हिंदी कविता, कविता लिखने का तरीका

भाषाएं कविता में जान फूंक देती हैं

इस खास इंटरव्यू में, डबलिन की कवयित्री फियोना बोल्गर ने अपने पोयम, अलग-अलग भाषाओं के प्रति प्यार और चेन्नई के बारे में जिक्र किया है। बताया कि चेन्नई का उनके कवयित्री बनने के सफर में काफी खास योगदान है।

ब्रिटिश कवि डब्ल्यूएच ऑडेन ने एक बार यह कहा था कि “किसी अन्य चीज़ से पहले एक कवि, एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे भाषाओं से काफी लगाव व मोहब्बत होती है।” यह बात डबलिन की कवयित्री फियोना बोल्गर के बारे में बिल्कुल सच साबित होती है। उनकी कविताएं भाषाओं के प्रति उनके हिंदी कविता (Hindi Poem) प्रेम को दर्शाती है।

बोल्गर का जन्म आयरिश में हुआ था, उन्होंने चेन्नई के साथ भारत के कई राज्यों में एक लंबा वक्त बिताया है। उन्होंने भारत में रहने के दौरान जिन भाषाओं को सुना, उन्हें अपनी कविता में उतारती चली गईं। अपनी कविता वर्ड्स टू ए न्यू वाइफ एंटरिंग हर किचन में बोल्गर ने मंजल, जीरा और लेवांग जैसे तमिल शब्दों का इस्तेमाल किया है। इसी कविता में उन्होंने हिंदी शब्द घुसा का भी बखूबी प्रयोग किया है। ये विदेशी भाषा के शब्द बोल्गर की कविताओं को बेहतरीन बनाते हैं, साथ ही विभिन्न भाषाओं की बारीक समझ के प्रति उनके लगाव के बारे में भी बताते हैं।

बोल्गर के अनुसार लैंग्वेज सबसे कीमती तोहफा है, जिसे हम अपनी आने वाली जेनरेशन को देते हैं। सोलवेदा के साथ इस विशेष साक्षात्कार में बोल्गर ने कई पहलुओं के बारे में बात की, जैसे- कविता, हिंदी कविता (Hindi Kavita), भाषाओं के प्रति लगाव और कैसे भारत के चेन्नई ने उनके कवि बनने में अहम भूमिका निभाई।

एक कवयित्रि के नाते चेन्नई में अपने सफर के बारे में बताएं?

चेन्नई में रहने के दौरान, मैंने कई कविताएं लिखीं, जो उतनी गंभीरता से नहीं सृजित थी। हालांकि, आयरलैंड लौटने पर मुझे एहसास हुआ कि चेन्नई ने मुझे कई मायनों में कवि बना दिया है। मैंने भारत में एक मां बनकर जीवन बिताया है। अपने 30 के दशक में आयरलैंड लौटकर मैंने फोकस होते हुए लिखना शुरू किया। मुझे अपने जीवन को समेटने का एक तरीका मिला और चेन्नई उसका एक बड़ा हिस्सा था और है। मैं खुद को कविताओं में स्थानों के बीच होने के रूप में वर्णित करती हूं। मैं आज जो भी कर रही हूं, वह कविता लिखने की कोशिश भर है जो उन लोगों के अनुभवों को उस जगह पर होने का अनुभव कराते हैं।

कविता द मिडिल ऑफ अप्रैल में आपने तमिल शब्दों करम व वेल्लम का प्रयोग किया है। इसके पीछे की प्रेरणा क्या है?

जब मैं यह कविता लिख ​​रही थीं, इस वक्त मेरे ज़ेहन में हरे आम और उसके खट्टेपन या यूं कह लें कि दांतों के खट्टेपन का स्वाद चल रहा था। मैंने आयरलैंड में कभी हरा आम नहीं खाया था! जिसे मैंने पहली बार तिरुवन्मियोर के समुद्र तट पर चखा था। आप उस चटपटे पाउडर के बारे में कैसे बताएंगे जिसे हरे आम के टुकड़ों पर छिड़का जाता है? मैं कविता लिखते वक्त यह भी सोच रही थी कि किस तरह से मुझे लाल मिर्च और खूब गुड़ के साथ हरा आम उबालना पसंद है, बाद में उस पर राई से तड़का कैसे देते हैं। मुझे संवेदना, ध्वनि, अनुभव या वस्तु का वर्णन करने के लिए सबसे अच्छे शब्द के उपयोग से कविता लिखने की प्रेरणा मिलती है। 

आप अंग्रेजी में लिखती हैं और अपनी कविता में तमिल व हिंदी शब्दों का प्रयोग करती हैं। क्या यह आपको बहुभाषी बनाता है?

‘बहुभाषी’ होने के बारे में मैं यह समझती हूं कि हमें सभी भाषाओं में महारत हासिल करने की ज़रूरत नहीं है। इसके लिए सबसे ज़रूरी है भाषा के प्रति लगाव की। कई शब्द ऐसे होते हैं जो मुझे काफी रास आते हैं, इसका भाषा से कोई लेना देना नहीं है, वो मेरी भाषा में भी हो सकते हैं व दूसरी भाषा के भी। इसके अलावा कई ऐसे शब्द भी हैं जो काफी मुश्किल भरे हैं, ऐसे शब्द मेरे दिमाग में बार-बार रिकॉल होते हैं। कविता लिखने के दौरान वही शब्द मेरी ज़हर में आते हैं, जिसका मैं प्रयोग करती हूं।

कई भाषाओं को जानने से आपको अपने काम में मदद मिलती है?

