हरिवंश राय बच्चन की कविता

हरिवंश राय बच्चन की कविताओं से मिलती है पॉजिटिविटी

बच्चन परिवार का इतिहास हमेशा से गौरवमयी रहा है। हरिवंश राय बच्चन का नाम जब भी आता है, तो उनकी लिखी रचनाओं की ओर ध्यान बरबस ही खिंचा चला जाता है। आइए, इस लेख के ज़रिए हम हरिवंश राय बच्चन की कविताओं को जानते हैं, वहीं उसमें छिपी पॉजिटिविटी को हासिल करते हैं।

हरिवंश राय बच्चन का जन्म यूपी के प्रतापगढ़ जिले में वर्ष 1907 में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बतौर इंग्लिश प्रवक्ता के तौर पर काम किया। इसके बाद इन्होंने आकाशवाणी में काम किया और फिल्मों के गीत भी लिखे। सबसे खास बात यह है कि इन्हीं का लिखा गीत रंग बरसे भीगे चुनर वाली… को न केवल इनके बेटे व सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने गाया, बल्कि अभिनय कर लोगों का दिल भी जीता। साल 1935 में मधुशाला लिखने के बाद इनको सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली।

हरिवंश राय बच्चन की रचनाओं की बात करें तो मधुबाला, अंगारे, मधुकलश, सतरंगीनी, मिलन दो चट्टाने भारती, एकांत संगीत, निशा निमंत्रण, खादी के फूल सहित अन्य हैं। इनके लिखे गीतों में आत्मकथा की झलक देखने को मिलती है। इनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह की बात करें तो उसमें मिलन यामिनी, मधुशाला, धार के इधर-उधर शामिल हैं। आइए, इस लेख में हम उनकी ऐसी कविताओं के बारे में पढ़ेंगे, जिससे आम लोगों को जीवन में संघर्ष करके नई ऊंचाईयों तक पहुंचने की प्रेरणा मिलती है। इनकी लिखी कविताओं का हर एक शब्द हममें जोश व ऊर्जा का संचार करता है। हम हरिवंश राय बच्चन की कविताओं में से कुछ पंक्तियां आपके लिए लाएं हैं और उसका अर्थ समझने  की कोशिश करेंगे, ताकि उससे जीवन में पॉजिटिविटी हासिल कर सकें।

अग्निपथ कविता से मिलती है हार न मानने की सीख

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

हरिवंश राय बच्चन की इस कविता से हमें यही सीख मिलती है कि जीवन में यदि कुछ पाना है, तो हमें बिना थके, बिना रुके आगे बढ़ते रहना होगा। संकट के सामने आने पर उसका सामना करना होगा तभी हम ज़िंदगी में सफल हो पाएंगे। ये शपथ हमें खुद से ही लेना होगा। इस कविता से हमें यही सीख मिलती है कि जीवन में हमें कभी भी हार नहीं मानना चाहिए। ऊंचे इरादों व हौसलों के दम पर हम जो चाहे वो पा सकते हैं।

जो बीत गई, सो बात गई से मिलती है आगे बढ़ने की सीख

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

हरिवंश राय बच्चन की इस कविता से हमें यही सीख मिलती है कि जीवन में हमेशा आगे बढ़ते जाना है। जीवन में कई अच्छे व बुरे एक्सपीरियंस का भी हमें सामना करना पड़ेगा, लेकिन उन्हें हंस कर पार करने में ही सच्ची सफलता है। इस काव्य के ज़रिए हमें यह सीख मिलती है कि यदि हमने कोई लक्ष्य तय किया और किसी कारण से हम उसे हासिल न कर पा रहे हैं, तो उसके बारे में शोक मनाने की बजाय हमें आगे बढ़ते रहने पर ध्यान देना चाहिए

चल मरदाने कविता से जगती है देशभक्ति की ललक

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढ़ाते,
मन मुस्काते, गाते गीत।
एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत।

हरिवंश राय बच्चन ने प्रेम, पॉजिटिविटी, जीवन के संघर्ष व प्रेरक कविताएं लिखने के साथ-साथ देशभक्ति पर भी कविताएं लिखी हैं। इनकी लिखी कविता चल मरदाने … से हममें देशभक्ति की भावना जगती है। यह कविता स्वतंत्रता सैनानियों में व युवाओं में उस दौर में जोश भरने का काम करने के साथ ही आज भी देशवासियों में देशभक्ति की भावना जगा रहे हैं।

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरते जाता है,
चढ़ कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है,
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती।।

हरिवंश राय बच्चन के काव्य संग्रह में ये कविता काफी खास है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस काव्य का हर एक शब्द लोगों में कुछ कर गुज़रने का साहस भरता है। वहीं इसे पढ़कर हमें ये सीख मिलती है कि जो लोग कोशिश करते हैं, वे जीवन में कभी भी हार का सामना नहीं करते हैं। इसलिए हमें कोशिश करने से कभी भी बाज नहीं आना चाहिए। हमेशा कोशिश करते रहना चाहिए। इस काव्य के सार की बात करें, तो जिस प्रकार लहरों से टकराने के बाद ही नाव पार होती है, उसी प्रकार कोशिश करने वाले लोग भी कभी हार नहीं मानते हैं। यहां कवि ने लहरों व चींटी का उदाहरण देते हुए जीवन में कुछ कर गुज़रने की सीख दी है।

मां पर कविता … से मन होता है प्रफुल्लित

आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया।
मां की ऊंगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया।।
उंगलियां पकड़कर मां ने मेरी मुझे चलना सिखाया है।
खुद गीले में सोकर मां ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है।।

किसी कवि ने बहुत खूब लिखा है कि मां पर कविता लिखना बहुत मुश्किल है। क्योंकि मां पर कहने को इतनी सारी बातें हैं जिन्हें कम से कम शब्दों में बयां कर पाना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं। लेकिन हरिवंश राय बच्चन की ये कविता मील का पत्थर है। इनकी लिखी इस कविता को पढ़कर मन प्रफुल्लित हो उठता है। इस कविता को पढ़कर हम बच्चे के दिल में छिपी मां के प्रति स्नेह को जान सकते हैं। वहीं बच्चे के पालन-पोषण के लिए उनकी कुर्बानियों को भी समझ सकते हैं।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है… से मिलती है चलते रहने की प्रेरणा

हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

हरिवंश राय बच्चन की इस कविता से हमें चलते रहने की प्रेरणा हासिल होती है। इस कविता के जरिए कवि ने ये बताने की कोशिश की है कि रास्ते में चलते-चलते, लक्ष्य हासिल करने की दिशा में बढ़ते हुए रात भी हो जाए तो मंजिल को दूर नहीं समझना चाहिए। वहीं मंजिल पाने से पहले यदि उसके बारे में सोचा जाए तो लक्ष्य पाने की कोशिश में तेजी आ जाती है। इस कविता के जरिए भी हमें हमेशा चलते जाने की प्रेरणा मिलती है।

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