नियति

उसकी नियति

शायद मेरी किस्मत ही कुछ ऐसी है, यह सोचते हुए दिशा ने अपनी नीले रंग की साड़ी पहनी और निराश होकर सीढ़ियों से नीचे चली गई।

अभी तक तुम तैयार नहीं हुई”, सुनीता दिशा को ट्राउजर में देखकर आश्चयचकित रह गई।” अपनी बुक बंद करो और तुरंत तैयार हो जाओ”, सुनीता ने थोड़ा गुस्सा जाहिर करते हुए अपनी बेटी से कहा।

“लेकिन मां, मुझे अभी अपनी परीक्षा की तैयारी करनी है,” दिशा ने अपनी मां को जवाब दिया।

“मुझे मालूम है, लेकिन यह काम भी बहुत ज़रूरी है। अब तुम जल्दी तैयार होकर नीचे आ जाओ, सुनीता यह कहकर कमरे से बाहर चली गई।”

अभी दिशा महज 23 साल की हुई थी कि उसकी मां चाहती थी जल्द से जल्द उसकी शादी हो जाए। दिशा इसको लेकर जब भी अपनी मां से कुछ कहती, तो वह बोल पड़ती- यह शादी का सही समय है। अब कब तक तुम इंतजार कराना चाहती हो?

शायद मेरी नियति (Destiny) में यही लिखा है, दिशा यह बात सोचते-सोचते अपनी नीले रंग की साड़ी पहनी और निराश होकर सीढ़ियों से नीचे चली गई। नीचे उसने देखा कि उसकी हमउम्र का ही एक युवक काली शर्ट और खाकी पैंट पहने उसके माता-पिता के पास सोफे पर चुपचाप बैठा हुआ है।

दिशा वहां पहुंचकर अपने पिता जी के बगल में बैठ गई। उसके पिता जी ने होने वाले दूल्हे के परिवार वालों से उसका परिचय कराया। परिचय के बाद दोनों ने आपस में कुछ देर तक बात की। इसके बाद दोनों गार्डन की तरफ चले गए, जिससे खुलकर वे दोनों आपस में बात कर सकें।

चलते-चलते ही युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा, “हाय… मेरा नाम सूर्या है।”

दिशा ने बड़े ही उत्सुकतापूर्वक उसे देखा और बोली-“हाय… तो आप क्या काम करते हैं? “

“मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं। हाल ही में मुझे नौकरी मिली है। लेकिन, ज्वाइनिंग से पहले ही मेरे पिता जी ने तुरंत वापस बुला लिया। अब जाकर पता चला कि क्या बात थी”, इतना कहकर सूर्या हंस पड़ा।

“क्या मैं एक और बात पूछ सकती हूं?”, दिशा ने माहौल बदलने की कोशिश करते हुए बोली।

हां… ज़रूर। उसने बड़े ही शालीनता से जवाब दिया।

“आपको किस टाइप की लड़की पसंद है?”, दिशा ने पूछा।

“ईमानदारी से कहूं, तो मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं है”, वह चलते-चलते थोड़ी देर के लिए रुक गया और दिशा की ओर देखा। “मुझे अभी शादी करने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन मेरे माता-पिता ने दबाव डाला तो मैं यहां आ गया।”

“सच में? दरअसल, मैं भी ऐसा ही सोचती हूं। मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, लेकिन मेरे माता-पिता नहीं चाहते कि मैं और पढ़ाई करूं”, दिशा ने एक लंबी सांस लेते हुए बोली।

“शायद, इस मामले में मैं आपकी मदद कर सकता हूं। मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरी होने वाली जीवनसंगिनी को शादी की वजह से अपने सपनों की कुर्बानी देनी पड़े”, सूर्या ने दिशा की ओर देखा और मुस्कुराने लगा।

इस तरह दोनों आपस में अच्छी तरह घुल-मिल गए और अपने सपनों और इच्छाओं के बारे में एक-दूसरे से खूब सारी बातें शेयर की।

इसके बाद जब जाने की बारी आई तो सूर्या ने दिशा से कहा, “आपसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा। क्या हम दोनों दोस्त बन सकते हैं?

हां.. बिल्कुल, दिशा ने बड़े ही उत्साहपूर्वक जवाब दिया।

ज्यों ही दोनों ने एक-दूसरे का मोबाइल नंबर शेयर किया तो दिशा और सूर्या ने एक-दूसरे की आंखों में देखा और मुस्कुरा उठे।

दिशा सोचते हुए खुद से बोली-शायद मेरी नियति इतनी भी खराब नहीं है। इसके बाद दोबारा मिलने की एक चाह के साथ उसने सूर्या को गुडबाय कहा।

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