात की। इस विशेष बातचीत के दौरान हमने उनसे सभी ज़रूरी सवाल किए, जैसे; बच्चों से ‘शोषण पर बात’ कैसे करें?

बच्चों के साथ होने वाले शोषण/उत्पीड़न सबसे घिनौने अपराधों में से एक है। लेकिन समय के साथ-साथ ऐसे अपराध बढ़ते ही जा रहें हैं। यह हम सब को काफी दुखी करता है और चिंता में डाल में देता है कि पेरेंट्स, कानून और बच्चों की सुरक्षा के लिए चल रहे कई ग्रुप की कड़ी निगरानी के बावजूद, बाल शोषण अभी भी आम है। अक्सर समाज में, शोषण को एक टैबू की तरह देखा जाता है, जिसपर पेरेंट्स अपने बच्चों से बात नहीं करना चाहते। ऐसा करने की वजह से बच्चों के मन में डर और कुछ गलत होने की भावना हावी हो जाती है।

‘आओ बात करें’ बच्चों के साथ-साथ, पेरेंट्स से भी बात करता है। जब बात चाइल्ड एब्यूज की आती है तो पेरेंट्स और बच्चों के बीच एक बड़ा गैप नजर आता है, हम इस गैप को भरने की कोशिश कर रहें हैं, ताकि बच्चों का साथ होने वाला शोषण जड़ से खत्म हो। शुरुआत से ही, इस सामाजिक पहल ने कई पेरेंट्स को टैबू से ऊपर उठकर, अपने बच्चों से शोषण के बारे में खुलकर बात करने में मदद की है, ताकि उनके बच्चे सुरक्षित रहें। ‘आओ बात करें’ बच्चों को ऐसे सेंसिटिव मुद्दों पर एजुकेट करता है और उन्हें किसी भी तरह के उत्पीड़न से खुद को बचाने के तरीके सिखाता है। इस शिक्षा से बच्चे सशक्त बनते हैं।

बच्चों की सुरक्षा के लिए चलाए जा रहे ग्रुप ‘आओ बात करें’ की दीप्ति मिरानी ने हमसे बात की। इस विशेष बातचीत के दौरान हमने उनसे सभी जरूरी सवाल किए जैसे : बच्चों से ‘शोषण पर बात’ कैसे करें?

‘आओ बात करें’ के बारे में बताएं?

‘आओ बात करें’, ‘परवरिश एनजीओ’ के द्वारा शुरू की गई एक पहल है जो बड़े स्तर पर बच्चों की सुरक्षा और देखभाल के लिए मानसिक स्वास्थ्य, यौन शोषण और नशीले पदार्थों के सेवन पर एजुकेशल वर्कशॉप का आयोजन करवाती है। ‘आओ बात करें’ की शुरुआत 2018 में हुई थी, तब इस पहल के द्वारा भारत के 40 से अधिक शहरों में वर्कशॉप आयोजित किए गए थे। उस वक्त इस वर्कशॉप ने 1,50,000 से अधिक बच्चों की जिंदगी को प्रभावित किया था। इस पहल में पेरेंट्स और टीचर को, बच्चों से यौन शोषण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बात करने के तरीके सिखाए जाते हैं, जबकि छोटे बच्चों को गुड टच और बैड टच के बीच के अंतर के बारे में बताया जाता है। इसके साथ ही बच्चों को यह भी समझाया जाता है कि उन्हें अपने पेरेंट्स या टीचर से किसी भी चीज के बारे में बात करने में घबराना नहीं चाहिए।

कुछ स्कूल और पेरेंट्स पहल के महत्व को समझते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग इससे डरते और शर्माते हैं।

बच्चे को गुड टच और बैड टच की एजुकेशन देना काफी नया है। शुरुआत में लोगों की प्रतिक्रिया कैसी थी? बच्चों और पेरेंट्स के साथ बातचीत करते समय आपको किस तरह के विरोध का सामना करना पड़ा?

