सूरदास के काव्य की ताकत

कवि सूरदास की रचनाएं जगाती है भक्ति भावना और ईश्वर के प्रति विश्वास

माना जाता है कि कवि सूरदास 105 वर्ष तक जिएं और जब तक उनकी ज़िंदगी रही, तब तक उन्होनें सिर्फ कृष्ण की आराधना की।

16वीं शताब्दी के कवि और भगवान कृष्ण के भक्त सूरदास, भारत में भक्ति काल के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक हैं। उनकी कविता आध्यात्मिक गहराई और पढ़ने वालों के दिलों में भक्ति की भावना और ईश्वर के प्रति विश्वास जगाने के लिए जानी जाती है।

कवि सूरदास ने भगवान कृष्ण की भक्ति में कई कविताएं, भजन और गीत लिखें हैं। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में; सूर सागर, साहित्य लहरी, सुर सारावली, कृष्णस्तकम, भक्तमाल, भक्तिरसबोधिनी, नंदलाल लीलामृत, सुर-सरावली पदावली, वासुदेव लीलामृत, हितोपदेश शामिल हैं।

महाकवि सूरदास की रचनाएं विभिन्न विषयों के बारे में बताती हैं जैसे; ईश्वर की प्रकृति, इंसान और भगवान के बीच का रिश्ता, भक्ति का महत्व और भगवान कृष्ण की सुंदरता आदि।

इस लेख में, हम सूरदास के काव्य की ताकत के बारे में जानेंगे कि किस तरह आज भी सूरदास के काव्य लोगों को प्रेरित कर रहें हैं।

कवि सूरदास के काव्य की ताकत और विशेषताएं निम्न हैं (Kavi Surdas ke kavya ki takat aur visheshtayen nimn hai)

भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और आस्था

सूरदास की कविता की सबसे बड़ी ताकत भगवान कृष्ण के लिए उनकी भक्ति और आस्था है। उनकी कविताएं अपने सबसे प्यारे देवता के लिए प्रेम और भक्ति से भरी हुई हैं। माना जाता है कि सूरदास 105 वर्ष की लंबी आयु तक जिएं और जब तक उनकी ज़िंदगी रही तब तक उन्होनें सिर्फ कृष्ण की आराधना की।

सूरदास के काव्य से एक भावनात्मक पद

चरनकमल बंदौ हरिराई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौं सब कछु दरसाई।।
बहिरौ सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बारबार बंदौ तिहि पाई।।

अर्थ: भक्ति भाव से लिखे गए इस पद में कवि सूरदास कहते हैं कि मैं कृष्ण के चरण कमल की वंदना करता हूं। मैं उस कृष्ण को प्रणाम करता हूं जिनकी कृपा से लंगड़ा इंसान भी चलने लगता है, अंधे को सब दिखाई देने लगता है, बहरे को सब सुनाई देने लगता है और एक गरीब इंसान भी राजा की तरह अपने सिर पर छत्र (राज-सिंहासन के ऊपर लगाया जानेवाला बड़ा छाता) लेकर चलने लगता है। सूरदास कृष्ण को दया से भरपूर मानते हैं और उन्हें बार-बार प्रणाम करते हैं।

सरलता है इनकी काव्य की ताकत

सूरदास के काव्य की एक ताकत उनकी सरलता है। उनकी कविताओं को समझना बेहद आसान है। कवि सूरदास ने आसान भाषा, अलंकार और कल्पना की मदद से ऐसे काव्य की रचना की है, जो हर किसी को आसानी से समझ में आ सके।

सूरदास के काव्य से एक सरल पद

मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥
देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो।
हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥

अर्थ: कवि सूरदास के इस पद को पढ़ने पर कृष्ण का बाल रूप हमारे आंखों के समाने उतरने लगता है। ऊपर की कविता का अर्थ है कि कृष्ण भगवान को चोरी से मक्खन खाते हुए मां यशोदा ने पकड़ लिया है। अब कृष्ण सफाई दे रहें हैं कि उन्होनें माखन चुराकर नहीं खाया है, बल्कि उनके दोस्तों ने उन्हें फंसाने के लिए, उनके मुंह में जबरदस्ती माखन लगा दिया है। कृष्ण कह रहें हैं, मां आप ही तो कहती हैं कि मैं छोटा हूं, तो माखन के घड़े तक कैसे पहुंच पाऊंगा।

