लिंग भेद

धुंधला पड़ता लिंग भेद

नारीवाद (Feminism) के हालिया इतिहास में मातृतंत्र (ऐसा समाज जिसमें महिलाओं, खासकर माताओं) को अक्सर महिला सशक्तिकरण (Women empowerment) का प्रतीक माना गया है। ऐसे अनेक समूह, परिवार और कबीले, जिनका नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं, उनको महिला शक्ति (Women power) का उदाहरण बताकर पेश किया जाता है। हालांकि, जब हम मातृतंत्र अथवा मातृसत्ता की संकल्पना का शोध करने निकलते हैं, तो पता चलता है कि इसमें मातृतंत्र का आधुनिक समाज (Modern society) और इससे जुड़ी गलत धारणाओं के साथ टकराव है।

समाजशास्त्री डॉ. मलाथी वी गोपाल लिंग भेद (Gender discrimination) के बारे में बताती हैं, ‘मातृसत्ता और पितृसत्ता में ज्यादा अंतर नहीं है। मातृसत्ता (Matriarchy) में भी महिलाओं को परिवार और वित्तीय मसलों में सर्वाधिकार हासिल होता है। इसे भी विभिन्न संस्कृति (Different culture) और भूभागों में मातृवंशीयता के साथ समय-समय पर बदला जाता रहा है। हालांकि, मातृवंशीयता, जो मातृसत्ता का ही एक प्रकार है, अक्सर वंश के साथ जुड़ा होता है। इसमें परिवार (Family) का नाम महिला के मायके से आता है और इस परिवार की बेटी को ही उसकी मां की संपत्ति मिलती है। इस पद्धति में महिलाओं को आमतौर पर घर की चहारदीवारी के बाहर का कोई अधिकार नहीं मिलता है।

मातृसत्ता के एक विशेष उदाहरण के रूप में हम मेट्रिस को देख सकते हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय (Jadavpur University) में कंपैरेटिव लिटरेचर (Comparative literature) की प्रोफेसर सूचोरिता चट्टोपाध्याय के अनुसार कनाडा के ‘फस्ट नेशन’ के लोग निश्चित तौर पर मातृवंशीय थे। दरअसल, वहां के समुदाय (Community) की महिलाओं ने ही फ्रेंच कारोबारियों (French businessmen) की कनाडा के जंगल से उच्च श्रेणी के छाल लेने के लिए आने में सहायता की थी। इस समुदाय के पुरुष घर पर ही रहते थे। वे न तो घर के काम में सक्रिय थे और न ही बाहर जाकर कोई कारोबार करने में। आश्चर्यजनक रूप से यह व्यवस्था ज्यादा दिन नहीं चली। इस समुदाय पर यूरोपियन संस्कृति (European culture) का प्रभाव बढ़ता गया और फिर अंतर नस्लीय विवाहों (Inter-racial marriages) ने मातृसत्ता को समाप्त कर दिया। इस समुदाय के पुरुषों को जल्द ही समझ में आ गया कि समुदाय के बाहर सत्ता का खेल उल्टी दिशा में चलता है। इसके बाद इन पुरुषों ने पितृसत्ता (Patriarchy) की प्रणाली को अपनाना शुरू कर दिया। इसी प्रकार अन्य कबीलों एवं समुदायों पर भी पितृसत्ता का वैश्विक प्रभाव (Global impact) बढ़ता गया और मातृसत्ता कमजोर होती चली गई। यहां हम कुछ ऐसे ही कबीलों की चर्चा करेंगे।

गारो एवं खासी समुदाय (Garo and Khasi Community)

गारो एवं खासी समुदाय करीबी पड़ोसी हैं। ऐसे में दोनों ही स्थानों पर सत्ता की एक समान प्रणाली है। दोनों ही वंश में महिलाएं अपनी मां की संपत्ति की उत्तराधिकारी होती हैं। हालांकि, पुरुषों के पास सत्ता का स्थान होता है और वह ही संपत्ति की देखरेख करते हैं। समुदाय में लिंग भेद नहीं दिखता, यहां सबको अधिकार प्राप्त है।

मोसुओ कबीला (Mosuo clan)

