बहुरूपिया, इम्पोस्टर सिंड्रोम

‘इम्पोस्टर सिंड्रोम’ क्या है और इससे कैसे निपटें?

‘इम्पोस्टर सिंड्रोम’ के लक्षण क्या हैं? यहां हम आपको कुछ ऐसे उपाय सुझा रहे हैं, जिनका उपयोग कर आप ‘इम्पोस्टर सिंड्रोम’ से बच सकते हैं। इस लक्षण का शिकार होते ही आप स्वयं को ठग, धोखेबाज़ समझते हैं, जो हर किसी से मुंह छुपाते घूमता है। आप थकावट महसूस करते हैं और अन्य सभी आपको औसत समझने लगते हैं।

‘मैं असफल हूं’।

‘मैं खुशकिस्मत हूं’।

‘मुझे लगता है कि मैं ठग हूं’।

यदि आपके भी मन में उपरोक्त विचार आते हैं तो संभव है कि आप ‘इम्पोस्टर सिंड्रोम’ का शिकार हैं। हर वह व्यक्ति जिसे लगता है कि वह बेहतर नहीं है और उन्हें जो कुछ भी मिला है वह उनकी अच्छी किस्मत का परिणाम है, इस लक्षण का शिकार है। इस लक्षण को मनोचिकित्सक इम्पोस्टर फिनामिना (बहुरूपिया संवृत्ति) भी कहते हैं। जर्नल ऑफ बिहेवियरल साइंस में प्रकाशित एक शोध के अनुसार 70 फीसदी लोग अपने जीवन में कभी न कभी इम्पोस्टर सिंड्रोम व बहुरूपिया संवृत्ति (Impersonation syndrome) का शिकार होते हैं।

मनोचिकित्सक पॉलीन रोस क्लांस एवं सुजैन इम्स ने सबसे पहली बार इम्पोस्टर सिंड्रोम पर शोध प्रकाशित किया था। उस वक्त उनका मानना था कि केवल महिलाएं ही इसका शिकार होती हैं। लेकिन बाद में पाया गया कि बहुरूपिया संवृत्ति के लक्षण पुरुषों में भी देखे जाते हैं।

बहुरूपिया संवृत्ति के लक्षण का शिकार होते ही आप स्वयं को ठग, धोखेबाज़ समझते हैं जो हर किसी से मुंह छुपाते घूमता है। आप थकावट महसूस करते हैं और अन्य सभी आपको औसत समझने लगते हैं। आप अपनी उपलब्धियों और खुद पर ही सवालिया निशान लगाने लग जाते हैं। आप यह मानने लगते हैं कि आप सफलता के हकदार नहीं हैं, क्योंकि आपने इसे अर्जित नहीं किया है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इम्पोस्टर सिंड्रोम के विषय में विख्यात डॉ. वैलेरी यंग ने अपनी किताब ‘द सीक्रेट ऑफ सक्सेसफुल वूमेन : व्हाय केपेबल पीपुल सफर फ्रॉम इम्पोस्टर सिंड्रोम एंड हाउ तो थ्राइव इनस्पाइट ऑफ इट’ में इसका शिकार होने वाले लोगों को 5 समूह में विभाजित किया है।

द परफेक्शनिस्ट : यह ऐसे लोग होते हैं जो हर बात में सटीकता चाहते हैं और हर बात में श्रेष्ठ गुणवत्ता की तलाश करते हैं। यदि परिणाम उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं होते हैं तो वे इस बात के लिए खुद को ही दोषी मानते हैं। वे यह भी नहीं सोचते कि यह परिणाम हासिल करने के लिए उन्होंने कितनी कड़ी मेहनत की थी।

एकलवादी ( सोलोइस्ट) : इस समूह में आने वाले लोग हर काम को अकेले ही करना चाहते हैं। वे हर काम को करने की अपनी क्षमताओं को लेकर गर्व महसूस करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि यदि वह किसी काम में किसी से सहायता मांगेंगे तो यह जैसे कोई अपराध हो जाएगा। किसी से सहयोग लेने की बात सोचकर ही वह खुद को घटिया और असक्षम महसूस करते हैं।

