चाणक्य के विचार: तीन कारक जो वास्तव में महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बना सकते हैं

चाणक्य के विचार: महिलाओं को सशक्त बना सकते हैं ये तीन तरीके

चाणक्य के अर्थशास्त्र से प्रेरणा लेते हुए, राधाकृष्णन पिल्लई ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के कई तरीके बताएं हैं।

एक महिला ही नारीवादी या फेमिनिस्ट हो, ऐसा बिल्कुल ज़रूरी नहीं है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण खुद चाणक्य हैं। वैसे तो समाज में चाणक्य की, चालें चलने वाले एक कठोर व्यक्ति के रूप में गलत छवि फैली हुई है, लेकिन असल में वे अंदर से एक बेहद नरम दिल इंसान थे। महिला की भावनाओं को वे अच्छी तरह समझ सकते थे। इसके साथ-साथ, वे न सिर्फ महिला को सशक्त बनाने में विश्वास करते थे, बल्कि उस पर खुद अमल भी करते थे। उन्होंने अर्थशास्त्र और चाणक्य नीति में, इसे एक ‘नीति मामले’ के रूप में लिखा है। इसका मतलब है यह कि वे समाज को बताते हैं किसी समय, किसी जगह या किसी स्थिति में एक महिला किस तरह से सही फैसला कर सकती है।

हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि इंसान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आगे बढ़ता है। इसी तरह हम हर क्षेत्र में आगे बढ़ते रहते हैं। लेकिन, कुछ चीजें आगे बढ़ने और विकसित होने के साथ नहीं बदलतीं। जैसे, दुनिया भर के कई समाज में महिलाओं को दबाया गया और उनकी भूमिका को मात्र एक गृहिणी यानि हाउसवाइफ तक सीमित रखा गया। लेकिन, जैसे-जैसे शिक्षा और जागरूकता विश्वभर में फैलने लगी, महिलाओं ने हर प्रोफेशन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया और एक लीडर की तरह कई भूमिकाएं निभाईं। आज के समय में एक महिला, पुरुष से किसी भी मामले में कम नहीं हैं।

वहीं दूसरी तरफ, एक महिला के कोमल रूप, उसके स्त्रीपन की जगह, पुरुष कभी नहीं ले सकता है। बच्चे के बेहतर विकास के लिए पिता का प्यार ज़रूरी है, लेकिन बच्चे के पालन-पोषण में मां की भूमिका पिता से ज्यादा ज़रूरी है। फेमिनिज़्म की यह बहस सालों से दुनियाभर में चली आ रही है। समझदारी इसी में है कि समाज में महिलाओं की भूमिका को सम्मान के साथ स्वीकार किया जाए और उन्हें वे सभी अवसर दिए जाएं जो कभी सिर्फ पुरुषों को दिए गए थे।

तो, इसके बारे में चाणक्य क्या सोचते हैं? महिला और समाज में उनकी भूमिका के बारे में, अर्थशास्त्र में कई उदाहरण दिए गए हैं। इनमें में एक है “अगर कोई खतरनाक स्थिति हो, तो इंसान को उससे दूर जाने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन जाने से पहले, उसे यह भी देखना चाहिए कि महिला और बच्चे सुरक्षित हैं।”

अर्थशास्त्र में जहां भी युद्ध जैसी स्थिति के बारे में बताया गया है, वहां इस सूत्र को लिखा गया है। यह सूत्र, महिलाओं को सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए पुरुषों को दिया गया एक निर्देश है। जब भी कोई खतरनाक स्थिति हो, पुरुषों को किसी भी कीमत पर महिलाओं की रक्षा करनी चाहिए। इसके साथ उन्हें बूढ़े और बच्चों को भी बचाना चाहिए। परिवार के मुखिया की पहली जिम्मेदारी होती है, परिवार के सदस्यों को सुरक्षा देना। ऐसे निर्देश आप आज के युद्ध और मिलिट्री के नियमों में भी देख सकते हैं।

