भारत के घुड़सवार देवता

भारत के घुड़सवार देवता

घुड़सवार देवताओं की कहानियां भारत की स्थानीय संस्कृतियों में प्रचलित हैं। गुजरात के कच्छ में जाख बोटेरा अर्थात 72 घुड़सवार ‘यक्ष’ योद्धाओं का मंदिर है।

कुछ दिन पहले मुझे ग्रामीण राजस्थान के कुछ भागों में किए गए अनुष्ठान के बारे में बताया गया। जब भी किसी शादी की बरात मोमाजी के मंदिर के सामने से गुज़रती है, तब बराती मोमाजी को दीये (आमतौर पर सूखे नारियल में रखे गए), भोजन (गेहूं) और अन्य भोग अर्पित करते हैं। मोमाजी को घोड़ों पर सवार नायकों से दर्शाया जाता है। आमतौर पर पेड़ के नीचे और खुली हवा में स्थित इन मंदिरों में शानदार घुड़सवार योद्धाओं की प्रतिमाएं होती हैं। इन योद्धाओं की कहानियों से हम उनके बारे में बस इतना ही जानते हैं कि वे बहनों या दुल्हनों के साथ उनके पति के घर जाते हैं और राक्षसों व डकैतों से लड़ते हैं। यह स्पष्ट रूप से राजस्थान के लोक धर्म का हिस्सा है।

घुड़सवार देवताओं की कहानियां भारत की स्थानीय संस्कृतियों में प्रचलित हैं। गुजरात के कच्छ में जाख बोटेरा अर्थात 72 घुड़सवार यक्षयोद्धाओं का मंदिर है। इनके बारे में भी हमें बस इतना पता है कि जो लोग उनकी पूजा करते हैं, उन्हें वे सुरक्षित रखते हैं और गर्भधारण में उनकी मदद करते हैं। मंदिर घुड़सवार योद्धाओं की प्रतिमाओं से भरा हुआ है। जाख बोटेरा की एकमात्र बहन का नाम सायरी है। यह योगिनी और मातृका मंदिरों को प्रतिबिंबित करता है, जहां महिलाओं के समूह में एक पुरुष भैरव होता है। इस दिव्य घुड़सवार सेना को मेलों में सम्मानित किया जाता है।

तमिलनाडु के लोक धर्म में भी घुड़सवार देवताओं को मनौती के रूप में टेराकोटा के घोड़े अर्पित किए जाते हैं। वहां के ग्रामीण भागों में घुड़सवार योद्धाओं की विशाल प्रतिमाएं पाई जाती हैं। ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में काले घोड़े पर सवार गोरी चमड़ी वाले योद्धा और सफ़ेद घोड़े पर सवार काली चमड़ी वाले योद्धा की प्रतिमाएं प्रसिद्ध हैं। ये प्रतिमाएं शिव और विष्णु या बलराम और कृष्ण का प्रतीक है।

दक्खन में विशेष रूप से महाराष्ट्र में खंडोबा सबसे लोकप्रिय क्षेत्रीय देवता हैं। वे उत्तरी कर्नाटक और तेलंगाना में भी लोकप्रिय हैं, जहां उन्हें क्रमशः मैलारा और मल्लाना के नाम से जाना जाता है। कला में उन्हें आम तौर पर एक सफ़ेद घोड़े पर सवार दिखाया जाता है, उनकी पत्नी के साथ, जो उसी घोड़े पर सवार होती है। लोकसाहित्य के अनुसार खंडोबा दानव भाइयों – मल्ला और मणि – से लड़े। खंडोबा, जिन्हें शिव का एक रूप माना जाता है, का मुख्य मंदिर पुणे के पास जेज़ुरी में है।

पुराणों में विष्णु के घुड़सवार अंतिम अवतार कल्कि का उल्लेख है। लेकिन राम या कृष्ण के घोड़ों पर सवार होने का कोई उल्लेख नहीं है। अन्य घुड़सवार देवताओं में जुड़वां अश्विन शामिल हैं, जो नकुल और सहदेव के पिता हैं, जो स्वयं घोड़ों से जुड़े हैं। इंद्र के पुत्र रेवंत घुड़सवारों के देवता हैं।

घोड़ा मूलतः भारत का प्राणी नहीं है। संभवतः बारिश का मौसम उसके अनुकूल नहीं है। इसलिए उत्तर पश्चिम से घोड़ों को लगातार भारत में आयात किया जाता था। भारत में घोड़ों की केवल कुछ नस्लों को पाला जाता था, जिनमें राजपूतों द्वारा पाले गए मारवाड़ी घोड़े एक मुख्य नस्ल है। काठियावाड़ी, मणिपुरी और दक्खनी घोड़े अन्य कुछ नस्लें हैं।

वैदिक काल में घोड़ों द्वारा खींचे गए रथों पर यात्रा करने वाले देवताओं का अधिक उल्लेख है। घुड़सवारी उन योद्धाओं से अधिक जुड़ी हुई है जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया – यूनानी, हुन, गुर्जर, शक, और अंत में तुर्क और मुग़ल जैसे मध्य एशियाई सरदारों से। स्थानीय साहित्य में सभी को यवनअर्थात घोड़ों पर सवार गोरी चमड़ी वाले पुरुष कहकर संबोधित किया गया।

संभवतः समय के साथ उन्हें अपनी ताकत के लिए पूजा जाने लगा हो। उन्होंने भाड़े के सैनिकों का काम किया, जो शुल्क के बदले उनके जैसे अन्य सैनिकों से गांव की रक्षा करते थे। उन्हें लोकसाहित्य का हिस्सा बनाकर सड़क किनारे मंदिरों में प्रतिष्ठापित किया गया। वे मोमाजी और जाख बोटेरा जैसे संरक्षक देवता बन गए, जो इतने लोकप्रिय थे कि उनका उल्लेख मंदिरों से जुड़े साहित्य में, यहा तक कि पुराणों में भी होने लगा। इसका एक उदहारण कल्कि है। कहा जाता है कि वे भविष्य में आकर पुरानी व्यवस्था को नष्ट करके एक नई व्यवस्था का निर्माण करेंगे।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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