pratyaksh-chhal-kapat

प्रत्यक्ष छल-कपट

हालात का थोड़ा-सा अंतर भी इंसान को यह बताने के लिए पर्याप्‍त हो जाता है कि उसकी कोई वास्तविकता नहीं थी।

एयर मार्शल इद्रीस हसन लतीफ़ को हवाई जहाज़ चलाने का चालीस वर्षीय अनुभव था । 25 अगस्‍त, 1981 को उन्‍होंने रूसी संरचना का ध्‍वनि से तेज़ चलने वाला लड़ाकू जहाज़ मिग-25 परीक्षण के रूप में उड़ाया। आधे घंटे तक उड़ने के बाद उन्‍होंने जहाज़ को नीचे उतारा। एयर मार्शल जब हवाई जहाज़ से बाहर आए तो उन्‍होंने अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए कहा—

“The flight made even the Himalayas look small.”

“हमारी उड़ान के सामने हिमालय पहाड़ भी छोटा दिखाई देता था।”

(टाइम्‍स ऑफ इंडिया, 1981)

आवाज़ से तेज़ रफ़्तार वाला जहाज़ जब हिमालय के ऊपर से उड़ान भर रहा हो तो उस समय जहाज़ में बैठे हुए इंसान को हिमालय वास्तव में छोटा दिखाई देता है और उस समय उसे अपनी महानता का एक विचित्र अनुभव होता है, लेकिन यह भ्रम उस समय समाप्‍त हो जाता है, जबकि जहाज़ हिमालय की किसी चोटी से टकरा जाए। चट्टान के साधारण टकराव से भी तुरंत जहाज़ में आग लग जाती है। अचानक जहाज़ और उसका यात्री, दोनों इस प्रकार राख का ढेर बन जाते हैं, जैसे कि उनकी कोई वास्तविकता ही नहीं थी।

वर्तमान संसार में अगर किसी को कोई शाबाशी मिलती है तो वह बहुत जल्दी भ्रम में पड़ जाता है। हालाँकि संसार की हर शाबाशी ऐसे ही है, जैसे तेज़ रफ़्तार हवाई जहाज़़ से किसी इंसान का पहाड़ को देखना। यह स्पष्ट है कि ऐसे यात्री को अपनी सवारी महान प्रतीत होती है, लेकिन यह एक काल्‍पनिक धोखे के सिवा और कुछ नहीं है। हालात का थोड़ा-सा अंतर भी उसे यह बताने के लिए पर्याप्‍त हो जाता है कि उसकी कोई वास्तविकता नहीं थी।

संसार में किसी चीज़ को पाने के लिए जिन असंख्य संसाधनों की अनुकूलता आवश्यक है, उन्‍हें प्रदान करना किसी इंसान के वश की बात नहीं है। यह केवल ईश्वर है, जो समस्‍त अनुकूल संसाधनों को एकत्र करके किसी घटना को सामने लाता है। फिर भी इस सारे मामले पर प्रत्‍यक्षत: कारणों का आवरण डाल दिया गया है। इंसान से यह आशा है कि वह उचित शैली को अपनाते हुए ईश्वर के ईश्वरत्व और उसके सामने अपनी दासता को स्‍वीकार कर ले। यह संभव है कि वह अपने प्रयत्‍नों से पाए, लेकिन वह उसको ईश्वर की ओर से आया हुआ समझे। वह प्रत्यक्ष रूप में बड़ा बना हुआ हो तो भी अपने आपको छोटा समझे। वह भले ही प्रत्यक्ष रूप से ऊँचाई पर उड़ रहा हो, लेकिन अपने आपको नीचे उतरा हुआ अनुभव करे।

इंसान की परीक्षा यह है कि वह प्रत्‍यक्षत: फ़रेब से गुज़रकर वास्तविकता को पा ले। यहाँ की हर बड़ाई को झूठी बड़ाई समझे, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो इस फ़रेब से पर्दा उठाने में सफल होते हैं।

मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लामी आध्यात्मिक विद्वान हैं, जिन्होंने इस्लाम, आध्यात्मिकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर लगभग 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

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