विशेषज्ञ ( एक्सपर्ट): इस समूह में वो लोग होते हैं जो विशेषज्ञ की तरह काम करते हैं। वे अपने काम की सभी जरूरी जानकारी और आंकड़े जुटा लेते हैं। वे कोई भी काम उस वक्त तक शुरू नहीं करते जब तक उन्होंने अपने काम को पूरी तरह समझ न लिया हो या उसे लेकर संपूर्ण जानकारी उनके पास में उपलब्ध न हो। अगर वे संपूर्ण जानकारी के बिना ऐसा कर लेते हैं तो वे समझते हैं कि वे कोई ढोंगी हैं जिसे अपने काम के बारे में सारी जानकारी नहीं है।

बुद्धिमान ( नैचुरल जीनियस): इस समूह में बचपन से ही अभूतपूर्व प्रतिभा के धनी बच्चों को रखा गया है, जिन्हें बचपन से ही सारी बातें प्राकृतिक रूप से आती हैं। वे अन्य बच्चों की तरह कोई भी काम करने के लिए मशक्कत नहीं करते क्योंकि वे जन्मजात प्रतिभाशाली होते हैं। लेकिन जब उनके सामने ऐसी कोई चुनौती पेश आती है, जिससे वे निपट नहीं सकते तो वे खुद को अर्थहीन समझकर अवसाद के शिकार हो जाते हैं।

सुपर हीरो: इस समूह के लोग हर सप्ताह लंबे समय तक कड़ी मेहनत करते हैं। वे जीवन में पीछे नहीं रहना चाहते और इसके लिए लगातार मेहनत करते जाते हैं। उनका मानना होता है कि अगर वह मेहनत नहीं करेंगे तो उन्हें असक्षम समझा जाएगा।

अगर आप उपरोक्त श्रेणी में से किसी भी श्रेणी में आते हैं तो आप इम्पोस्टर सिंड्रोम  का शिकार हैं। यहां हम आपको कुछ उपाय सुझा रहे हैं, जिनका उपयोग करते हुए आप बहुरूपिया संवृत्ति का मुकाबला कर सकते हैं।

भावनाओं को स्वीकार करें (Bhavnao ko swikar karen)

बहुरूपिया संवृत्ति से बचाव के लिए आपको यह बात स्वीकार करनी होगी। आपको यह बात समझनी होगी कि जो बात आप अनुभव कर रहे हैं वह हकीकत है ना कि कोई कल्पना। बहुरूपिया संवृत्ति के लक्षण आपमें दिखाई देने के कई कारण हो सकते हैं। इसमें आपकी परवरिश का तरीका, हालात और आपके आसपास का माहौल शामिल है। इसमें से एक बात भी आपकी क्षमताओं और कार्यक्षमता का आकलन नहीं कर सकती। मसलन यदि आप किसी काम में विफल रहे हैं और खुद को इम्पोस्टर महसूस कर रहे हैं तो हिचकिचाहट के बगैर इस बात को स्वीकार करें और खुद से कहें कि कभी-कभी ऐसा सभी के साथ होता है। खुद को संभालें और दोबारा शुरुआत करें। विफलता स्थाई नहीं होती। विफलता के पीछे-पीछे ही सफलता चलती है। बस आपको सकारात्मक बने रहना है।

समीक्षा हासिल करें (Samiksha hasil karen)

बहुरूपिया संवृत्ति से बचाव के लिए यदि आपको लगता है कि आपने किसी काम में अपनी संपूर्ण शक्ति नहीं लगाई है तो खुद को सज़ा न दें। अपने किसी नज़दीकी मित्र अथवा प्रबंधक से बात कर उससे अपने काम की समीक्षा करने को कहें और उसे हासिल करें। खुद को निराशाजनक विचारों से दूर रखते हुए उनकी सलाह पर ध्यान देकर अपने काम में सुधार करें। अपने कार्य को दूसरों की नज़रों से देखने के बाद आपको एक नई सोच पर काम करने का मौका मिलेगा। इससे आपको यह भी पता चलेगा कि आप कहां सही काम नहीं कर सके और आपको क्या सुधार करना है। ऐसा करने से आप अपना काम पूर्ण करने की नई नीति निर्धारित कर सकेंगे।

तुलना बंद करें (Tulna band kren)

