वन्यजीव संरक्षण

वन्यजीव संरक्षण: बेज़ुबानों के लिए हमें अपनी आवाज़ करनी होगी बुलंद

मानव को अन्य जीवों की तुलना में विवेक मिला है पर वो उसका इस्तेमाल दूसरे जीवों को परेशान करने, उनको कष्ट देने और नष्ट करने में कर रहा है। मानव प्रकृति पर सिर्फ अपना अधिकार समझता है। हालांकि, हमें खुद को ऐसा सोचने से रोकना होगा।

बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दुनिया भर में जंगलों की कटाई हो रही है। मगर, प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए जंगलों का होना बहुत ज़रूरी है। मनुष्य के लालच के कारण कई जीवों का घर छिन चुका है। इंसान जानवरों के रहने के लिए कोई जगह छोड़ना ही नहीं चाहता। इसकी वजह से मानव ने तो अपना काम पूरा कर लिया है पर कई बेजुबानों को बेघर कर दिया है। जंगलों की कटाई की वजह से कई खतरनाक प्रभाव देखने को मिले हैं, जिनमें खासतौर पर, जानवरों के आश्रय का विनाश, ग्रीनहाउस गैस में बढ़ोतरी, ग्लेशियरों का पिघलना, जिसकी वजह से समुद्र के स्तर में वृद्धि हो रही है, ओजोन परत कम हो रही है और तूफान, बाढ़, सूखा आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

हमें पहले वन्य जीवों के महत्व को समझना होगा, तभी हम उन्हें बर्बाद होने से बचा सकते हैं। रंग-बिरंगी तितलियों से लेकर मेढ़क, पक्षी, जंगली जानवर, कछुआ और बाकी सभी स्थानीय परिंदों का अवैध शिकार करके इन्हें बेचा जाता है। लोग अपने आर्थिक लाभ के लिए खास प्रजातियों के पेड़-पौधे और जीव–जन्तुओं को शहर, कस्बे और देश-विदेशों में बेच देते हैं, जिससे उनकी प्रजातियां ख़तरे में पड़ जाती हैं।

मानव को अन्य जीवों की तुलना में विवेक मिला है पर वो उसका इस्तेमाल दूसरे जीवों को परेशान करने, उनको कष्ट देने और नष्ट करने में कर रहा है। मानव प्रकृति पर सिर्फ अपना अधिकार समझता है। हालांकि, हमें खुद को ऐसा सोचने से रोकना होगा। इस संसार में हर एक छोटे-से-छोटा जीव भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है और प्राकृतिक बैलेंस को नियंत्रित रखने के लिए ज़रूरी है। इसलिए हमें उन बेजुबानों के लिए आवाज़ उठा कर उनकी रक्षा करनी होगी। कुछ तरीकों को अपना कर हम वन्यजीवों के संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं।

वन्य जीव संरक्षण में राष्ट्रीय उद्यानों की क्या भूमिका है? (Vanyejeev sanrakshan mein rashtriye uddyano ki kya bhumika hai?)

वन्य जीव संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यान एक ऐसा क्षेत्र है जो वन्यजीवों और जैव विविधता के संरक्षण के लिए आरक्षित होता है। जहां विकास, वानिकी (forestry), अवैध शिकार, खेती या चराई जैसी सभी गतिविधियों पर पाबंदी होती है। सरकार किसी क्षेत्र को तब राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित कर सकती है जब वो पूरी तरह पारिस्थितिक (ecological), भू-आकारिकी (geo-morphological) और प्राकृतिक रूप से ज़रूरी हो। इन पार्कों पर किसी का अधिकार नहीं होता है। ये आमतौर पर ऐसे छोटे हिस्से होते हैं, जो 100 वर्ग किमी से 500 वर्ग किमी की जगह में फैले हुए होते हैं। राष्ट्रीय उद्यानों में वनस्पतियों या जीवों की प्रजातियों के संरक्षण पर जोर दिया जाता है। प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में वनस्पतियां (पेड़-पौधे और जंगल) सबसे अहम भूमिका निभाती हैं। वन्य जीवन के बिना, संसार में जीवन विकास की क्रिया ठप्प पड़ जायेगी। पर्यावरण सुरक्षा को लेकर इस तरह की चर्चा हर तरफ सुनाई देती है।

जैसा कि हम जानते हैं, पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी जीव, जानवर और इंसान प्रकृति की संतान हैं। सभी एक-दूसरे की भलाई में काम करते हुए आपसी संबंध बनाकर जुड़े हैं, जैसे एक परिवार के सदस्य। ऐसा इसलिए है क्योंकि सभी जीवों की रचना ‘डी.एन.ए.’ (डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड) से हुई है, जो पृथ्वी में जीवन विकास के बुनियादी निर्माण का हिस्सा हैं। हर एक जीव अपने आप में अहम और अलग है।

