नज़र मिलते ही हम तुम्हारे हो गए

नज़र मिलते ही हम तुम्हारे हो गए

शादियों का सीज़न चल रहा था, ऐसे में घर में भी रिलेटिव्स के कई कार्ड आए थे। इस दिन घर में दो अलग-अलग जगहों से निमंत्रण कार्ड मिला था। लेकिन मेरा मन शादी में जाने का नहीं कर रहा था, बल्कि घर पर ही मूवी देखने का मन था... जानिए राहुल की कहानी, जो न चाहते हुए भी दूर के रिश्तेदार की शादी में तो गया, लेकिन वहां अपना दिल छोड़ आया।

राहुल मुंबई में मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था, छुट्टियों में अपने घर देहरादून आया था। सर्दियों का दिन था और लगन का भी, ऐसे में घर के आसपास शादियों के गीत सुनाई दे रहे थे। अचानक से राहुल की मम्मी ने कहा, राहुल… राहुल, सुनता क्यों नहीं, तुझसे ही कह रही हूं। कांधे पर थपकी देते हुए मां ने कहा… ईयरफोन निकाल और ध्यान से सुन। गुप्ता जी के बेटे की शादी है, तो वहां चले जाना और हम रत्ना आंटी की बेटी की शादी में जा रहे हैं, तो रिश्तेदारों को निराश करना सही नहीं है, ऐसे में ये ले गिफ्ट के पैसे और कुछ अच्छा सा क्रॉकरी का सामान पैक कराते हुए वहां चले जाना।

मैं बोलना चाहता था कि मम्मी मुझे वहां नहीं जाना, लेकिन मम्मी सुनने के मूड में ही नहीं थी। मुझे अंजान लोगों की शादी में जाना बिल्कुल पसंद नहीं है, वो भी तब जब आपको अकेले जाना पड़े। मैं तो शाम में अवतार फिल्म देखना चाहता था और मम्मी ने मेरे सारे प्लान पर पानी ही फेर दिया।

खैर, शाम में मैंने भी स्कूटी उठाई और चल दिया, मेरा प्लान पहले से ही सेट था, वहां 10 मिनट से ज्यादा नहीं रुकूंगा, गिफ्ट देकर चलता बनूंगा और बहुत दिनों से हनुमान चौक के पास की जलेबी और समोसे नहीं खाए थे, तो वही खाउंगा। मम्मी ने जो पैसे दिए थे, उससे उनके लिए गिफ्ट पैक करवाया और चला गया शादी की पार्टी में। पता नहीं क्यों मम्मी भी मुझे बेगाने की शादी में अब्दुला दिवाना बनाने पर तुली थी।

शादी की पार्टी में बचपन से जो देखता आया था सब वही का वही था, पता है छोटे शहरों में कुछ नहीं बदलता, बदलते हैं तो लोग जो जवां से बुड्ढे होते जाते हैं, खुली सड़कें संकरी होती जाती हैं, पेड़ों के जंगल कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते जाते हैं। खैर, मैं शादी पार्टी में अब इंट्री कर चुका था, यहां बच्चे हुडदंग मचाते हुए छुपम-छुपाई खेल रहे थे, वहीं औरतें और लड़कियां शादी के गीत गुनगुना रही थीं। वहीं एक ओर हल्वाई वाला अपने साथियों को डांटते दिख रहा था, बोल रहा था, मुझे आधे घंटे में सारा सामान रेडी चाहिए। नज़र घुमाई तो देखा वहां कुछ कुर्सियां लगी हुई थी, मैं भी वहां जाकर बैठ गया और यहां-वहां देखने के साथ कुछ देर में मोबाइल भी चला लेता। कुछ देर रुकने के बाद अब मन नहीं लग रहा था, मैंने सोचा गिफ्ट देकर चलता बनता हूं। स्टेज पर चढ़ा दूल्हे-दुल्हन को कॉन्ग्रेचुलेशन बोलकर गिफ्ट थमाया और फोटोग्राफर के सामने फेक हंसी दिखा और फोटो खींचाकर मैं स्टेज से नीचे उतर गया। स्टेज की सीढ़ियों से उतर ही रहा था कि लड़कियों के झुंड में से किसी एक ने मुझे टक्कर मार दी और मैं गिर गया। इतने में वहां आसपास खड़े लोग मुझे देख हंसने भी लगे।

अब तक तो मुझे और गुस्सा आ रहा था। सो मैं उठा और इस पार्टी से निकल जाना चाहता था बस, वहीं मन ही मन में मैं बड़बड़ा रहा था, कैसी लड़कियां हैं, इन्हें तमीज़ भी नहीं है, धक्का देने के बाद सॉरी तो छोड़ो उठाने भी कोई नहीं आया।

