महिला समानता दिवस: अपने अधिकारों के लिए समाज से कैसे लड़ीं महिलाएं

औरतें पूरी तरह से पुरुषों पर निर्भर थीं। उन्हें न घर के फैसलों में बोलने की आज़ादी थी और न ही राज्य के फैसलों में। यही कारण था कि उन्हें वोट देने तक की स्वतंत्रता नहीं थी। इसी खराब स्थिति को देखते हुए अमेरिकी महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।

हम एक पुरुष प्रधान देश में रहते हैं। यहां पुरुषों को न केवल घर का मुखिया माना जाता था, बल्कि उसी के आदेशों का पालन पूरे घर को करना पड़ता था। ऐसा केवल भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी होता था। औरतें पूरी तरह से पुरुषों पर निर्भर थीं। उन्हें न घर के फैसलों में बोलने की आज़ादी थी और न ही राज्य के फैसलों में। यही कारण था कि उन्हें वोट देने तक की स्वतंत्रता नहीं थी। इसी खराब स्थिति को देखते हुए अमेरिकी महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई

अमेरिका में सिर्फ महिलाओं ने वोट देने का अधिकार ही नहीं मांगा था बल्कि विवाहित महिलाओं ने संपत्ति के अधिकार की मांग भी शुरू कर दी थी। अधिकारों की मांग को लेकर चले आंदोलन का अंत 26 अगस्त 1971 के दिन वोटिंग का अधिकार मिलने के साथ हुआ।

भारत में महिलाओं को वोट करने का अधिकार ब्रिटिश शासन काल में ही मिल गया था। पहले अमेरिका और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 26 अगस्त को महिला समानता दिवस मनाया जाने लगा।

महिला समानता दिवस कब मनाया जाता है? (Mahila samanta divas kab manaya jata hai?)

महिला समानता दिवस हर साल 26 अगस्त को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 1920 के बाद से हुई।

महिलाओं की लंबी लड़ाई का परिणाम है महिला समानता दिवस (Mahilaon ki lambi ladai ka parinam hai samanta divas)

महिला समानता दिवस अमेरिकी महिलाओं द्वारा उनके अधिकारों के लिए उठाए गये कदम का परिणाम है। तभी से हर साल 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। यह तारीख 1920 के उस दिन की याद में चुनी गई, जब राज्य सचिव बैनब्रिज कोल्बी ने अमेरिकी महिलाओं को वोट देने का संवैधानिक अधिकार देने वाली उद्घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे।

1970 और 1971 में समानता के लिए राष्ट्रव्यापी महिला हड़ताल के बाद, फिर जब 1973 में समान अधिकार संशोधन पर लड़ाई जारी रही, तो न्यूयॉर्क की कांग्रेस महिला बेला अबज़ग ने 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में नामित करने का एक प्रस्ताव पेश किया। जिस पर सरकार ने मंज़ूरी दे दी। इसके बाद महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिलने के साथ ही ये लड़ाई खत्म हुई। तब से आज तक ज़्यादातर देशों में हर महिला को समान अधिकार प्राप्त हैं।

अपने अधिकारों के लिए समाज से कैसे लड़ीं महिलाएं? (Apne adhikar ke liye samaj se kaise ladi mahilayein?)

महिलाओं को हमेशा से अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ा है। फिर चाहे वो लड़ाई घरवालों से हो या समाज या फिर सरकार से, पर उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। हालांकि, पुराने समय के मुकाबले परिस्थितियां काफी बदली हैं, जब औरतों को पुरुष की पैर की जूती समझा जाता था। आज औरतें हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रहीं हैं और अपने काम में अपना कौशल बटोर रही हैं। हालांकि, यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने एक लंबी लड़ाई लड़ी है, तब जाकर उन्हें समान अधिकार प्राप्त हुए हैं।

तो चलिए देश की ऐसी ही कुछ बहादुर महिलाओं के बारे में जानते हैं: 

द्रौपदी मुर्मू ने दिखाई हिम्मत

भारत के सर्वोच्च पद पर एक महिला आसीन है। यहां बात हो रही है देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की। महिला समानता की सबसे बड़ी मिसाल इन दिनों भारत में द्रौपदी मुर्मू को माना जा सकता है। वह देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्षों से भरा रहा। तीन बच्चों के निधन के बाद पति को खोने का गम सहने वाली द्रौपदी मुर्मू ने परिस्थितियों के सामने हार नहीं मानी, बल्कि देश सेवा में अपना जीवन लगा दिया। राष्ट्र निर्माण के लिए पहले पायदान पर कार्य करते हुए वह राष्ट्रपति पद की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का ज़ज़्बा

भारत सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज देश की सबसे दमदार महिला राजनीतिज्ञों में शामिल हैं। भारत ही नहीं विदेशों तक सीतारमण का नाम मशहूर है। भारत के लगभग हर घर में महिलाओं को मितव्ययिता (किफायत से चलना) सिखाई जाती है। इस गुण से नारी घर चलाती है तो वहीं देश भी चलाती है, इस बात को निर्मला सीतारमण ने साबित किया। निर्मला सीतारमण देश की पहली पूर्णकालिक वित्त मंत्री हैं, जिन्हें मोदी सरकार में पद मिला। वह लगातार देश की वित्त मामलों को संभाल रही हैं। इसके पहले वह देश की रक्षा मंत्री भी रह चुकी हैं।  

फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिवांगी सिंह कर रहीं हैं देश की रक्षा

देश की रक्षा की ज़िम्मेदारी केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। भारत की बेटियों ने सेना में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाते हुए महिला समानता का बड़ा उदाहरण पेश किया है। पिछले साल भारतीय वायुसेना के बेड़े में राफेल शामिल हुआ। इस दमदार लड़ाकू विमान को उड़ाने वाली पहली महिला पायलट बनने का श्रेय शिवांगी सिंह को जाता है। इसके पहले फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिवांगी सिंह मिग-21 की उड़ान भी भर चुकी हैं।

आईपीएस संजुक्ता पराशर हैं लेडी सिंघम

सीमा की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी में महिलाओं की स्थिति मजबूत हो रही है। देश के अंदर कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए महिलाएं हर साल आईपीएस की भर्ती में शामिल होती हैं। कई महिला आईपीएस देश के अलग-अलग जिलों में कार्यरत हैं। इन्हीं में से एक हैं आईपीएस संजुक्ता पराशर। असम में पोस्टेड आईपीएस संजुक्ता को ‘लेडी सिंघम’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने महज़15 महीनों में 16 एनकाउंटर कर के पुलिस विभाग के लिए रिकॉर्ड सेट कर दिया। संजुक्ता पराशर को असम के लोग ‘आयरन लेडी ऑफ असम’ भी कहते हैं।
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