किसी अन्य से तुलना करते ही आप अपने आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को खोने लगते हैं। जितना ज्यादा आप अपनी तुलना दूसरों से करेंगे उतना ही ज्यादा आप खुद की दया के पात्र बनते चले जाएंगे। बहुरूपिया संवृत्ति से बचने के लिए आपको अगर तुलना ही करनी है तो खुद से करें। ऐसा करके ही आप अपना विकास कर सकेंगे। खुद के विकास में वक्त लगता है। ऐसे में संयम बनाए रखें। ऐसा करते हुए आप अपने में पनप रहे बहुरूपिया संवृत्ति को दूर रखने में सफल होंगे।

विफलता को स्वीकार करें (Vifalta ko swikar karen)

सफलता पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने कभी न कभी विफलता देखी है। लेकिन उन्होंने विफलताओं को आगे बढ़ने से रोकने का अवसर नहीं दिया। जब भी आपको विफलता के भय से ऐसा लगे कि आप बहुरूपिया हैं तो तुरंत ऐसे लोगों से प्रेरणा लें, जिन्होंने विफलता के बावजूद आगे जाकर सफलता अर्जित की। अल्बर्ट आइंस्टीन से लेकर बिल गेट्स तक ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने आरंभिक जीवन में विफलता के बाद सफलता के झंडे सारी दुनिया में गाड़े थे। आपका मूल्य इस बात से तय नहीं होता कि आप कितनी बार विफल रहे हैं, बल्कि यह बात तय करती है कि आपने कितनी बार गिरने के बाद दोबारा उठने की कोशिश की है।

किसी दोस्त या उपदेशक से बात करें (Kisi dost ya updeshak se baat kare)

अपनी कमजोरी दूसरे को बताना आसान नहीं होता लेकिन ऐसा करने पर आप बहुरूपिया संवृत्ति को दूर भगाने में सफलता पा सकते हैं। यदि आपको इम्पोस्टर फिलिंग हो रही है तो आपको अपने मित्र या उपदेशक से बात करनी चाहिए। उनके साथ अपनी समस्या पर चर्चा करने से आपका मन हल्का होगा और आप खुद को सहज करने की दिशा में अहम कदम उठा सकेंगे। वे क्या सलाह दे रहे हैं इस पर ध्यान दें। उनकी सलाह से आप अपने मन के नकारात्मक विचार को समाप्त कर खुद में सकारात्मक विचार और आत्मविश्वास का संचार कर सकेंगे। ऐसा करने पर आप सही सोच और समझ के साथ जीवन में आगे बढ़ने को तैयार होंगे।

खुद के प्रति सहृदय रहें (Khud ke prati sahirday rahen)

सारा दिन कड़ी मेहनत करने के बाद खुद के प्रति सहृदय होना न भूलें। यहां सहृदय होने का मतलब यह है कि आप खुद को दिन में किए गए काम को थकावट से समय पर पूरा न करने के लिए अथवा सही ढंग से न करने के लिए क्षमा करें। गलती हर किसी से होती है। आप जिनका सम्मान और आदर करते हैं उनसे भी गलती होती है। कहते हैं ना कि गलती इंसान से ही होती है। ऐसे में जब भी आप नकारात्मक विचारों से थकान महसूस करें तो खुद से बात कर सकारात्मक विचार मन में लाएं। बहुरूपिया संवृत्ति से उबरने के लिए खुद से कहें कि क्या हुआ जो आज मैं यह काम सही ढंग से नहीं कर पाया, मैं कल फिर से कोशिश कर सफलता हासिल कर लूंगा।

सहायता लें (Sahayata len)

यदि आपने यह समझ लिया है कि आपको बहुरूपिया संवृत्ति ने घेर लिया है तो इस बात को स्वीकार करें। ऐसा करते ही आप आधी जंग जीत जाते हैं। अब अगला कदम उठाने की आश्यकता है जहां आप इससे निपटने के लिए सहायता लेना तय करते हैं। अगर आप सहायता लेने में देरी करेंगे तो आप इस अंधेरे कुएं में धंसते चले जाएंगे, जहां से खुद के दम पर निकलना आसान नहीं होगा। ऐसे हालात में आपको किसी पेशेवर विशेषज्ञ की सहायता लेनी चाहिए। आत्मसम्मान और आत्मविश्वास के क्षेत्र में काम करने वाले किसी पेशेवर सलाहकार से बात करने से आप अपनी इम्पोस्टर सिंड्रोम व बहुरूपिया संवृत्ति से जुड़ी समस्या का हल निकाल सकते हैं।

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