मैं अपने खराब मूड के साथ बाहर की ओर निकल पड़ा, इतने में मेरे कांधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ, मैं पीछे मुड़ा तो देखा ये वही लाल लहंगे वाली लड़की है, जिसने मुझे गिराया था। लेकिन, उसको देखते ही मैं मानो खो सा गया.. उसने अपने दोनों हाथों से कान को पकड़ कर कहा “सॉरी”… वो मेरी सहेलिया उन्होंने मुझे धक्का दे दिया और मैंने आपको, हीहीही…। अबतक तो मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, मैं तो बस उसे एक टक देखे ही जा रहा था। इतना बोलने के साथ ही वो भागी-भागी चली गई। फिर क्या था, मेरा खराब मूड उस लड़की की मुस्कान को देखते ही अच्छे मूड में बदल चुका था। अब तो मैं उसका नाम जाने बगैर जाने वाला नहीं था। मुझे खुद ही समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कुछ पल पहले बाहर जाने वाला था अब मैं यही रुकना चाहता था।

फिर क्या था मैं वापस जहां कुर्सियां लगी थी, वहां जाकर बैठ गया ताकि एक टक उस लड़की को फिर देख सकूं और उसका नाम पूछ सकूं। वहीं जो वेटर मेरे आसपास से गुजरते उनसे जूस और स्टाटर लेकर मैं खाने भी लगा। फिर कुछ देर बाद वो दोस्तों के साथ में खाने के स्टॉल पर मुझे दिखी, मैं भी वहां चल गया। यहां हम दोनों की नज़रें फिर मिली और मैंने ही बात करने की पहल की, पहला सवाल मैंने ही पूछ लिया, अच्छा आप किसकी तरफ से हैं?… लड़के या लड़की पक्ष …. मैं अपनी बात पूरी कर पाता उससे पहले ही उसकी हाजिर जवाबी ने मुझे शर्मिंदा कर दिया, उसने कहा, क्यों… मुझसे शादी करनी है?… मैं शर्म के मारे पानी-पानी हो गया और प्लेट में जितना खाना लिया था उसे लेकर एक टेबल पर अकेले ही चला गया। ठीक हुआ मेरा मूड अब फिर खराब हो गया था, मैं अंदर ही अंदर खुद को कोस रहा था, मैं भी कितना बेवकूफ हूं। अच्छा भला घर जा रहा था, रुक गया। इतने में वो मेरे पास आई और बैठ गई, मुझसे पूछने लगी, क्यों खाना टेस्टी नहीं है या आप किसी बात से खफा हैं?… इसबार मैंने जवाब नहीं देते हुए अपना मुंह दूसरी ओर फेर लिया। उसने फिर कहा, ठीक है… सॉरी वन्स अगेन। अब मैं भी नहीं चाहता था कि वहां से वो जाए, मैंने टक से कह दिया, वो मैं तो बस तुम्हारा नाम जानना चाहता था। लड़की बोली, अच्छा तो ये बात है। इतनी आसानी से जवाब नहीं मिलेगा… उसके पास बैठे-बैठे कब मिनट घंटे में बदल गए मुझे पता नहीं चला। शायद हम दोनों को एक-दूसरे की कंपनी अच्छी लगने लगी थी, उससे बात कर पता चला कि वो भी शादी में नहीं आना चाहती थी, वो तो अपने दोस्त को कंपनी देने के लिए आ गई थी। देखते ही देखते रात के 10 बज चुके थे। मैंने पूछा घर नहीं जाना है आपको, आप कहें तो मैं ड्रॉप कर दूं। उसने कहा, मेरा नाम आप नहीं “श्रेया” है… और मेरा घर पास ही में है, तो चिंता मत कीजिए मैं चली जाउंगी। वो पल भर की दोस्ती इतनी लंबी चलेगी, मैंने भी ये कभी सपने में नहीं सोचा था, आज भी जब मैं इसके बारे में सोचता हूं… तो यकीन ही नहीं होता कि ये मेरे साथ हुआ था।

आप इस बात को यकीन नहीं करेंगे, लेकिन नज़र मिलते ही हम तुम्हारे हो गए, आज उस वाक्ये को 15 साल हो गए हैं। श्रेया अब मेरी पत्नी है और हम मुंबई में साथ ही रहते हैं, मैं जब भी उदास या मेरा मूड ऑफ होता है उसे देखते ही मैं ठीक हो जाता हूं और हां… आज भी मैं मम्मी की बात कभी नहीं टालता।

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