वृद्ध दिवस: बुढ़ापे में छिपा उनका बचपन हम संवार सकते हैं

समय भी कितना अजीब होता है। बच्चों को बड़ा कर देता है और मां-बाप को बूढ़ा करके फिर बच्चे जैसा कर देता है। कहते हैं बुढ़ापे में दिल फिर बच्चे जैसा हो जाता है। जिन्होंने अपने बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा किया, आगे चलकर वो उन्हीं बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं।

मुझे कभी अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहने का मौका नहीं मिला, पर मैंने अपने माँ- पापा को बूढ़े होते हुए देखा है। मेरी सुंदर-सी माँ के चेहरे पर आती झुर्रियों ने कई बार मेरे दिल में बेचैनी पैदा की है। मैंने पापा के सिर पर बचे हुए बालों को सफेद होते देखा है और उनको घुटनों के दर्द के कारण उन्हें छड़ी के सहारे चलते देख, मैं परेशान हो उठती हूं।

समय भी कितना अजीब होता है। बच्चों को बड़ा कर देता है और मां-बाप को बूढ़ा करके फिर बच्चे जैसा कर देता है। कहते हैं बुढ़ापे में दिल फिर बच्चे जैसा हो जाता है। जिन्होंने अपने बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा किया, आगे चलकर वो उन्हीं बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं।

बच्चे बड़े होकर खुद को समझदार समझने लगते हैं और माता-पिता की बातों को महत्व देना कम कर देते हैं। इस बात का एहसास भले ही हम बच्चों को नहीं होता पर अंजाने में ही हम उनके दिल को ठेस पहुंचा देते हैं।

बढ़ती उम्र के साथ उनकी आदतें ज़िद्दी बच्चों जैसी होने लगती हैं। जैसे कभी किसी एक काम को जब तक करवा न लें तब तक उन्हें आराम नहीं मिलता या कभी दवाई न खाने की ज़िद करने लगते हैं। ऐसे में कई बार हमें उन्हें डांटना भी पड़ जाता है और जिससे उनके दिल को ठेस पहुंचती है।

हम चाहें तो अपने घरों के उम्रदराज़ लोगों में छिपा उनका बचपन संवार सकते हैं। हमें उनकी उम्र और दिमागी स्थिति को समझने की कोशिश करनी चाहिए। जब हम छोटे थे और कुछ बोल भी नहीं पाते थे, तब वो बिना बोले ही हमारी हर बात समझ जाया करते थे। तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? मां-बाप का बच्चों की तरह ख्याल रखना भी तो हमारी ज़िम्मेदारी है।

उनको कभी यह एहसास न होने दें कि आपको अब उनकी ज़रूरत नहीं है। वो हमेशा हमारे प्यार और स्नेह के भूखे होते हैं। उनको हमारे साथ की ज़रूरत होती है। अगर हम अपने बिज़ी वक्त में से थोड़ा समय निकाल कर उन्हें दे देते हैं, तो उनके चेहरे पर खुशी छा जाती है।

हम उम्मीद करते हैं कि इस बार आप भी वृद्ध लोगों के भीतर छिपी उनकी मासूमियत को देख और समझ पाएंगे। आइए बुजुर्गों के लिए खासतौर पर बने एक खास दिन के बारे में जानते हैं जो है अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस।

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस कब है? (Antarrashtriye vridhjan divas kab hai?)

अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस हर साल 1 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसको मनाने का उद्देश्य, समाज में वृद्ध लोगों के अधिकारों और महत्व को बनाए रखना है। यह नीति मानती है कि बुजुर्गों की भलाई के लिए एक निश्चित कार्यक्रम की ज़रूरत है। इसलिए हमें बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा करनी है।

हमें सुनिश्चित करना है कि उन्हें विकास के फायदों में सही अवसर और बराबर का हिस्सा मिले। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले वृद्ध लोगों के लिए इन कार्यक्रमों और प्रशासनिक गतिविधियों का और भी ज़्यादा ध्यान रखना ज़रूरी है। वृद्ध महिलाओं पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि वो लिंग भेद और उम्र के आधार पर अपमान और भेद-भाव न झेलें।

विश्व वृद्ध दिवस का इतिहास (History of International Day for the Elderly)

14 दिसंबर, 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में स्थापित करने के लिए मतदान किया, जैसा कि संकल्प 45/106 में दर्ज है। 1 अक्टूबर 1991 को पहली बार छुट्टी मनाई गई।

समाज में उम्रदराज़ लोगों का भी उतना ही महत्व है जितना कि युवाओं का। हालांकि, हम कहीं न कहीं युवा कौशल के आगे वृद्धजनों को अनदेखा करने लगे हैं। इसकी भरपाई करने के लिए एक दिन वृद्ध दिवस के रूप में बुजुर्ग लोगों को सौंप दिया गया है।

भारत में वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य,सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार 1999 में बुजुर्गों के लिए राष्ट्रीय नीति लेकर आई। इस नीति में 60 वर्ष तथा उससे ऊपर के व्यक्ति को वरिष्ठ नागरिक माना गया है।

इस वृद्ध दिवस पर आप भी अपने घर में रहने वाले या फिर आपके आस-पास रहने वाले वृद्ध लोगों के अंदर छिपे बचपन को देख सकते हैं। अगर आप उनके अंदर के बच्चे को ज़रा भी खुश कर पाएं तो आपके लिए ये दिन सफल होगा।

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