वीमेन इन साइंस

विज्ञान में महिलाओं की कदमताल

मिलिए उन बहादुर महिलाओं से जिन्हें वीमेन इन साइंस कहा जाता है, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

तिहास के पन्ने महिलाओं के संघर्ष की गवाही देते हैं। महिलाओं को अपने वजूद के लिए हमेशा समाज से लड़ना पड़ा है। उन्हें शिक्षा तक से वंचित कर दिया गया था। पहले के जमाने में जो महिलाएं अनौपचारिक रूप से शिक्षित थीं, वे विश्वविद्यालय के सेमिनार में शामिल नहीं हो सकती थीं। वहीं, जो औपचारिक रूप से शिक्षित थीं, उन्हें पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता था। उन्हें हमेशा तिरस्कृत किया गया। इसके बावजूद कई महिलाएं रूढ़ियों को तोड़कर कामयाब हुईं और खुद को साबित करने में सक्षम हुईं। सिर्फ यही नहीं विज्ञान में महिलाएं (वीमेन इन साइंस) भी अपना योगदान देती आ रही हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वीमेन इन साइंस में इनका जिक्र करना तो बनता है।

नारी जाति को सदियों से खुद की सुनने और स्वीकार करने के लिए दोगुनी मेहनत करनी पड़ी है। कुछ महिलाएं न केवल अपनी सुनने और अपने मन की करने में सफल रहीं, बल्कि समाज ने उनका सम्मान भी किया। यदि महिलाओं के लिए पुरुष प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाना कठिन था, तो 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक विज्ञान के क्षेत्र में कदम रखना पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था। लेकिन फिर भी कई महिलाओं ने विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए अपनी पहचान बनाई है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर वीमेन इन साइंस और उनके साहस के बारे में जिक्र करना तो बनता है। आगे हम कुछ महिलाओं के बारे में जानेंगे, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अपनी पहचान बहादुरी के साथ बनाई थी।

हेडी लैमार

वीमेन इन साइंस के क्रम में सबसे पहले हेडी लैमार के बारे में बात करते हैं। 20वीं सदी की यह महिला एक सुंदर अभिनेत्री होने के साथ-साथ एक आविष्कारक थीं। हालांकि, लैमार टेक्नोलॉजी में योगदान के लिए जानी जाती हैं, वह इसे ‘टिंकरिंग हॉबी’ कहती थीं। ट्रैफिक स्टॉपलाइट्स में सुधार और विमानों को तेजी से उड़ान भरने के लिए विंग डिजाइन के साथ उन्होंने ‘टिंकरिंग’ यानी कि फेरबदल किया था। 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लैमार ने अपने दोस्त और पियानोवादक जॉर्ज एंथिल की मदद से अमेरिकी सरकार के लिए एक गुप्त संचार प्रणाली विकसित की। जिसे अमेरिकी नेवी के बाहर उपयोग नहीं किया जा सकता था। लैमार की तकनीक आज के समय में ब्लूटूथ, वाई-फाई और सीडीएमए के रूप में जानी जाती है।

आनंदी गोपालराव जोशी

वीमेन इन साइंस के बारे में बात करते हुए आनंदी जोशी के बारे में जरूर जानना चाहिए। वह संयुक्त राज्य अमेरिका से मेडिसिन में डिग्री के साथ स्नातक करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। लोगों का यह भी मानना है कि वह अमेरिकी धरती पर पैर रखने वाली पहली भारतीय महिला थीं। जोशी की विशेष बात यह थी कि उन्होंने 1886 में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) की डिग्री हासिल की। यह एक ऐसा वक्त था, जब भारत में ज्यादातर लड़कियां शिक्षित नहीं थीं। लेकिन बतौर डॉक्टर उनकी प्रैक्टिस शुरू होने से पहले ही दुर्भाग्यवश 1887 में जोशी की टीबी से मृत्यु हो गई।

एमिली डू चेटेलेट

वीमेन इन साइंस में एमिली डू चेटेलेट को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। 18वीं सदी की शुरुआत में यह फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी, वेग के विपरीत गतिज ऊर्जा या काइनेटिक एनर्जी के महत्व को समझाने वाली पहली वैज्ञानिक थी। उन्होंने आइजैक न्यूटन के प्रिंसिपिया का लैटिन से फ्रेंच भाषा में अनुवाद किया और इसके साथ एक सम्मोहक समीक्षा की। उन्होंने गतिज ऊर्जा के संरक्षण नियम पर एक अतिरिक्त अभिधारणा बनाई, जिससे न्यूटनियन मैकेनिक्स में योगदान मिला। भौतिक विज्ञान में उनका योगदान इतना अहम था कि उन्हें एक व्यापक पहचान और सम्मान मिला।

जोआन क्लार्क

द्वितीय विश्व युद्ध में कई ब्रिटिश महिलाओं ने अपने पेशे के साथ लोकसेवा को चुना। ऐसी ही एक युवा महिला थी जोआन क्लार्क, जो ब्रिटिश सरकार के लिए बतौर क्रिप्टेनालिस्ट और मुद्राशास्त्री कार्य करती थी। उस समय क्रिप्टोलॉजी पुरुषों के काम के रूप में जाना जाता था। लेकिन युद्ध के दौरान ब्लेचली पार्क में बतौर कोड-ब्रेकर नाजी जर्मनी के गुप्त संचार को क्लार्क ने डिक्रिप्ट किया था। उनके काम के लिए उन्हें कई पुरस्कार और प्रशंसा पत्र दिए गए। यहां तक ​​कि उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर के सदस्य के रूप में भी नियुक्त किया गया था, जो शौर्य का एक क्रम था। इसलिए वीमेन इन साइंस में इनका जिक्र होना जरूरी है।

