रिटायरमेंट के बाद

एक अविकसित व्यक्तित्व के साथ रहना

व्यक्ति को अपनी रिटायरमेंट के बाद की अवधि अध्ययन और स्वस्थ गतिविधियों में बितानी चाहिए, ताकि वह अपने व्यक्तित्व को विकसित करने और अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए हर संभव प्रयास कर सके।

12 नवंबर, 2014 को प्रसारित ऑल इंडिया रेडियो इंटरव्यू में एक प्रसिद्ध अभिनेता से यह सवाल किया गया था- “आप वास्तविक जीवन में जो हैं, सेट पर उससे बिलकुल अलग हैं। आप ऐसी भूमिका निभाने में कैसे सफल होते हैं, जो आपके वास्तविक व्यक्तित्व से बिलकुल अलग है?” अभिनेता ने जवाब दिया- “जब हम एक्टिंग करते हैं, तो हम ख़ुद को पूरी तरह से अलग कर लेते हैं। हमें जिस किरदार को निभाना है, उसके साँचे में हम ख़ुद को ढाल लेते हैं।”

हमारा दौर प्रोफ़ेशनलिज़्म का दौर है। जब कोई व्यक्ति अपने चुने हुए पेशे में जाता है, तो उसे उसमें किसी ‘निर्देशक’ के अधीन अपनी भूमिका निभानी होती है। ऐसा करते समय वह कुछ समय के लिए ख़ुद को ख़ुद से अलग कर लेता है और कभी-कभी वह एक से अधिक मौक़ों पर ऐसा करने के लिए मजबूर होता है, लेकिन यहां एक समस्या है। यह स्थिति जीवनभर के लिए नहीं होती। एक समय ऐसा आता है, जब व्यक्ति को अपने पेशे से रिटायर होना पड़ता है और रिटायरमेंट के बाद उसका सामना एक नई स्थिति से होता है, जहां रिटायरमेंट के पहले की अवधि में उन्होंने एक के बाद एक सकारात्मक एक्टर की भूमिका निभाई। अब रिटायरमेंट के बाद की अवधि में उन्हें अपने स्वयं की तरफ़ लौटना होगा यानी एक ऐसे व्यक्तित्व की ओर जो अविकसित अवस्था में पड़ा हुआ था। अब उसे एक ऐसे व्यक्तित्व के साथ रहना है, जो अधूरा है और जिसे पूरा करने के लिए बहुत कुछ उपेक्षित है।

रिटायरमेंट के बाद की अवधि किसी भी व्यक्ति के जीवन की सबसे क़ीमती अवधि होती है, क्योंकि वह परिपक्वता की उम्र होती है। फिर भी अपने जीवन के दो दौरों के बीच उसे सूनापन महसूस होता है। रिटायरमेंट के पहले की अवधि में उसे ‘सुपर परफॉर्मर’ के रूप में सराहा गया। अब रिटायरमेंट के बाद की अवधि में उसे लगभग एक ‘नॉन-परफ़ॉर्मर’ यानी बिना अस्तित्व के व्यक्तित्व के रूप में जाना गया । इससे पता चलता है कि क्यों अपने जीवन के दूसरे चरण में लगभग सभी तथाकथित सफल व्यक्ति निराशा में जीते हैं और निराशा में ही मरते हैं।

इस समस्या का समाधान क्या है? इसके दो विकल्प हैं। पहला एक ऐसे पेशे में जाना, जो जीवनभर चलेगा और जिसमें करियर बनाने वाले को नौकरी से संतुष्टि मिल सकती है। दूसरा विकल्प रिटायरमेंट के तुरंत बाद एक नया जीवन शुरू करना है यानी अपनी पसंद का जीवन। उसके बाद उसे अपना समय अध्ययन और स्वस्थ गतिविधियों पर खर्च करना चाहिए, जिसमें उसे अपनी क्षमता का प्रयोग करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।

मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लामी आध्यात्मिक विद्वान हैं, जिन्होंने इस्लाम, आध्यात्मिकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर लगभग 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

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