महिला सशक्तिकरण के बारे में सीखें ज़रूरी बातें :-

खतरनाक स्थिति

जब भी आपके सामने कोई खतरनाक स्थिति आए, तो कभी भी दूसरों को अकेला न छोड़ें। जान जाने वाली ऐसी स्थितियों में आप अकेले नहीं लड़ सकते हैं, आपको दूसरे लोगों की मदद की ज़रूरत पड़ेगी। ऐसे में किसी को क्या करना चाहिए? सबसे पहले, सुनिश्चित करें कि सभी को किसी सुरक्षित जगह पर ले जाया गया है। यह सिर्फ एक पुरुष की ही नहीं बल्कि ग्रुप लीडर की भी जिम्मेदारी है। इसलिए अगर पुरुष ग्रुप लीडर है, तो उसे सभी लोगों को सुरक्षित जगह पर ले जाना चाहिए।

वहीं, अगर पूरा ग्रुप महिलाओं का है, तो महिला लीडर को भी ऐसा ही करना चाहिए यानि उसे ग्रुप की हर महिला को सुरक्षा देनी चाहिए। जैसे एक जहाज के कप्तान को खुद की जान बचाने से पहले बाकी लोगों की जान बचानी होती है।

सुरक्षा

अगर, हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है, तो मैंने महिलाओं को भी कहते सुना है कि “हर सफल महिला के पीछे एक खुले दिमाग वाले परिवार का हाथ होता है।” ऐसा ज़रूरी नहीं है कि पुरुष ही महिला को सशक्त महसूस कराए, उसके मन विश्वास जगाए। बल्कि यह समाज की हर महिला की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने सामने खड़ी दूसरी महिला का साथ दे, बिल्कुल उसी तरह जैसा साथ वो खुद के लिए चाहती है।

सम्मान

‘महिला सशक्तिकरण’ का मतलब महिला को पुरुष बनाना नहीं है। लेकिन, महिला की भावनाओं, उनके एहसास और उनके फैसलों का सम्मान करना है। हर महिला असल में यही चाहती है। ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है कि घर से बाहर निकलने और पुरुषों से जीतने पर ही हर महिला सशक्त महसूस करेगी। ऐसी भी कई सफल महिला लीडर हैं, जिन्होंने अपने बच्चे और परिवार पर ध्यान देने के लिए अपने सफल करियर को छोड़ दिया। जबकि कुछ ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ और काम की जिम्मेदारियों को भी संभाला।

तो, कौन फैसला करता है कि महिला सशक्तिकरण असल में है क्या? यह फैसला हर महिला को बिना खुद पर तरस खाए लेना होगा। अगर आप एक पुरुष हैं, तो महिला के साथ खड़े रहें। उन्हें अपने फैसलों पर पछतावा न करने दें। जो भी वे अपनी ज़िंदगी में चुनना चाहती हैं, बनना चाहती हैं, सोचना चाहती हैं, बिना किसी दबाव या डर के कर सकती हैं।

एक महिला अच्छी तरह जानती है कि उसे क्या चाहिए। लेकिन, एक पुरुष को उन्हें ढंग से सुनना चाहिए और उनका साथ देना चाहिए। दूसरी तरफ, महिलाओं को भी पुरुष के फैसलों में उनका साथ देना चाहिए। चाणक्य यही चाहते थे – एक ऐसा समाज जिसमें एक-दूसरे के लिए ‘आपसी सम्मान’ हो। यह महिला-पुरुष के भेद को भूलकर सभी को एक इंसान के रूप में अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद करेगा।

डॉ राधाकृष्णन पिल्लई एक भारतीय मैनेजमेंट थिंकर है, लेखक और आत्म-दर्शन और चाणक्य आंविक्षिकी के संस्थापक हैं। डॉ पिल्लई ने तीसरी सदी ईसा पूर्व के ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर रिसर्च की है और इसे माॉडर्न मैनेजमेंट में शामिल किया है ।

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