हिन्दू राजा

हिंदुओं में राजा कैसे बनते थे

वेद और पुराणों जैसे ग्रंथों और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों से भारतभर में राजाओं के उदय के अभ्यास से यह पता चलता है कि राजा चार तरीकों से बनाए गए।

परंपरागत हिंदू मान्यता यह रही है कि राजा ‘मत्स्य न्याय’ अर्थात जंगल के नियम को उलटने के लिए होता है। राजा न होने पर देश में अराजकता पैदा होती है। राजा उसकी जगह पर अनुशासन लाता है। लेकिन कोई अपने आप को शासक के रूप में कैसे स्थापित करें? वेद और पुराणों जैसे ग्रंथों और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों से भारतभर में राजाओं के उदय के अभ्यास से यह पता चलता है कि राजा चार तरीकों से बनाए गए।

सबसे पहला तरीका राजसूय और अश्वमेध जैसे वैदिक अनुष्ठानों के माध्यम से था। राजसूय के अनुष्ठान में ब्राह्मण होने वाले राजा के सिर पर जल डालकर उसे राजा घोषित करते थे। यह क्रिया निर्वाचित राजा का शासन स्वीकारने वाले राजाओं की उपस्थिति में की जाती थी। इस अनुष्ठान का महाभारत में उल्लेख है। इसके साथ किए गए अश्वमेध यज्ञ में राजसी अश्व उन क्षेत्रों में अबाधित घूमता था, जिनपर नए राजा का दावा था। इसका उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में है।

अश्वमेध यज्ञ का अंतिम उल्लेख गुप्त काल के आस-पास है। तब तक, 1500 वर्ष पहले, राजा चुनने के तरीकों में बदलाव आए थे, जैसे उस समय उभर रहें पौराणिक ग्रंथों में देखा जाता है। उस काल में मध्य एशिया से यवन, शक, पह्लव और कुषाण भारत आ रहें थे। इन विदेशी शासकों ने देश में अपने शासन को वैध बनाना आवश्यक समझा। इसलिए उन्होंने ब्राह्मणों की मदद से देश के प्राचीन देवताओं के साथ अपना संबंध स्थापित किया, इसके बावजूद कि ब्राह्मणों की रूढ़िवादिता उन्हें बेचैन करती थी।

इस प्रकार, पुराणों में कई बार राजाओं ने अपने आप को पहले मानव ‘मनु’ के वंशज होने का और उनसे भी महत्त्वपूर्ण सूर्यवंशी और चंद्रवंशी होने का दावा किया। शुरू में साम्राज्यों ने राजधानी को और वहां से बाज़ारों और बंदरगाहों तक जाने वाले राजमार्गों को विकसित किया। बाद में उन्होंने जंगलों की ओर ध्यान दिया, जिनमें कई लड़ाकू जनजातियां रहती थी।

जनजातियों में देवी के योद्धा रूप – चामुंडा और दुर्गा – बहुत महत्त्वपूर्ण थे। राजा उन्हें राज्य के शत्रुओं के सिर बलि चढ़ाते थे। ऐसी कहानियां भी हैं जिनमें उन्मत्त होकर सैनिकों ने स्वयं की बलि चढ़ा दी। देवी हमेशा मृत योद्धाओं के शरीर के अंगों से सुशोभित होती थी। वे रणभूमि की देवी थी। उनका सबसे पहला उल्लेख तमिल साहित्य में कोत्रवई के रूप में है।

तीसरी और चौथी सदियों में, कुषाण काल से, कला और उपासना में दुर्गा का महत्त्व बढ़ने लगा। महिषासुर का वध करती हुईं आठ भुजाओं वाली दुर्गा कई राजाओं की संरक्षक देवी बन गईं। मराठा और राजपूत राजाओं से जुड़े लोकसाहित्य की कहानियों में दुर्गा राजाओं के सपनों में आकर उनका राज्याभिषेक करती और राजत्व की तलवार देकर उनके शासन को वैध बनाती। इस प्रकार किसी राजा का दुर्गा से जुड़ी स्थानीय देवी से जुड़ जाना अपने राजत्व को वैध बनाने का तीसरा तरीका बन गया।

चौथा तरीका 1000 वर्ष पहले लोकप्रिय बना। इसमें ब्राह्मणों को किसी निर्धारित क्षेत्र में विशाल मंदिर परिसर स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया जाता था। इन मंदिरों में उस क्षेत्र के देवी-देवता विष्णु, शिव और शक्ति जैसे पुराणों के शक्तिशाली देवताओं से जोड़ें जाते थे। मंदिर बनने के बाद उनके इर्द-गिर्द शहर बनाए जाते। राजाओं ने इन देवताओं की ओर से राज किया। पूरी, थिरुवनंतपुरम, मदुरई और चिदंबरम ऐसे कुछ शहर हैं।

राजा का प्रभुत्व प्रतिष्ठापित देवता से आता था। मंदिर प्रशासन के केंद्र बन गए। ब्राह्मणों से राजसी अधिकारी वर्ग निर्माण हुआ, जिसने कर इकठ्ठा करने में मदद की। इस काल में अग्रहार नामक गांव उभर आए, जिनमें केवल ब्राह्मण रहते थे। इस प्रकार, भारत में राजत्व और धर्म तथा राजत्व और ब्राह्मणवाद में गहरा संबंध था।

इस्लामी सरदारों और ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों के आने से इन व्यवस्थाओं का पतन हुआ। इन नए अधिकारियों के सामने झुकने या उनका कड़ा विरोध करने से राजाओं को वैधता मिलने लगी। लेकिन, इस्लामी राजा ब्राह्मण दरबारियों को और अंग्रेज़ ब्राह्मण मुंशियों को बहुत महत्त्व देते थे। इस प्रकार, वैदिक काल से कुलीन ब्राह्मण राजसी सत्ता को आधार देते आ रहें थे।

स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र अपनाने के साथ राजवाद का अंत हुआ और ब्राह्मणों के प्राधान्य को चुनौती दी जाने लगी। सत्ता लोगों के हाथों में चली गई। लेकिन पाश्चात्य समतावाद की नक़ल करने में भारत ने संभवतः वो कौशल खो दिए जो ब्राह्मण समाज प्राचीन काल से सफलतापूर्वक प्रखर करता आ रहा था और जिन्हें आधुनिक काल के लिए उपयोगी बनाया जा सकता था।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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