तिब्बत (Tibet) की सीमा पर रहने वाला यह कबीला यूनान और सिचुआन प्रांत (Greece and Sichuan Province) का है। यह कबीला मातृसत्ता का प्रतीक माना जाता है। दरअसल, इसे चीनी सरकार (Chinese government) ने विशेष दर्जा दे रखा है और अब यह नक्सी के रूप में पहचाने जाने वाले सजातीय अल्पसंख्यक समुदाय (Minority community) का हिस्सा है। इस कबीले में महिलाएं ही अपने विस्तृत परिवार की मुखिया होती हैं और कारोबार संभालती हैं। यहां पुरुषों के पास प्रशासन और राजनीति को संभालने की जिम्मेदारी होती है। इस कबीले में भी लिंग भेद की झलक नहीं दिखती है।

अकान कबीला (Akan clan)

लिंग भेद की बात करें तो इस कबीले में वंश की स्थापना महिलाएं करती हैं, लेकिन नेतृत्व की जिम्मेदारी पुरुषों के पास होती है। हालांकि, यह जिम्मेदारी पुरुषों को महिलाएं ही सौंपती हैं। पुरुषों से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने परिवार के साथ ही महिला के परिवार के सभी रिश्तेदारों की देखभाल करेंगे।

ब्रिब्री कबीला (Bribri clan)

ब्रिब्री कबीला कोस्टा रिका (Costa Rica) के तालमांचा कैन्टॉन जंगल में रहता है। हर मातृसत्तात्मक समुदाय के जैसे ही यह कबीला भी अपनी माता के वंश का नाम ही अपनाता है। लिंग भेद की बात करें तो यहां भूस्वामी होने का एकाधिकार महिलाओं के पास होता है।

मिनांगकाबाऊ कबीला (Minangkabau clan)

इस कबीले में महिलाएं ही परिवार की मुखिया होती हैं। वे ही कबीले की संपत्ति की रखवाली करती हैं, जो उन्हें अपनी मां से मिली होती है। महिलाएं घर का ध्यान रखती हैं, जबकि पुरुषों के पास राजनीति और आध्यात्मिकता को संभालने की जिम्मेदारी होती है। वंश का मुखिया तो पुरुष ही होता है, लेकिन उसका चयन महिलाएं करती हैं। ऐसे में महिलाओं के पास यह अधिकार होता है कि यदि उसे लगता है कि पुरुष को सत्ता से हटाना है, तो वह ऐसा कर सकती हैं। इंडोनेशिया (Indonesia) के इस कबीले को दुनिया का सबसे बड़ा मातृसत्तात्मक समुदाय माना जाता है। मानव विज्ञानियों का मानना है कि यह कबीले और समुदाय परंपरा और आधुनिक दुनिया के बीच में फंसे हैं। ऐसे में उनके लिए दुनिया में अपने असली स्थान का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है। हालांकि अब बाहरी प्रभाव की वजह से इन समुदायों में भी अपने हितों की बात को लेकर काफी परिवर्तन आ रहा है। इस समुदाय में लिंग भेद की झलक दिखती है।

केरल (Kerala) के नायर समुदाय (Nair community) का उदाहरण देते हुए डॉ. गोपाल कहती हैं कि, ‘इस समुदाय ने मातृसत्ता को सामाजिक कारणों से अपनाया था। यहां के पुरुष योद्धा थे, अत: अक्सर घर से बाहर रहते थे। इसी वजह से पारिवारिक और वित्तीय जवाबदेही महिलाओं को ही निभानी पड़ती थी’। हालांकि, अब स्थितियां बदल रही हैं। अब कबीलों के बीच लड़ाई नहीं होती और पुरुष घर पर ही रहते हैं। ऐसे में वे परिवार की हर जिम्मेदारी निभाने का काम कर रहे हैं।

वे आगे कहती हैं कि मातृसत्ता और मातृवंशीयता बीते दिनों की बात होती जा रही है। इससे अहम परिणाम सामने आया है। ‘पितृसत्तात्मक समुदाय की महिलाओं के मुकाबले मातृसत्तात्मक अथवा मातृवंशीय समुदाय की महिलाएं अपने विचारों को लेकर ज्यादा मुखर होती हैं। उन्हें समुदाय में ज्यादा सम्मान मिलता है, हालांकि उनके पास संपूर्ण अधिकार नहीं होता है।’

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