अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस

अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस: इंसानों से कितना अलग है पशुओं का अधिकार?

जहां देश तरक्की के शिखर पर है। जहां हर व्यक्ति अपने समान अधिकारों के लिए लड़ कर तरक्की की ऊंचाइयों को छू रहा है, वहीं जानवरों के अधिकारों के बारे में क्या हम कभी सोचते हैं?

आज से नहीं सदियों से ही जानवरों को पालने का चलन है। लोग अपने घरों में दूध के लिए गाय, बकरी, भैंस और काम के लिए बैल, गधे, घोड़े, ऊंट, खच्चर आदि को पालते हैं, और शौकिया तौर पर कुत्ता, बिल्ली, मुर्गी, खरगोश, तोता और कबूतरों को पालते हैं। मानव ने हमेशा से उन बेजुबानों पर अपना अधिकार समझा है।

जानवरों की खरीद बेच हमेशा ही जारी रहती है। उचित दाम पर एक व्यक्ति किसी दूसरे से जानवर को खरीद लेता है और उसका स्वामी बन जाता है। स्वामी बनने के बाद उस बेजुबान से अपने मतलब के लिए जैसा चाहे वैसा काम लेता है। दूध व्यापारी, गायों और भैंसों को ज़्यादा दूध देने के लिए मजबूर करते हैं और जब वो दूध देना बंद कर देती है, तो उन्हें मांस व्यापारियों को बेच देते हैं। इससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मानव अपने स्वार्थ में कितना अंधा हो चुका है कि उसे जंतु-जानवर अपने भोग और ज्रूरतें पूरी करने का सामान लगते हैं।

जहां देश तरक्की के शिखर पर है। जहां हर व्यक्ति अपने समान अधिकारों के लिए लड़ कर तरक्की की ऊंचाइयों को छू रहा है, वहीं जानवरों के अधिकारों के बारे में क्या हम कभी सोचते हैं? पक्षी खुले आसमानों के लिए होते हैं, न कि लोहे की कुछ सलाखों में कैद करने के लिए। गाय-भैंस बकरी हरे-भरे मैदानों के लिए होते हैं न कि अस्तबलों में जबरन सुबह-शाम दूध देने के लिए।

किसी खेत में कड़ी धूप में एक भारी भरकम हल खींचते हुए बैल को भी उतनी ही तकलीफ होती है, जितनी एक व्यक्ति को कोई भारी सामान उठाने में होती है। जानवर हमसे अलग नहीं है, उसमें भी हमारी तरह ही भावनाएं होती है। उन्हें भी मानव की तरह ही भूख, प्यास, दर्द, खुशी, अपनापन महसूस होता है।

वे भी हमारी तरह इस पृथ्वी पर स्वतंत्रता से जीने के लिए आज़ाद हैं और इस प्रकृति के पूरे अधिकारी हैं। जब हम अपने ऊपर किसी का अधिकार नहीं चाहते तो हम फिर हम जानवरों के अधिकारों के बारे में क्यों नहीं सोचते?

हमें उनकी तरफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए अपनी तरफ से कुछ कदम उठाने पड़ेंगे और उनके अधिकारों को हर व्यक्ति तक पहुंचना होगा ताकि लोग जन्तुओं को किसी सामान की तरह नहीं बल्कि एक जीते-जागते जीव की तरह देखें और उनके दर्द और तकलीफ को समझ सकें।

अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस कब मनाया जाता है? (Antarrashtriye pashu adhikar divas kab manaya jata hai?)

अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस पूरे विश्व में 10 दिसंबर को मनाया जाता है। ये इंसानों के अत्याचार के शिकार जानवरों को याद करने और उनकी सुरक्षा के लिए यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ एनिमल राइट्स (UDAR) की मान्यता के लिए मनाया जाता है। ये कार्यक्रम हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के साथ ही मनाया जाता है, क्योंकि अनकेज्ड (पशु अधिकार समूह जिसने 1998 में कार्यक्रम शुरू किया था) ने जानबूझकर पशु और मानव अधिकारों के बीच संबंध को उजागर करने के लिए दोनों को एक ही दिन मनाने के बारे में सोचा ताकि लोग इस बात को समझ सकें कि मानव अधिकार और पशु अधिकार में ज़्यादा अंतर नहीं है।

क्या है पशु अधिकार? (Kya hai pashu adhikar?)

पशुओं के कल्याण और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए हमें पशुओं के अधिकारों को समझना बहुत ज़रूरी है। कई लोग बेजुबानों के प्रति बहुत बुरा व्यवहार करते हैं। जंतुओं से जबरदस्ती काम करवाते है उन्हें दूध देने के लिए मजबूर करते हैं, और यहां तक कि उनका शारीरिक शोषण करने से भी नहीं हिचकिचाते। इसलिए ऐसे लोगों को ये बताना काफी ज़रूरी है कि हमारा जीवन काफी हद तक पशु-पक्षियों पर निर्भर करता है और उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमें पशुओं को खुद से जुदा समझने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वो बहुत हद तक हमारे जैसे ही प्राणी हैं। पशुओं को भी स्ट्रेस होता है, दुख होता है और हमारी तरह खुशी भी होती है।

हमें अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस मनाने की ज़रूरत क्यों है? (Hmein antarrashtriye pashu adhikar divas manane ki zarurat kyon hai?)

पशु संवेदना कानून औपचारिक रूप से उस बात को मान्यता देते हैं जिसकी विज्ञान पहले से ही पुष्टि करता है कि हमारी तरह, जानवर भी खुशी और दुख जैसी भावनाओं को महसूस करते हैं। ये कानून हमारे जानवरों को देखने के नज़रिये को बदल देते हैं। जहां एक तरफ मानव को अपने विचारों को खुल कर व्यक्त करने और अपनी मन-मर्ज़ी का काम करने की आज़ादी है, वहीं जानवरों को क्यों किसी वस्तु की तरह देखा जाता है? हम ये क्यों भूल जाते हैं कि किसी छोटे सूक्ष्म जीव से लेकर बड़े से बड़े जंतु तक सबका इस प्रकृति पर बराबर का अधिकार है।

हम जानते हैं कि हमारे समाज में ज़्यादतर अन्य जानवरों के भले के लिए बहुत कम या कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। उनको हर तरह से शोषित किया जाता है और जब वो दुर्घटना या बीमारी के शिकार होते हैं तो उन्हें शायद ही कभी मदद मिलती है। वे प्रजातिवाद के शिकार हैं, वो भेदभाव जिसमें जानवर इंसानों से पीड़ित हैं। ठीक उसी तरह जैसे इंसानों के समूह अन्य प्रकार के भेदभाव के शिकार हैं, जैसे कि नस्लवाद, लिंगवाद, या होमोफोबिया। इंसानों की तरह, जानवरों में भी अपने साथ होने वाली घटनाओं से पीड़ित होने और प्रभावित होने की क्षमता होती है। इसलिए, उन्हें नैतिक और कानूनी दोनों तरह से अपने अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता है और इसीलिए हमें अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस मनाने की ज़रूरत है।

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