कैसे फैला उत्तर से दक्षिण तक हिंदू धर्म

कैसे फैला उत्तर से दक्षिण तक हिंदू धर्म

पुराणों में वर्णित कथाएं बताती हैं कि कैसे दक्षिण की लोक परंपराओं से मिश्रित होकर एक नए ढंग के हिंदू धर्म का निर्माण हुआ।

उपनिषद परंपरा और बौद्ध व जैन धर्मों का उद्गम दो-तीन हजार वर्ष पहले गंगा घाटी में हुआ था। यहां से ब्राह्मण, बौद्ध भिक्षु और जैन मुनि अपने विचार लेकर भारत की कई दिशाओं में गए। दक्षिण दिशा में भी कई ब्राह्मण, भिक्षु और मुनि गए। इसके प्रमाण हैं दक्षिण भारत में आज भी मौजूद कई स्थल, जहां पर बौद्ध विहार और जैन बासदी (एक प्रकार के मठ) हैं। जैसे कर्नाटक में कई बासदी हैं, तमिलनाडु में जैन मंदिर हैं, तो आंध्रप्रदेश में बुद्ध से जुड़े कई स्तूप हैं।

ऋषि दक्षिण दिशा की ओर कैसे गए? इस बात का पुराणों में उल्लेख है। ऋषियों में सबसे बड़े ऋषि का नाम है अगस्त्य। अगस्त्य की विविध कहानियां हमें वेदों से मिलती हैं। वेदों के अनुसार, उनका जन्म तब हुआ, जब उर्वशी नामक अप्सरा को देखकर ‘मित्र’ और ‘वरुण’  मोहित हुए। इसके बाद दो ऋषियों का जन्म हुआ, वशिष्ठ और अगस्त्य। अगस्त्य शिवजी के सबसे प्रिय विद्यार्थी थे। कहते हैं कि जब शिवजी ने वेदों और तंत्रों पर व्याख्यान दिया था, तो दुनिया के सारे ऋषि उन्हें सुनने के लिए कैलाश पर्वत आ गए। इसलिए धरती उत्तर दिशा में झुक गई। धरती का संतुलन बनाए रखने के लिए तब शिवजी ने अगस्त्य ऋषि को दक्षिण दिशा में जाकर रहने को कहा। इस तरह दक्षिण भारत के साथ उनका बहुत गहरा नाता बन गया। तमिल भाषा का व्याकरण अगस्त्य ऋषि के साथ जुड़ा है। सिद्धों की परंपरा भी अगस्त्य ऋषि के साथ जुड़ी है।

कहते हैं कि जब अगस्त्य ऋषि दक्षिण दिशा में जा रहे थे, तब हिमालय और गंगा की याद दिलाने के लिए पार्वती देवी ने उन्हें एक कांवड़ दी। कांवड़ के दोनों ओर की टोकरियों में पार्वती देवी ने हिमालय के कुछ पत्थर रख दिए और एक कमंडल में उन्हें गंगा का जल दिया। जब वे दक्षिण भारत गए, तब उनकी कांवड़ से कई पत्थर बीच-बीच में गिरने लगे और कई जगहों पर पानी गिरने लगा। इसलिए दक्षिण भारत में जितने भी पहाड़ हैं, उन्हें दक्षिण के कैलाश पर्वत या दक्षिण के हिमालय कहते हैं और दक्षिण की नदियों में गोदावरी, कावेरी और कृष्णा को दक्षिण गंगा कहा जाता है।

अगस्त्य ऋषि ब्रह्मचारी रहना चाहते थे। लेकिन, एक रात सपने में उनके पितृ आए और उन्होंने कहा कि जब तक वे पितृ ऋण से मुक्त नहीं होंगे, तब तक उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए उन्हें लोपमुद्रा नामक राजकुमारी के साथ विवाह करना पड़ा, लेकिन लोपमुद्रा की एक शर्त थी। वह यह कि चूंकि वह एक राजकुमारी है, तो जब तक उसे राजमहल नहीं मिलेगा, तब तक वह अपनी संतान पैदा नहीं करेंगी। इसलिए एक कथा के अनुसार उन्होंने दो राक्षस आतपी और वातपी को पराजित कर दिया। इससे उन्हें धन की प्राप्ति हुई और इस धन से उन्होंने उस राजमहल का निर्माण किया, जिसमें लोपमुद्रा रहीं। अगस्त्य और लोपमुद्रा की यह कथा हमें ऋग्वेद से प्राप्त होती है। इस कथा में संन्यासी जीवन और गृहस्थ जीवन का तनाव उभरकर आता है। रामायण में भी अगस्त्य ऋषि का उल्लेख है। कहते हैं कि उन्होंने रामजी को धनुष और कई अस्त्र-शस्त्र दिए थे। कई मंत्रों का ज्ञान भी दिया था, जिससे रावण के साथ युद्ध करते समय भगवान राम अपनी रक्षा कर सकें।

अगस्त्य ऋषि दक्षिण से उत्तर भारत कभी नहीं लौटे। इसे लेकर भी एक कथा है। प्राचीन काल में विंध्य पर्वत इतना ऊंचा था कि वह सूर्य किरणों का रास्ता रोक लेता था। सूर्य भगवान ने अगस्त्य ऋषि को यह बात बताई। जब अगस्त्य ऋषि उत्तर से दक्षिण भारत जा रहे थे, तब विंध्य पर्वत ने उनके लिए अपना शीश झुकाया। इस पर अगस्त्य ऋषि ने विंध्य पर्वत से तब तक उसी आसन में यानी शीश झुका हुआ रखने को कहा, जब तक कि वे लौटते नहीं। इसलिए अगस्त्य ऋषि दक्षिण से उत्तर भारत कभी नहीं लौटे और इसीलिए विंध्य पर्वत वैसा ही शीश झुकाए खड़ा रहा यानी वह उतना बड़ा नहीं रहा। इससे सूर्य किरणें धरती पर पहुंचती हैं।

ये कथाएं दर्शाती हैं कि वैदिक परंपरा, बौद्ध और जैन परंपराएं धीरे-धीरे उत्तर भारत से दक्षिण भारत में फैलीं। वहां की लोक परंपराओं से मिश्रित होकर एक नए ढंग के हिंदू धर्म का निर्माण हुआ। हिंदू धर्म के इस रूप में भक्ति परंपरा का जन्म हुआ और यह भक्ति परंपरा फिर दक्षिण भारत से उत्तर भारत में फैली। इस तरह उत्तर और दक्षिण के बीच विचारों के आदान-प्रदान से भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू धर्म का विकास हुआ।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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