जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद कैसे बनें हिंदी साहित्य का बड़ा नाम?

प्रसाद जी के आरंभिक जीवन से ही उनका प्रेम और रुझान हिंदी साहित्य की ओर दिखता है। उन्होंने केवल 9 साल की उम्र में अपने गुरु ‘रसमय सिद्ध’ को ‘कलाधर’ नामक सवैया लिख कर दिया था।

महाकवि कथाकार, नाटककार और रचनाकार जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता। कक्षा पांचवी से लेकर 12वीं तक, ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक, हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की रचनाएं देखने को मिलती हैं। जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) की रचनाएं न केवल पढ़ने में सरल होती हैं बल्कि हमें ज्ञान और प्रेरणा भी देती हैं। ‘छायावाद’ के कवि जयशंकर प्रसाद साहित्य को अपनी साधना समझते थे। वह उपन्यास को ऐसे लिखते थे मानो वह उसे पूजते हो। जयशंकर प्रसाद की कई सारी कविताएं और कहानियां हैं जो हिंदी साहित्य का अद्भुत आईना दिखाने का काम करती हैं।

प्रसाद जी के आरंभिक जीवन से ही उनका प्रेम और रुझान हिंदी साहित्य की ओर दिखता है। उन्होंने केवल 9 साल की उम्र में अपने गुरु ‘रसमय सिद्ध’ को ‘कलाधर’ नामक सवैया लिख कर दिया था। सवैया कविता का एक छंद होता है जो किसी की तारीफ में लिखा जाता है। पहले उनके बड़े भाई शंभू रत्न चाहते थे कि वे अपने पैतृक व्यवसाय को संभाले। लेकिन, काव्य रचना की तरफ उनके प्यार देखते हुए, उन्होंने प्रसाद जी को लेखन की पूरी छूट दे दी। अपने बड़े भाई की सहमति और आशीर्वाद के साथ वो पूरे तन-मन से हिंदी साहित्य लेखन और काव्य रचना की आराधना में लग गये। उन्होंने अपने जीवन में कई कविताएं और कहानियां लिखीं। उनके लिखे बहुत से उपन्यास आज भी पाठकों की पहली पसंद बने हुए हैं।

प्रसाद ने ‘इन्दु’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया और साहित्य जगत में उन्हें वहीं से पहचान मिली। वो हिंदी साहित्य को अपनी साधना समझते थे। महाकवि जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में से एक थे। हिंदी साहित्य में उनका योगदान स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है। राजनीतिक संघर्ष और संकट की स्थिति में राज पुरुष का व्यवहार उन्होंने बड़ी गहराई से समझा और लिखा। आधुनिक उपन्यास के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद एक बेहतरीन लेखक के रूप में उभरें। आइए आगे जानते हैं प्रसाद जी का हिंदी साहित्य में योगदान।

जयशंकर प्रसाद का लेखन (Jaishankar Prasad ka lekhan)

आधुनिक हिंदी साहित्य में छायावाद के महाकवि जयशंकर प्रसाद ने अपनी उत्तम रचनाओं के ज़रिए पूरे राष्ट्र को नई चेतना दी। जयशंकर प्रसाद न केवल हिंदी के महान कवियों में एक हैं बल्कि हिंदी के महान कथाकार, नाटककार और निबंधकार भी हैं। प्रसाद जी की कालजयी रचना ‘कामायनी’ संपूर्ण हिंदी काव्य की अनोखी कृति है, जिसमें मानव जीवन के अंतर्विरोध (Contradiction), संघर्ष और व्याकुलता का उन्होंने बेहद गंभीर और भावपूर्ण चित्रण करने के साथ-साथ, वास्तविकता और मानवीय मूल्यों को नया आयाम भी दिया।

‘कामायनी’ काव्य खंड जहां उन्हें महाकवि के रूप में प्रतिष्ठित करता है, वहीं कथा, नाटक और निबंध लेखन के क्षे़त्र में भी वो एक बेहद गंभीर साहित्यकार के रूप में सामने आए। महज 47 साल के अपने अल्प जीवनकाल में जयशंकर प्रसाद ने कविता और कहानी के क्षेत्र में बहुत-सी रचनाएं रचीं।

उनके काव्य संग्रह ‘लहर’ में एक कविता की पंक्तियां हैं:

‘छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएं आज कहूं?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूं?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा?
अभी समय भी नहीं थकी-सोई है मेरी मौन-व्यथा।’

प्रसाद जी की इस कविता के अलावा ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’ और ‘इंद्रजाल’ मशहूर कहानी संग्रह हैं। उनकी कहानियों में प्यार और सामाजिक संबंध के साथ ही सांस्कृतिक चेतना का तड़का है, जो सामान्य व्यक्ति के जीवन के कई रूप को दिखाता है।

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad ka jivan parichaye)

जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 ई॰ में गुरुवार के दिन, काशी के गोवर्धन सराय में हुआ था। उनके दादा जी बाबू शिव रतन साहू दान देने के लिए जाने जाते थे और उनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी भी दान देने के साथ-साथ कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। उनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशीनरेश के बाद ‘हर हर महादेव’ से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी।

प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई थी, लेकिन बाद में उनकी शिक्षा का बंदोबस्त घर पर ही किया गया, जहां उन्होंने हिंदी और संस्कृत की पढ़ाई की। प्रसाद जी के प्रारंभिक शिक्षक श्री मोहिनीलाल गुप्त थे। वे कवि थे और उनका उपनाम ‘रसमय सिद्ध’ था। शिक्षक के रूप में वे बहुत मशहूर थे। ‘रसमय सिद्ध’ जी ने प्रसाद जी को प्रारंभिक शिक्षा दी और हिंदी और संस्कृत में अच्छी प्रगति करा दी। घर के वातावरण के कारण, उनमें शुरुआत से ही साहित्य और कला के प्रति रुचि थी। कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्यशास्त्र को खूब पढ़ा। वे बाग-बगीचे की देखभाल करने और भोजन बनाने के शौकीन थे और साथ ही शतरंज के खिलाड़ी भी थे।

प्रसाद जी की पहली दो पत्नियां क्षयरोग से ग्रस्त होकर चल बसीं। इसके बाद घर वालों के दबाव से उन्होंने तीसरी शादी की जिससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। अंत में प्रसाद जी खुद भी क्षय रोग की चपेट में आ गए थे। लंबे समय तक होमियोपैथिक और कुछ समय आयुर्वेदिक चिकित्सा का सहारा लेने के बावजूद भी वो इस बीमारी से आज़ाद न हो सके और अंत में उनकी मृत्यु हो गई।

जयशंकर प्रसाद की रचनाएं (Jaishankar Prasad ki rachanayein)

कामायनी हिंदी भाषा का एक महाकाव्य है। इसके रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं। ये आधुनिक छायावादी युग का सबसे उत्तम हिंदी महाकाव्य है। ‘प्रसाद’ जी की ये आखिरी काव्य रचना 1936 ई. में प्रकाशित हुई, लेकिन इसकी लोकप्रियता 7-8 साल बाद ही शुरू हुई। ‘चिंता’ से शुरू कर ‘आनंद’ तक 15 सर्गों के इस महाकाव्य में मानव मन की बहुत-सी अंतर्वृत्तियों (Insticts) के बारे में इस कौशलता से बताया गया है कि मानव सृष्टि की शुरुआत से लेकर अब तक के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी साफ हो जाता है। ये महाकाव्य अब भी लोगों के बीच जयशंकर प्रसाद जी के शब्दों को ज़िंदा रखता है। जयशंकर प्रसाद की रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य की मजबूत नींव की तरह नज़र आती हैं।

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