आज के दौर में भी, ऐसी चीजों को लेकर शुरुआत में विरोध ज्यादा ही होता है। कुछ स्कूल और पेरेंट्स पहल के महत्व को समझते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग डरते और शर्माते हैं। ऐसे भी कई लोग हैं जिन्हें लगता है कि अगर वे ऐसे सब्जेक्ट पर अपने बच्चों से बात करेंगे तो उनके बच्चों का दिमाग खराब हो जाएगा।

सरकार के द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार, सभी स्कूलों को यौन शिक्षा पर कम से कम एक क्लास कराना जरूरी है। इस कारण से बच्चे और पेरेंट्स तक पहुंचना आसान हो जाता है। हम दो अलग-अलग क्लास रखते हैं, बच्चों के लिए 90 मिनट की क्लास और पेरेंट्स के लिए 180 मिनट की क्लास। लेकिन, पेरेंट्स की क्लास में काफी मुश्किल आती है। उनकी क्लास में हमारा आधा समय उन्हें यही समझाने में बीत जाता है कि ‘अपने बच्चे के साथ सेक्स और शोषण पर बातचीत करना जरूरी क्यूं है।’ हम इस सब्जेक्ट को लेकर उनके दिमाग में बने टैबू को तोड़ने की कोशिश में ही काफी वक्त गंवा देते हैं।

क्या आप हमें ‘आओ बात करें; के रूटीन सेशन के बारे में बता सकती हैं?

स्कूल में तीसरी से दसवीं क्लास के बच्चों के लिए ‘आओ बात करें’ के सेशन रखे जाते हैं। हर उम्र के बच्चों के ग्रुप से, अलग तरीके से बात की जाती है। क्लास में हम सबसे पहले यह देखते हैं कि बच्चे कम्फर्टेबल रहें। फिर हम उनके दिमाग में पहले से बने गलत आइडिया के बारे में उनसे बात करना शुरू करते हैं।

टीवी पर दिखाए जाने वाले शो के कारण बच्चे अक्सर ये मानते हैं कि शोषण सिर्फ लड़कियों के साथ ही होता है और शोषण करने वालों को बेहद आसानी से पहचाना भी जा सकता है। हम उन्हें यह समझने में मदद करते हैं कि शोषण क्या है?, यह किसी के साथ भी कैसे हो सकता है?, अगर ऐसा हो तो ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए?, और इसकी पहचान करने और इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

हम उन्हें अलग-अलग तरीकों से होने वाले शोषण के बारे में जागरूक करते हैं। हम उनसे अच्छे टच, बुरे टच और असुरक्षित टच के बारे में भी बात करते हैं। हम उन्हें समझाते हैं कि किसी के बैड टच से आपको गलत या अजीब महसूस हो सकता है, लेकिन एक असुरक्षित टच निजी अंगों को पर होता है।

अगले स्टेप में, हम उन्हें सिखाते हैं कि खतरनाक स्थितियों में क्या करना चाहिए? – जैसे चिल्लाना, बार-बार और जोर से ‘नहीं’ कहना, उस इंसान से या जगह से दूर भागना और सुरक्षित इंसान के पास जाना। हम बच्चों के साथ जोर-जोर से चिल्लाते हैं ताकि उन्हें अपनी आवाज में ऊर्जा महसूस हो और वे एक्शन के लिए हमेशा तैयार रहें।

जिस सेशन में हम बातचीत करते हैं, उसमें हम हर बच्चे को एक “सुरक्षित इंसान” की पहचान करने के लिए भी कहते हैं, जिसके पास वे मदद के लिए जा सकते हैं या बात कर सकते हैं। सुरक्षित इंसान यानि कोई ऐसा व्यक्ति जिसपर वे भरोसा कर सकते हैं और उनके साथ सेफ फील करते हैं – जैसे उनके परिवार में से कोई, उनके टीचर, या पब्लिक प्लेस पर एक पुलिस।

‘आओ बात करें’ बच्चों को शोषण के बारे में बात करने के लिए मोटिवेट कैसे करता है? इसमें पेरेंट्स का क्या रोल है?

जवान लोगों की तरह, बच्चे भी कई बार खुद के साथ हुए शोषण का जिम्मेदार खुद को ही मान लेते हैं। उन्हें इस गलतफहमी से बाहर निकालना जरूरी होता है। ज्यादातर शोषण करने वाले, बच्चों की गिल्टी फीलिंग का इस्तेमाल, उन्हें डराने के लिए करते हैं। हम उन्हें समझाते हैं कि यह पीड़ित की गलती नहीं होती है, चाहे अपराधी कुछ भी कहे।

