पेड़ों को बचाना

आने वाले कल के लिए जानवरों को बचाएं

उन वन्यजीव कार्यकर्ताओं और संरक्षकों से मिलिए , जिन्होंने इस बात की जानकारी दी है कि जंगल में रहने वाले जानवरों को बचाने जैसे नेक काम करने के दौरान कौन-सी चीज़ें उन्हें प्रेरित करती हैं।

वाइल्ड हार्ट वाइल्डलाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पॉल ऑक्सटन ने एक बार कहा था, “अगर प्रकृति के बीच रह रहे जंगली जीवों के प्रति जबतक आपके भीतर ढेरों प्यार, दया और लगाव नहीं रहेगा, तब तक आप सच्चा सुख हासिल नहीं कर पाएंगे”। वर्ष 1969 में जॉन रेंडल और एंथोनी बर्क लंदन के एक डिपार्टमेंटल स्टोर से एक पालतू शेर का शावक खरीद कर अपने घर लाए। उन्होंने शावक का नाम ‘क्रिश्चियन’ रखा। लेकिन, कुछ दिन बाद ही वन्यजीव संरक्षणवादी जॉर्ज एडमसन की मदद से वे उस शावक को अफ्रीका के जंगल में छोड़ आए। एक साल बाद रेंडल और बर्क ने जंगल में ‘क्रिश्चियन’ को देखने का फैसला किया। जंगल में यात्रा के दौरान जब ‘क्रिश्चियन’ की नज़र रेंडल और बर्क दंपती पर पड़ी, तो वह खुशी के मारे उनके ऊपर कूद पड़ा और अपने तरीके से प्यार जताने लगा। रेंडल और बर्क दंपती को शायद इसकी उम्मीद भी नहीं थी। इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि शेर के शावक ने न सिर्फ मालिक को पहचाना, बल्कि गर्व के साथ उन लोगों के साथ घुला-मिला। जानवर होने के बावजूद दोनों लोगों को उसने स्वीकार भी किया।

इस दृश्य को देखने के बाद इसमें कोई हैरान करने वाली बात नहीं होगी, अगर मनुष्य और जानवर के बीच इस सुंदर मुलाकात का वीडियो ऑनलाइन वायरल हो जाए। जंगली जानवर और इंसान के बीच इस तरह की बॉन्डिंग हमने कितनी बार देखी होगी? रेंडल और बर्क की तरह बताने के लिए शायद ही हमारे पास कोई ऐसी अविश्वसनीय कहानी होगी। जबकि, हमलोगों में से बहुत सारे ऐसे वन्य संरक्षक, लेखक और फोटोग्राफर हैं जो जंगली जीवों की गतिविधियों को काफी बारीकी से महसूस करते हैं।

कुछ लोगों के लिए जंगली जीवों के साथ रिश्ता सिर्फ एक शौक हो सकता है, जबकि वन्य जीव संरक्षक छोटे-बड़े जंगली जानवरों को बचाने के लिए अपना पूरा जीवन ही समर्पित कर देते हैं। इन कामों को करने के बाद उन्हें भी काफी सुखद अनुभूति होती है। जंगली जानवरों को बचाना कोई आसान काम नहीं है। एक वन्य संरक्षक की भूमिका निभाने के लिए काफी धैर्य की ज़रूरत पड़ती है। कभी-कभी यह काफी थका देने वाला लगता है। कई बार निराशाजनक स्थिति से भी गुज़रना पड़ सकता है। काम का अधिक बोझ, व्यापक रिसर्च, कई साल तक चलने वाले अंतहीन प्रोजेक्ट और घर से लंबे समय तक दूर रहने से कुछ लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल भरा काम लग सकता है। लेकिन, एक पेशेवर वन्य संरक्षक अच्छी तरह जानता है कि वन्यजीवों की देखभाल करना उसके लिए एक दीर्घकालिक लक्ष्य है। इसका नतीजा सामने आने में कभी-कभी कई वर्ष लग सकते हैं। शशांक दलवी की कहानी भी कुछ इसी तरह का एक जीता-जागता उदाहरण है।

वर्ष 2012 में शशांक और अन्य वन्यजीव संरक्षकों व और जीव विज्ञानियों की एक टीम नागालैंड के दोयांग जलाशय की तरफ गई। उन लोगों को पता चला था कि कुछ स्थानीय लोग जलाशय के आसपास अमूर फाल्कन जैसी विदेशी पक्षियों का शिकार करते हैं। उनकी टीम इन अफवाहों की सच्चाई की पड़ताल करना चाहती थी। जांच के दौरान टीम को चौंकाने वाली जानकारी मिली। शशांक बताते हैं- “हर साल इन विदेशी पक्षियों के प्रवास की अवधि के 10 से 12 दिनों में ही स्थानीय लोग एक लाख से अधिक अमूर फाल्कन का शिकार कर देते हैं। इसके बाद वर्ष 2013 में टीम के सदस्यों ने इको कैंप लगाकर स्थानीय लोगों को पर्यावरण व वन्य जीव संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान चलाया। नतीजा यह हुआ कि इसके बाद से अब तक लोगों ने एक ही अमूर फाल्कन पक्षी का शिकार नहीं किया है”। वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में इस उपलब्धि से एक अच्छा अनुभव मिला। ऐसे प्रोजेक्ट जंगली जानवरों को बचाने को लेकर किए जाने वाले कामों के लिए हमें अंदर से प्रोत्साहित भी करते हैं।

