आज का कर्म, कल का भाग्य

आज का कर्म, कल का भाग्य

महात्मा बुद्ध ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जैसा भी घटिया या बढ़िया कार्य करता है, वैसा ही उसका कर्मबंधन या कर्मसम्बन्ध हो जाता है और वैसा ही फल मृत्यु के बाद उसे प्राप्त होता है।

महात्मा बुद्ध के एक परम भक्त की मृत्यु होने पर, भक्त के पुत्र ने सोचा कि अंत्येष्टी के बाद होने वाला मंत्र-पाठ, मैं किसी आम पंडित से न करवाकर, महात्मा बुद्ध से ही कराऊँ ताकि पिता को स्वर्ग मिलना सुनिश्चित रहे। पुत्र ने महात्मा बुद्ध से उपरोक्त निवेदन कर दिया।

महात्मा बुद्ध उसका कथन सुनकर मुस्कराये और कहा, आप एक पत्तल के दोने में पत्थर के टुकड़े व दूसरे दोने में मखाने रखकर ले आओ। वह प्रसन्न मन से दोनों वस्तुएँ ले आया। महात्मा बुद्ध ने कहा, नदी किनारे जाकर इन दोनों को बहा दो और कुछ देर मंत्रोच्चारण करके, आकर मुझे परिणाम बताओ।

व्यक्ति ने वैसा ही किया और कुछ देर बाद आकर महात्मा जी को बताया कि पत्थर वाला दोना तो नदी में तुरन्त डूब गया परन्तु मखाने वाला तैरता तैरता आगे निकल गया। तब महात्मा बुद्ध ने उसे सुझाव दिया कि अपने मंत्रवादी पण्डित को भी वहाँ ले जाकर, उनसे मंत्र पढ़वा लो। यदि पत्थर वाला दोना ऊपर आ जाए या मखाने वाला दोना डूब जाये तो आकर मुझे बताना। कुछ समय बाद उस व्यक्ति ने बताया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। मखाने वाला दोना तैरता ही रहा एवं पत्थर वाला वापस ऊपर नहीं आया।

तब उसे समझाते हुए महात्मा बुद्ध ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जैसा भी घटिया या बढ़िया कार्य करता है, वैसा ही उसका कर्मबंधन या कर्मसम्बन्ध हो जाता है और वैसा ही फल मृत्यु के बाद उसे प्राप्त होता है। अच्छे किये गये कार्य मखाने की तरह हल्के होते हैं, जो उसको भावी जीवन में तार देते हैं यानि डुबोते नहीं हैं। घटिया व फरेब के काम कंकर की तरह भारी होते हैं, जो भव सागर में डुबो देते हैं। अतः अब पिता की मृत्यु के बाद चाहे कितने भी ब्रह्म-जाप करो या मंत्र-पाठ कराओ, कोई असर नहीं होगा। आपके पिता ने अपने जीवन में जैसे भी अच्छे या बुरे कर्म किये हैं, उनके अनुरूप ही उसके भावी जीवन की गति होगी।

उपरोक्त दृष्टांत का यही सन्देश है कि मनुष्य को हमेशा अच्छे व प्रिय काम करने चाहिये ताकि मृत्यु के बाद अच्छी गति हो। इसमें अन्य कोई भी महात्मा, मंत्रवेता या पण्डित सहयोगी नहीं हो सकता।

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