हम जानते हैं कि उनके साथ जो हुआ वह गलत है, लेकिन इससे उन्हें जिंदगी में हार मान लेने की या हमेशा के लिए हताश महसूस करने की जरूरत नहीं है। हम उन्हें बताते हैं कि वे शोषण के बारे में खुलकर बात कर सकते हैं, ऐसा करने से, न तो वे कमजोर दिखेंगे और न ही बेमतलब किसी का ध्यान अपनी ओर खींचेंगे। हम उन्हें प्रोत्साहित करने की पूरी कोशिश करते हैं ताकि वे चुप रहकर सहते या अंदर ही अंदर घुटते न रहें।

जब बच्चा किसी सुरक्षित व्यक्ति को ऐसी घटना के बारे में बताता है, तो आगे की जिम्मेदारी सुरक्षित व्यक्ति (आमतौर पर माता-पिता) की होती है। हम पेरेंट्स को सिखाते हैं कि वे ऐसी घटना को किसी भी हाल में नज़रअंदाज़ न करें। ऐसा घिनौना अपराध करने वाला इंसान चाहे आपका रिश्तेदार, कोई करीबी या दोस्त ही क्यूं न हो, आपको उसके खिलाफ पुलिस में कंप्लेन करनी ही चाहिए। हम पेरेंट्स को शोषण के खिलाफ कंप्लेन न करने के कानूनी परिणाम और लापरवाही के कारण एक बच्चे के इमोशनल डैमेज के बारे में भी बताते हैं।

पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए सबसे बड़े सपोर्ट सिस्टम होते हैं। आपको क्यों लगता है कि इनके रहते ‘आओ बात करें’ जैसी पहल की जरूरत है?

काफी जवान लोग सेक्स और शोषण जैसे टॉपिक पर बात ही नहीं करना चाहते। जब पेरेंट्स बच्चों को ऐसी किसी घटना के बारे में या इससे जुड़ा कोई सवाल पूछने पर, मन से बनाया हुआ या गलत जबाव देते हैं, तो बच्चा इसे एक फ़ैक्ट के रूप में मान लेता है। लेकिन जब बाद में, बच्चे को अपने माता-पिता के झूठ का पता चलता है तो वो दोबारा ऐसे मामलों पर उनसे बात नहीं करना चाहता। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसे लगने लगता है कि पेरेंट्स अगली बार भी गलत जबाव ही देंगे। ‘आओ बात करें’ इस स्थिति को बदल रहा है – जो पेरेंट्स को बच्चों के लिए एक सुरक्षित और खुला वातावरण बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि उनके बच्चे अपने शरीर के बारे में उनसे खुलकर बात कर सके और मन में आने वाले हर सवाल को बिना किसी डर के उनसे पूछ सकें।

अगर आप बच्चों के किसी सवाल पर हंसेंगे, शर्म महसूस करेंगे ये फिर अजीब तरीके से रिएक्ट करेंगे तो बच्चे दोबारा आपसे वो बात कभी शेयर नहीं करेंगे। पेरेंट्स की ये जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चे के हर सवाल को ढंग से सुनें और उनका सही जबाव दें। इसके साथ ही वे बच्चों के मामले में, किसी भी तरह के जजमेंट से दूर रहें। हम पेरेंट्स को सलाह देते हैं कि वे बच्चे की जिज्ञासा को साइंस की तरह समझें, जहां हर सवाल का जवाब फ़ैक्ट और कारणों के साथ देना होता है।

सेशन के बाद, ज्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ यौन-शोषण और प्यूबर्टी के बारे बात करने के लिए मान जाते हैं। ‘आओ बात करें’ मांओं को अपने बेटों से बात करने के लिए और पिता को बेटियों से बात करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। ऐसा करने से बच्चे और पेरेंट्स की बीच की दूरी कम होती है और बच्चे को भरोसा होने लगता है कि वे किसी भी तरह के सवाल को लेकर अपने पेरेंट्स के पास जा सकते हैं या वक्त पड़ने पर उनकी मदद ले सकते हैं।

आप क्या सलाह देती हैं कि किस उम्र में पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ यौन शोषण जैसे सब्जेक्ट पर बात करनी चाहिए?