लौरा बस्सी

वीमेन इन साइंस में अगला नाम है इटली की भौतिक विज्ञानी और वैज्ञानिक लौरा बस्सी का। इन्होंने 1732 में बोलोग्ना विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। उस वक्त यह उपाधि किसी विश्वविद्यालय द्वारा किसी महिला को औपचारिक रूप से दी जाने वाली दूसरी डिग्री थी। यह भी कहा जाता है कि वह विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षित होने वाली पहली महिला थीं। एमिली डू चेटेलेट की तरह बस्सी ने भी इटली में न्यूटनियन मैकेनिक्स के अध्ययन को प्रसारित करने में अहम भूमिका निभाई थी।

मारिया मार्गारेथे किर्च

17वीं सदी के अंत और 18वीं सदी की शुरुआत में किर्च एक प्रसिद्ध जर्मन खगोलशास्त्री थीं। वह 1702 में अज्ञात धूमकेतु C/1702 H1 की खोज करने वाली पहली महिला थी। किर्च ने कैलेंडर और पंचांग बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो समुद्री नेविगेशन में मददगार थे। अपने पति गॉटफ्रीड किर्च की सहयोगी के रूप में मारिया किर्च अपने समय के अन्य खगोलविदों से कम नहीं थीं। फिर भी अपने पति की मृत्यु के बाद उन्हें रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज में बतौर खगोलशास्त्री अपना स्थान लेने की अनुमति नहीं थी। जब एकेडमी में चुने गए पुरुष अपना काम करने में विफल रहे, तब जाकर मारिया किर्च को उनके स्थान पर काम पर रखा गया। अंततः उनके काम ने उन्हें 1709 में रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज, बर्लिन का स्वर्ण पदक दिलाया।

मारिया गेटाना एग्नेसिक

18वीं सदी में इटली की गणितज्ञ मारिया किसी विश्वविद्यालय में गणित की प्रोफेसर के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला थी। वह गणित की हैंडबुक लिखने वाली भी पहली महिला थी। उस हैंडबुक में इंटीग्रल और डिफरेंशियल कैलकुलस दोनों पर चर्चा की गई थी। गणित के क्षेत्र में ख्याति हासिल करने वाली पहली महिला एग्नेसी के नाम पर एक क्षुद्रग्रह, शुक्र ग्रह का एक गड्ढा और एक गणितीय वक्र का नामकरण किया गया। जो कि इनकी उपलब्धि को दर्शाता है। वीमेन इन साइंस में इसलिए इनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

ईवा एकेब्लाड

एकेबाल्ड 18वीं सदी की स्वीडिश कृषि विज्ञानी थी, जिन्हें आलू से अल्कोहल और आटा बनाने की विधि खोजने का श्रेय प्राप्त है। उनकी खोज ने 1746 में स्वीडन को अकाल से उबरने में मदद की थी। इसके साथ ही वह 1748 में रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज की पहली महिला मानद सदस्य बनीं। एकेबाल्ड ने यह भी खोजा कि सूती कपड़े और धागे को साबुन से कैसे ब्लीच किया जाता है। उन्होंने सौंदर्य प्रसाधनों में हानिकारक रसायनों के स्थान पर आलू के आटे का उपयोग करने का तरीका भी खोजा था।

एडा लवलेस

एजा लवलेस वीमेन इन साइंस की एक अद्भुत मिसाल है। ऑगस्टा एडा किंग-नोएल, काउंटेस ऑफ लवलेस, जिसे एडा लवलेस के नाम से जाना जाता है, 19वीं सदी की अंग्रेजी गणितज्ञ और लेखक थीं। लवलेस खुद को एक ‘विश्लेषक’ कहती थीं और अक्सर अपने नजरिए को ‘काव्य विज्ञान’ के रूप में बयां करती थीं। उन्होंने चार्ल्स बैबेज के कंप्यूटिंग मशीन के शुरुआती वर्जन पर नोट्स बनाए। उन्होंने अपने नोट्स में इस बात का अवलोकन किया कि समाज इस तरह की तकनीक से ‘सहयोगी उपकरण’ के रूप में कैसे जुड़ सकता है। उन्हें पहली कंप्यूटर प्रोग्रामर होने का श्रेय दिया जाता है। साथ ही ‘कंप्यूटिंग मशीन’ और इसके उपयोग को समझने वाली पहली महिला भी कहा जाता है। उनके अवलोकन और स्पष्टीकरण ने बैबेज के काम में बहुत मदद की। लवलेस ने उनके ‘एनालिटिकल इंजन’ को बर्नौली नंबर की गणना करने के लिए एक एल्गोरिथम भी दिया था।

लिसा मेटनर

मेटनर 20वीं सदी की ऑस्ट्रियाई-स्वीडिश परमाणु भौतिक विज्ञानी थी। जिन्होंने यूरेनियम के परमाणु विखंडन की खोज में वैज्ञानिकों के एक समूह का नेतृत्व किया था। यह खोज बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा विकसित परमाणु हथियारों का आधार बनी। परमाणु विखंडन की खोज के लिए रसायन विज्ञान में 1944 का नोबेल पुरस्कार केवल उनके सहयोगी और सह-प्रमुख ओटो हैन को मिला। उस वक्त मेटनर के योगदान को दरकिनार किया गया। हालांकि, बाद में उन्हें कई अन्य पुरस्कार और सम्मान दिए गए। मेटनर जर्मनी में एक विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला भी थीं।

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