मैं इतने यकीन से नहीं कह सकती हूं। मैं फिलहाल सिर्फ इतना जानती हूं कि जो रीडर्स मेरी कविताओं में अपनी भाषा को पहचानते हैं, वे मुझे पॉजिटिव रिएक्शन देते हैं। वहीं जो लोग नए वर्ड को पढ़ना या सुनना पसंद करते हैं, वे भी मेरी कविताओं को पढ़ खुश होते हैं। मुझे इस बात पर विश्वास है कि यह मेरे काम को बेहतरीन बनाएगा, नए रीडर्स को कविता से जोड़ेगा और दूसरों को नए शब्दों और विचारों से रूबरू कराएगा।

भाषा लोगों में एकता या विभाजित कर सकती है। आपके अनुसार भाषा लोगों को एकजुट करने में कैसे मदद करती है?

अगर हम भाषा को सामूहिक तौर पर देखते हैं, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी स्पीकर्स, राइटर्स और रीडर्स जुड़ा हुआ है, वहीं वो भाषा को अच्छी तरह समझता भी है। जिस भाषा में मेरी अच्छी पकड़ है, मुझे उस भाषा में लिखने में खुशी मिलती है, लेकिन कभी-कभी उस भाषा को सुनने और समझने की कोशिश करती हूं, जिसे मैंने नया-नया सीखा है। किसी भाषा को बोलने का अनूठा तरीका, स्वर और हावभाव भी मुझे आकर्षित करते हैं।

आपका मानना है कि भाषा का इस्तेमाल हमारी परंपरा व मानवता के उदाहरण के तौर पर कर सकते हैं?

भाषाएं हमारे-आपके द्वारा ही बनाई व जीवंत रखी जाती हैं। अलग-अलग समुदायों की अलग-अलग भाषाएं हो सकती हैं, लेकिन अक्सर पड़ोसी समुदायों ने अपने आस-पास के समुदाय के आगे-पीछे शब्द साझा किए होंगे। उदाहरण के तौर पर, पिजिन और बाद में क्रियोल पड़ोसियों के बीच भाषा का विकास होता है। यात्रा करने व एक से दूसरे देश में व्यापार करने से भी भाषा का आदान- प्रदान होता है। ‘ऑबर्जिन’ और ‘बैगन’ जैसे शब्दों को ही उदाहरण के तौर पर ले लीजिए। ये शब्द भारत से होते हुए यूरोप में गए। अंग्रेजी, स्पेनिश और फ्रेंच में शब्द ‘द’ (अल) अरबी और कैटलन के ज़रिए शुरू हुआ और ऑबर्जिन व अन्य वेरिएंट बन गया। हालांकि पोलिश में, कोई ‘अल’ नहीं होता है, यह ‘बक्लाज़ान’ है, जो बताता है कि यह वर्ड भिन्न है और पूर्वी देशों से आया है।

आपकी कविता में परंपरा की झलक दिखती है?

जैसे एक चित्रकार अपने पेंटिंग का वर्णन बखूबी तरीके से करता है, ठीक उसी तरह से ‘भाषा’ मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती है। मैं इंग्लिश में लिखती हूं, मुझे ऐसा लगता है कि मुझे कविता लिखने के लिए जिन शब्दों की मुझे ज़रूरत है वो इंग्लिश में नहीं है। इसलिए मैं दूसरी भाषाओं में उन शब्दों को तलाशती हूं। कई बार ऐसा होता है जब मैं शब्दों को उनके भाव को समझाने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द का इस्तेमाल करतीं हूं। एक कविता ‘ब्लंट नाइव्स’ में, मैं लय, स्वर और अर्थ के साथ कुछ बेहतरीन करना चाहती थी। मैंने नट्टुवंगम का इस्तेमाल किया, जिस नृत्य का मैंने अध्ययन किया था।

मुझे लगता है कि विभिन्न भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल कर मेरी कविता नए शब्दों और विचारों के लिए मोनोलिंगुअल उदाहरण पेश करती है। इसके साथ ही वैसे लोग जो उन शब्दों के बारे में जानते हैं वो भी मेरी कविता को सुन एक खास प्रकार का अटैचमेंट महसूस करते हैं।

  • फियोना बोल्गर आयरलैंड और भारत में रहती है। उनके काम साउथवर्ड, द ब्राउन क्रिटिक, पोएट्री बस, द चट्टाहूची रिव्यू, म्यूजियम इंडिया आदि सराहनीय हैं। के. श्रीलता के साथ उन्होंने आयरलैंड और भारत के बीच एक कविता परियोजना ऑल द वर्ल्ड्स बिटवीन (योडा प्रेस, दिल्ली, 2017) का संपादन किया। वर्तमान में, बोल्गर डबलिन सिटी यूनिवर्सिटी में 'सर्चिंग फॉर पोएम्स इन द क्रैक्स बिटवीन बॉर्डर्स' शीर्षक से डॉक्टरेट कर रही हैं।
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