निराश ना हों

निराश न हों

कई बार हम उस बात को ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं जिसके कारण ये परिस्थिति आयी, इसके पीछे हमारा उद्देश्य क्या होता है?

हमने क्रोध को नहीं रोका तो वो निराशा के रूप में बदल जाता है। बहुत बार हम कहते हैं कि आज मैं बहुत निराश हो गया हूँ। जब मेरी चीजें, मेरे अनुसार नहीं होती हैं तब निराशा होती है। इसमें भी हम दूसरे लोगों को बदलने की कोशिश करते हैं, उनको अपने अनुसार चलाने की कोशिश करते हैं, परिस्थितियों को संभालने की कोशिश करते हैं, इसके लिए मुझे अपने आपको बहुत प्यार से समझाना पड़ेगा कि लोग और परिस्थितियाँ अपने अनुसार ही चलेंगे। मेरी भूमिका है, मैं उनको राय दूँ, मार्गदर्शन दूँ लेकिन इसके बाद अपने आपको रोक दूँ। अगर फिर मेरे अनुसार नहीं हुआ तो मैं निराश नहीं होऊँगी।

कई बार हमें औरों के प्रति गुस्सा आता है तो हम उसे इतना ज्यादा अंदर भर लेते हैं कि हम गुस्से के अलावा और कुछ सोचते ही नहीं हैं। किसी ने मेरे साथ गलत किया है, किसी ने मुझे धोखा दिया है, किसी ने मेरे जीवन को ही बर्बाद कर दिया है तो इस कारण से भी मुझे गुस्सा आता है। वो व्यक्ति मुझे पसंद भी नहीं आता है। मैंने उसके बारे में कोई बात पकड़ ली जिसे मैं जीवनभर भूलने वाली नहीं हूँ।

वास्तव में मैं उसे भूलना ही नहीं चाहती हूँ। कितनी बार वो जिद्द, मेरे जीवन का एक लक्ष्य बन जाती है और हम ये कहते हैं कि घाव रिसता है तो रिसता ही रहे, यही अच्छा है। लेकिन घाव अगर वहीं रहा और हर बार याद आता रहा तो उस घाव की हालत क्या हो जायेगी? हर समय हमें ये जाँचना पड़ेगा कि बात को पकड़कर रखने से नुकसान किसका हो रहा है। इसे पकड़कर रखने से सिर्फ और सिर्फ मेरा नुकसान होता है। अगर मुझे छोड़ना है तो सिर्फ और सिर्फ अपने लिए छोड़ना है, न कि दूसरे के लिए। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह सोचते हैं कि उन्होंने मेरे साथ इतना गलत किया, हम क्यों भूल जायें? आप अपने कल्याण के लिए उस बात को भूल जायें। यह उन अपने लोगों के प्रति होता है जिनके साथ हमें हर दिन रहना है। अब अगर हम साथ-साथ रहते हुए इन सब चीजों को अपने अंदर जमा करके रखते हैं तो यह बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है। ऐसे में, जिस घर में हम रहे हैं वहाँ सबकी मानसिक स्थिति कैसी होगी?

मैं महसूस करती हूँ कि उन्होंने मेरे साथ गलत किया इसलिए मेरा गुस्सा करना जायज है। मान लो, मेरी अपेक्षायें उनसे पूरी नहीं हुईं लेकिन मेरे गुस्से को कोई भी सही नहीं कहेगा। सारा दिन हमें एक-दूसरे के साथ रहना है और इस नकारात्मक ऊर्जा के साथ हम परस्पर कार्य करते हैं। हमने अपने अन्दर क्या भरके रखा हुआ है क्योंकि जो भरकर रखेंगे वही बाहर आयेगा। कुछ परिवारों में समस्या या परिस्थिति आ गयी जिसके कारण उनकी आपसी दूरी बढ़ गयी। अब परिस्थिति खत्म हो गई, हम वापिस इकट्ठे काम कर रहे हैं या इकट्ठे घर पर रह रहे हैं लेकिन उस ऊर्जा को अभी तक पकड़ा हुआ है, तो इसे क्या कहेंगे? आपसी संबंधों में दखल करना।

कई बार हम उस बात को ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं जिसके कारण ये परिस्थिति आयी, इसके पीछे हमारा उद्देश्य क्या होता है? कहीं ना कहीं उनको ये बताना कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है अर्थात् आप गलत हैं, मैं सही हूँ। उन्होंने क्या गलती की, उनको इसका एहसास कराना ही हम अपनी जिम्मेवारी मान लेते हैं। वो सारी सीख किसके लिए हो रही है, बीती हुई घटना का पूरा विवरण किसके लिए हो रहा है? सिर्फ उनको समझाने के लिए।

आप ये देखो, हम जब भी बैठते हैं ना बात करने के लिए तब सामान्यतया हमारा जो ऊर्जा का स्तर है वो ये होता है कि मैं दूसरे को समझा दूँ कि तुम गलत हो। उन्होंने गलत समझकर नहीं किया था। उन्होंने अपनी समझ से उस समय सही ही किया था। किसी परिस्थिति में मान लो कि एक निर्णय गलत हुआ, निर्णय गलत हो सकता है लेकिन व्यक्ति नहीं। हम जो यह ऊर्जा भेजते हैं कि आप गलत हो, तो ये ऊर्जा हमारे संबंधों में कड़वाहट लेकर आती है। छोटी-छोटी बातों में कि बच्चों को आज का कर्म, कल का भाग्य अपने लोगों के प्रति होता है जिनके साथ हमें हर दिन रहना है। अब अगर हम साथ-साथ रहते हुए इन सब चीजों को अपने अंदर जमा करके रखते हैं तो यह बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है। ऐसे में, जिस घर में हम रहे हैं वहाँ सबकी मानसिक स्थिति कैसी होगी?

ज्यादा नंबर नहीं मिले, तब पति-पत्नी आपस में एक- दूसरे के ऊपर दोषारोपण करते हैं। क्या ऐसा होना चाहिए? नहीं। यह कोई प्रतियोगिता नहीं है, जो हम यह सिद्ध करें कि तुम गलत थे, मैं सही था। हमें कभी भी इसके लिए जिद्द नहीं करनी चाहिए। जिससे वो गलती होती है वो अपने आपको कितना दोषी महसूस करता है। वास्तव में हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए कि अपने व्यवहार से उनको सुख दें जिससे कि वो उस गलती से, उस दर्द से बाहर निकल सके!

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