अक्सर जब भी हम शशांक जैसे वन्य जीव संरक्षकों के पर्यावरण के क्षेत्र में इस तरह के अभियान को देखते हैं, तो हम लोग ऐसे कामों पर ‘लेकिन’ का थपा लगा देते है जैसे कि इस नेक काम के बदले उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। लेकिन, सच्चाई यह है कि हम सभी लोग ऐसी पारिस्थिति तंत्र का एक हिस्सा हैं। यह और बात है कि हम लोग इसे देख या महसूस नहीं कर पाते हैं। यह तंत्र हमारे जीवन के साथ विभिन्न रूपों में बड़ी गहराई से जुड़ा है।

वन्य संरक्षक गेरी मार्टिन का कहना ​​​​है कि पेड़ों को बचाना हमारे बारे में उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि हम लोग उन जंगली जानवरों को बचाने के लिए उनके जीवन की रक्षा करते हैं। ‘द गेरी मार्टिन प्रोजेक्ट’ का उद्देश्य भी अधिक से अधिक लोगों को वाइल्ड लाइफ बारे में जागरूक करना है कि वन्यजीव और मानव का एक-दूसरे के साथ कैसे आपसी संबंध हैं।

गेरी का कहना है कि मैं सिर्फ इन वन्यजीवों के संरक्षण ही नहीं, बल्कि उनकी दुनिया के बीच भी रहना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि एक स्वस्थ वातावरण निर्माण हो। मैं अपने तालू पर प्रदूषित हवा या ज़हर के बारे में सोचकर परेशान होना नहीं चाहता हूं। वन्यजीवों का संरक्षण में ही मेरा आस्तित्व है, क्योंकि यह मनुष्य के जीवन-मरण के लिए भी चिंता का विषय है। गेरी के लिए जंगली जानवरों को बचाने का मतलब है, उस इकोलॉजी तंत्र को बनाए रखने में मदद करना है, जिसका हम सभी हिस्सा हैं। यहीं कारण है कि जो वह काम करता है उसमें उसका प्यार भी रहता है।

कुछ लोगों के लिए प्राकृतिक वादियों और उसमें रह रहे वन्य जीवों को कैमरे में कैद करना एक शौक भर हो सकता है। जबकि एक वन्य जीव संरक्षक उन जीवों को बचाने के साथ वाइल्डलाइफ फोटाग्राफर और लेखकों की मदद करता है, ताकि उनका काम भी लोगों को दिख सके।

प्रकृति के साथ किसी वन्य जीव संरक्षक के बिताए पलों और उसके अनुभवों को लोगों के बीच साझा करने से दुनिया को पता चलता है कि हमारी ज़िंदगी में इन वन्यजीव का इतना महत्व क्यों है। क्योंकि, एक वन्य संरक्षक हम लोगों की तुलना में उन जीवों से काफी गहराई से जुड़ा होता है। इस तरह वे वन्य जीवों को कैमरे में कैद कर अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश करते हैं।

बचपन में अक्सर बिजॉय वेणुगोपाल जंगल की उन कहानियों को सुनकर काफी लुत्फ उठाते थे, जब उनकी मां और दादी उन्हें सुनाया करती थीं। उन्होंने गेराल्ड ड्यूरेल, जिम कॉर्बेट और केनेथ एंडरसन के बारे में बहुत कुछ पढ़ रखा है। जब वे बड़े होकर ट्रैवल राइटर बने तो उनकी लेखनी में भी वन्यजीवों के प्रति उनका खास लगाव स्पष्ट तौर पर उभर कर सामने आ जाता है। आज एक वन्य संरक्षक के रूप में काम करते हुए वे न सिर्फ जंगलों में, बल्कि अपने आसपास के इलाकों में भी वन्यजीवों को खोजने की कोशिश करते रहते हैं।

बिजॉय के मुताबिक हमारे आसपास चारों ओर वन्य जीवन मौजूद है, हमें सिर्फ और सिर्फ अपनी आंखें खोलकर रखने की ज़रूरत है। वे कहते हैं कि वाइल्डलाइफ का मतलब केवल जंगल और उसमें रहने वाले जानवर ही नहीं होते हैं, बल्कि मेरे लिए शहर की इकोलॉजी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। मैं अपने आसपास के प्राकृतिक माहौल का खूब आनंद लेता हूं, जैसे- मेरी घर की बालकनी में कोई छोटा-सा कीड़ा ही क्यों न हो। खुशी की तलाश सिर्फ एक जंगली जानवरों की पहचान करने में नहीं है, बल्कि यह समझने में है कि हम रोजाना वन्यजीवों के साथ अपनी जगह को कितना साझा करते हैं व जानवरों को बचाने से है।

शशांक, गेरी और बिजॉय के अनुभवों से एक बात तो समझ में आ गई है कि हमारा जीवन हर स्तर से उन वन्य जीवों के साथ जुड़ा हुआ है। चाहे वह कोई छोटा कीट-पतंगा हो, कोई दुर्लभ तितली हो, पालतू बिल्ली हो या पहाड़ी शेर, सुनहरी मछली या समुद्री व्हेलर शार्क, कबूतर या दुर्लभ मैगपाई हो। इस धरती पर हर जीव बड़े ही संतुलित ढंग से रह रहा है। इस संतुलन को बनाना अब हमारी ज़िम्मेदारी है और जिन लोगों को इन वन्य जीवों से लगाव है वे इसे हासिल करने की भी कोशिश करते हैं। इस धरती पर रहने वाले सभी जीवों को जीने का हक है। शशांक, गेरी व बिजॉय जैसे वन्य जीव प्रेमी उनके इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए अपने जीवन का एक लक्ष्य बना लेते हैं।

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