वरिष्ठ नागरिक दिवस: समाज में बुजुर्गों का होना क्यों है युवाओं के लिए भी अच्छा

बुजुर्गों को सम्मान देने के लिए हरेक साल वरिष्ठ नागरिक दिवस (Senior Citizens Day) मनाया जाता है। इस दिन को खूबसूरत बनाने के लिए आप अपने घर में रहने वाले माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य बुजुर्गों के साथ वक्त बिताएं।

बुजुर्ग समाज और संस्कृति की रीढ़ की हड्डी हैं। इनको सम्मान देने ओर इनकी सेवा करने से हमें सही मार्गदर्शन तो मिलता ही है, साथ ही आशीर्वाद भी मिलता है। इनका आदर करना हमारा कर्तव्य ही नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी भी है। ऐसा माना जाता है कि बुजुर्गों का साया जिस घर पर होता है, वहां पॉजिटिव वाइब्स (positive vibes) बनी रहती हैं।

बुजुर्गों को सम्मान देने के लिए हरेक साल वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। इस दिन को खूबसूरत बनाने के लिए आप अपने घर में रहने वाले बुजुर्ग माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य बुजुर्गों के साथ वक्त बिताएं। उनके साथ बैठें, उन्हें बोलने दें, उनके जीवन के किस्से सुनें, उनके अनुभवों से सीखें, उनके बताई गई बातों पर अमल करें। इसके अलावा उन्हें ढ़ेर सारा प्यार दें।

आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि वरिष्ठ नागरिक दिवस (Senior Citizens Day) मनाने की शुरुआत कब हुई और समाज में बुजुर्गों का होना युवाओं के लिए क्यों ज़रूरी है।

कैसे हुई सीनियर सिटीजन डे मनाने की शुरुआत? (Kaise huyi senior citizen day manane ki shuruaat?)

साल 1988 में अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन (President Ronald Reagan) ने सबसे पहले वरिष्ठ नागरिक दिवस का प्रस्ताव रखा। उन्होंने औपचारिक रूप से इस दिवस को मनाने की घोषणा पर, 19 अगस्त 1988 को हस्ताक्षर किए थे। इसके दो साल के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने 14 दिसंबर 1990 में इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी। वरिष्ठ नागरिक दिवस एक ऐसा दिन है, जिस दिन पूरी दुनिया बुजुर्गों के सम्मान में एक साथ खड़ी होती है।

वरिष्ठ नागरिक दिवस की खास बातें (Varishth naagarik divas ki khas baate)

इस दिन वरिष्ठ नागरिकों से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा की जाती है। उनके अनुभवों को सभी के साथ साझा किया जाता है और उनकी समस्याओं के समाधान को लेकर सोच-विचार किए जाते हैं। यह दिन युवाओं को बुजुर्गों की सेवा, उनकी उपलब्धि और परिवार और देश के प्रति उनके समर्पण के लिए, उनकी सराहना करने का भी अवसर देता है।

भारत में बुजुर्गों को मानते हैं भगवान (Bharat mein bujurgon ko mante hain bhagvaan)

पूरी दुनिया में बुजुर्गों की समस्याओं का समाधान करने के लिए और उनके जीवन को सही दिशा देने के लिए, अलग-अलग तरह से प्रयास किए जा रहे हैं।

भारत में बुजुर्गों को ‘भगवान का रूप’ माना जाता है। भारत के इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि युवाओं ने किस तरह से अपने बुजुर्गों का सम्मान किया। रामायण में, माता-पिता की आज्ञा से भगवान श्रीराम राजपाट छोड़कर जंगलों में रहने चले गए। श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बिठा कर चारधाम की यात्रा कराई। श्री गणेश ने अपने माता-पिता की प्रक्रिमा को संसार की प्रक्रिमा माना।

इसके अलावा विदेश के भी कई लोगों ने विश्व-भर के बुजुर्गों का हौसला बढ़ाया है और युवाओं का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित किया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जेम्स गारफील्ड ने कहा था कि यदि वृद्धावस्था (old age) में चेहरे पर झुर्रियां पड़ती हैं, तो उन्हें हृदय पर मत पड़ने दो। कभी भी आत्मा को वृद्ध मत होने दो।

वरिष्ठ नागरिक को देना चाहिए सम्मान (Varishth naagarik ko dena chahiye sammaan)

समाज के बुजुर्गों को हमें सम्मान देना चाहिए। उनका हमारे समाज में बहुमूल्य योगदान है। बुजुर्गों की उपेक्षा करने का सीधा मतलब है कि हम जीवन में अलग-अलग तरह के ज्ञान और अनुभवों से दूर रहना चाहते हैं। वरिष्ठ नागरिक दिवस को उन सभी युवाओं के लिए एक जागरूकता दिवस समझा जा सकता है, जो हर दिन अपने बड़ों की मदद और सम्मान करने की आवश्यकता महसूस करते हैं।

बुजुर्गों की ज़िंदगी को बारीकी से समझना युवाओं के लिए ज़रूरी है ताकि युवा पीढ़ी यह महसूस कर सके कि बुढ़ापा कितना अकेला और कमजोर हो सकता है। आज हम किसी के बुढ़ापे में उनके साथ रहेंगे तो कल हमारे बुढ़ापे में कोई हमारे साथ रहेगा। युवा बुजुर्गों के लिए सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम कर सकते हैं।

बुजुर्गों ने ही हमें अपने पैरों पर किया है खड़ा (Bujurgon ne hi hame apane pairo par kiya hai khada)

युवाओं को बुजुर्गों का सम्मान इसलिए भी करना चाहिए, क्योंकि वो हम पर बोझ नहीं हैं। आज हम जो भी हैं, वो अपने बुजुर्गों की वजह से ही हैं। उन्होंने हमें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जितने प्रयास किए, उसका कर्ज़ हम कभी चुका नहीं सकते हैं। बुजुर्गों का हाथ जब तक हमारे सिर पर रहता है, हम जीवन में सहज महसूस करते हैं और खुशी-खुशी सारी परेशानियों का हल निकाल लेते हैं।

वृद्धावस्था जीवन का एक ऐसा पड़ाव होता है, जहां ज़्यादतर न तो कोई बोलने वाला होता है और न ही कोई सुनने वाला। वहीं, युवाओं की ज़िंदगी तेज़ रफ्तार से चल रही होती है। ऐसे में घर के बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार होते हैं। इसलिए इस वरिष्ठ नागरिक दिवस पर आप कुछ हसीन पल अपने घर और आस-पास के बुजुर्गों के साथ बिताएं। इससे बुजुर्गों के जीवन का अकेलापन दूर होगा और उनके जीवन को भी एक नया रंग मिलेगा। इसी तरह के पॉजिटिव वाइब्स वाले आर्टिकल पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी पर।

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