भावना की गहराई

सूरदास का काव्य भावनात्मक गहराई के लिए भी जाना जाता है। उनकी कविताएं प्रेम, त्याग, उदासी और इच्छा की भावनाओं से भरी हुई हैं। सूरदास इंसानी भावनाओं को समझने और उन्हें अपनी कविता के माध्यम से बताने में सक्षम थे। एक आम इंसान अपने जीवनकाल में जो भी महसूस करता है, सूरदास की कविता में वो हर भावना नज़र आती है।

सूरदास के काव्य से एक भावनात्मक पद

मधुकर! स्याम हमारे चोर।
मन हरि लियो साँवरी सूरत, चितै नयन की कोर।।
पकरयो तेहि हिरदय उरअंतर प्रेमप्रीत के ज़ोर।
गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।।
सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर।
सूर, स्याम मुसकाहि मेरो सर्वस सै गए नंद किसोर।।

अर्थ: यहां सूरदास ने लिखा है कि भगवान श्री कृष्ण मेरे दिल के चोर हैं। उनकी सांवली सूरत और उनकी नज़रें मेरा दिल जीत चुकी हैं। उनके प्यार से मेरा दिल सराबोर है। कृष्ण ने उन्हें हर बंधन से मुक्त कर दिया है। वो मुझे देखकर मुसकुराते हैं और वे मेरे लिए सबसे सबकुछ हैं।

आध्यात्मिकता का है रस

सूरदास की कविता केवल भक्ति और भावनाओं के बारे में नहीं है, बल्कि ये आध्यात्मिकता के बारे में भी हैं। उनकी कविताएं भगवान की लीला, इंसान की अलग-अलग स्थिति और दोनों के बीच के संबंध को भी जोड़ती है। आध्यात्मिकता में सूरदास की समझ, सालों से कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है।

सूरदास के काव्य से एक आध्यात्मिक पद

रे मन, गोबिंद के है रहियै।
इहिं संसार अपार बिरत है, जम की त्रास न सहियै।
दुःख, सुख, कीरति, भाग आपनैं आइ परै सो गहियै।
सूरदास भगवंतभजन करि अंत बार कछु लहियै।।

अर्थ: यहां महाकवि सूरदास कह रहें हैं कि ऐ मन! तुम हमेशा कृष्ण की भक्ति में ही लगे रहना। यह संसार बहुत बुरा है, इसके मोह से मुक्त हो जाना चाहिए। आपको यहां जो भी मिले, उसमें खुश रहना चाहिए जैसे खुशी, समृद्धि। ज़िंदगी के आखिरी पलों में भी भगवान की आराधना करनी चाहिए, ताकि इस संसार से छुटकारा मिले।

संगीत से भरपूर

सूरदास की कविता सिर्फ पढ़ी ही नहीं बल्कि गाई भी जाती है। उनके काव्य में लिखी सभी कविताओं को भजन या भक्ति के गाने के रूप में गाए जाने के लिए रचा गया था। सूरदास की कविता में लय और बेहद खूबसूरत पंक्तियां नज़र आती हैं। इन्हें सामान्य तरीके से पढ़ने पर भी ये किसी गाने की तरह सुनाई देती हैं।

संगीतमय एहसास के साथ सूरदास का लिखा पद

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।
तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥

अर्थ: कवि सूरदास की कविता के इस अंश का अर्थ है कि मां यशोधा कृष्ण को पालने में सुलाने की कोशिश कर रहीं हैं। कभी वो पालने को झुलाने लगती हैं, कभी कृष्ण को पुचकारने लगती हैं, तो कभी गुनगुनाने लगती हैं। लेकिन, इन सब के बाद भी कृष्ण नहीं सो रहें हैं, तब मां यशोदा कहती हैं कि ऐ नींद तुम जल्दी से आकर मेरे कान्हा को क्यूं नहीं सुलाती हो।

महाकवि और कृष्ण भक्त सूरदास के काव्य की यही विशेषताएं उन्हें भक्तिकाल से लेकर आज तक, सबके जुबान पर यादगार बना पाईं हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी सूरदास के काव्य के करोड़ों अनुयायी रहें हैं और आने वाली पीढ़ी में भी सूरदास के काव्यों की गूंज सुनाई देती रहेगी।

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।