यह चीज जितनी जल्दी हो, शुरू कर देनी चाहिए, मुमकिन हो तो तब से जब बच्चा महज ढाई साल का हो। वहीं तीन से लेकर सात साल के बच्चों को पर्सनल हाइजीन, गुड टच, बैड टच और अनसेफ टच के बारे बताना चाहिए। इसके साथ बच्चों को यह बताना भी जरूरी है कि जरूरत पड़ने पर शोषण जैसे अपराध के मामले में वे किससे बात कर सकते हैं। हर पेरेंट्स को अपने बच्चों को किसी भी गलत काम के खिलाफ आवाज उठाना सिखाना चाहिए।

पेरेंट्स को आठ साल से ग्यारह साल के उम्र के बच्चों के साथ, प्यूबर्टी और हार्मोनल बदलाव के बारे में बात करनी चाहिए। वहीं जब बच्चे 12 साल की उम्र तक पहुंच जाते हैं, तब पेरेंट्स को उनसे सुरक्षित सेक्स, एसटीडी और प्रजनन के बारे में भी बातचीत शुरू कर देनी चाहिए।

माता-पिता किस तरह बच्चे के साथ हुए शोषण के बारे में जान सकते हैं?

बच्चों के शरीर और उनके व्यवहार को देखकर, पेरेंट्स और टीचर बच्चों के साथ हुए संभावित शोषण की पहचान कर सकते हैं।

अगर किसी बच्चे ने अचानक पढ़ाई में खराब परर्फॉर्म करना शुरू कर दिया है, चुप-चुप सा रहने लगा है, लोगों से मिलना नहीं चाहता या किसी खास दोस्त या रिश्तेदार के घर जाने से मना कर रहा है, तो ये सभी संकेत शोषण की ओर इशारा कर सकते हैं। इसके अलावा, पोर्नोग्राफी की लत, खुद को गलत तरीके से छूना, एडल्ट कॉन्टेन्ट को देखने की उत्सुकता होना और यौन व्यवहार में नजर आने वाले असामान्य बदलाव भी, शोषण के संकेत हो सकते हैं, जिनपर पेरेंट्स को खास ध्यान देना चाहिए।

वहीं कुछ बच्चों में शोषण के संकेत – चिंता, डिप्रेशन या शरीर पर खरोंच के निशान के रूप में दिख सकते हैं। बच्चा अगर बार-बार बुरे सपने देख रहा है या बिस्तर गीला कर रहा है तो यह भी शोषण की ओर इशारा कर सकता है। पेरेंट्स को हर वक्त अपने बच्चे के व्यवहार पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। अगर वे इस तरह के संकेत देखते हैं तो उन्हें बच्चे से बात कर के यह कन्फर्म करना चाहिए कि उनके साथ शोषण हुआ है या नहीं, या फिर कोई और बात उन्हें परेशान कर रही है।

पेरेंट्स के लिए आपका क्या मेसेज है?

हर 15 मिनट में, भारत देश में एक बच्चे का यौन शोषण होता है और शोषण का शिकार होने वाले 94.8 परसेंट बच्चे अपने अपराधियों को जानते हैं।

हमारे देश में बच्चों के साथ होने वाला यौन शोषण आम है। लेकिन, हमें इस घिनौने अपराध से हर बच्चे को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप ऐसा चाहते हैं तो सबसे पहले यह आपके घर में एक टैबू नहीं होना चाहिए, बल्कि इस पर खुलकर बात की जानी चाहिए। घर का माहौल खुला रखें, ताकि बच्चे आपके साथ बिना डरे सब कुछ शेयर करें। यह पहल आज से ही शुरू करें। अभी भी देर नहीं हुई है। आप अपने बच्चे के साथ बात करना कैसे शुरू कर सकते हैं, ऑनलाइन आपको इस पर बहुत सारी जानकारी मिल सकती है। इसके अलावा आप किसी स्पेशलिस्ट से मिल सकते हैं या फिर ‘आओ बात करें’ जैसे वर्कशॉप में भाग ले सकते हैं।

  • दीप्ति मिरानी

    प्रोजेक्ट हेड, ‘आओ बात करें’

    दीप्ति मिरानी ‘आओ बात करें’ पहल की प्रोजेक्ट हेड हैं। बच्चे और पेरेंट्स के लिए आयोजित किए जाने वाले सेमिनार में वो सक्रिय रूप से भाग लेती हैं, ताकि सही उम्र में बच्चों के साथ शोषण जैसे मुद्दों पर बात करने के लिए पेरेंट्स को जागरूक किया जा सके। उन्होंने ‘बचा रहे बचपन’ कैंपेन को भी रेडियो के ज़रिए भारत में प्रसारित किया और कई घरों में सफलतापूर्वक बातचीत शुरू की।
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