पृथ्वी पर मौजूद हर जीव और वनस्पतियां प्रकृति की अनमोल देन हैं। हर जीव इकोसिस्टम को बनाए रखने में मदद करता है। इसलिए इनकी रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है, कि हम उनकी विलुप्त होती प्रजातियों को संरक्षित रखें और आगे बढ़ने में मदद करें। इसलिए भारत में, वर्तमान में 117,230.76 वर्ग किमी में 528 वन्यजीव जंगल हैं। इनमें दूर-दूर से आए हुए पशु-पक्षियों को शरण मिलती है और वो खुले आसमान में खुल कर अपनी ज़िंदगी बसर कर पाते हैं। साथ ही यहां ऐसे पेड़-पौधों को भी संरक्षित किया जाता है, जिनकी नस्लें विलुप्त होने की कगार पर हैं।

अगर वायुमंडल में पानी न हो तो संसार मौसम-विहीन हो जायेगा। वनस्पतियां वाष्पोत्सर्जन (transpiration) से वायुमंडल में सही मात्रा में पानी बनाये रखने का काम करती हैं। उदाहरण के लिये सूर्यमुखी का पेड़ 2 लीटर और सेब का एक बड़ा पेड़ 30 लीटर पानी रोज वायुमंडल में छोड़ता है। घास जैसी छोटी वनस्पति भी ये काम करती है। इसलिए अपनी जलवायु को सुरक्षित रखने के लिए हमें वन्यजीव संरक्षण की ज़रूरत है और इसमें जंगल या उद्यान अहम भूमिका निभा रहे हैं।

वन्य जीव संरक्षण में सरकार का योगदान (Vanyejeev sanrakshan mein sarkar ka yogdan)

भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने संविधान में वन्यजीवों और पर्यावरण के संरक्षण के प्रावधानों को शामिल किया है। ये वन्यजीवों के भले के लिए उठाया गया, एक बहुत अच्छा कदम है। मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (जिसे आमतौर पर 1972 स्टॉकहोम सम्मेलन कहा जाता है) के बाद भारत सरकार ने 1976 में 42वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम पारित किया, जिससे पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अनुच्छेदों को भारतीय संविधान में शामिल किया गया।

संबंधित अनुच्छेद इस प्रकार हैं:

कुल मिलाकर, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 (Wildlife Protection Act 1972) में 66 धाराएं हैं और 6 अनुसूचियां हैं, जिसमें कई प्रजातियों के लिए बहुत-सी सुरक्षा दी गई हैं।

भारत अलग-अलग तरह की वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों का घर है। मानव ने बहुत तरह से जैसे बिल्डिंग और घर बनाकर, कृषि आदि से वन्यजीवों के घर को नष्ट कर दिया है। इसके अलावा, अवैध शिकार इन प्रजातियों के लिए एक बड़ा खतरा है।

1972 के इस वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के माध्यम से भारत सरकार ने वन्यजीवों और उनके आवासों को ऐसे सभी खतरों से बचाने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा उनके आवासों को बचाने और शिकार को रोकने के लिए भारतीय कानून में सजा शामिल की गई है।

वन्य जीव संरक्षण के लिए हम क्या कर सकते हैं? (Vanyejeev sanrakshan ke liye hm kya kar skte hain?)

पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति मनुष्य के स्वार्थ को दर्शाती है, क्योंकि वे नए पेड़ लगाने की बजाय जंगलों को लगातार काट रहे हैं। अफसोस की बात है कि जंगलों की कटाई, दोबारा पेड़ लगाने की तुलना में तेज दर पर हो रही है। जिसकी वजह से प्राकृतिक आवास और जैव-विविधता को भारी नुकसान उठाने पड़ रहे हैं। जंगलों के अंधा-धुंध विनाश की वजह से वातावरण में आर्द्रता(humidity) बढ़ी है। इसके अलावा उन क्षेत्रों में जहां पेड़ों को हटाया जा रहा है, वे धीरे-धीरे बंजर जगह में या समुद्र में बदल रहे हैं, जिससे न जाने कितने जीव-जंतु बेघर हो रहे हैं। हम अपनी ओर से इनकी मदद के लिए कुछ तरीके अपना सकते हैं, ताकि बहुत से जीव-जंतुओं का जीवन बचाया जा सके।

पॉल्यूशन कम करना

आज-कल बढ़ती गाड़ियां और तरह-तरह की मशीनों का इस्तेमाल न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि जीव-जंतुओं के लिए भी खतरा बन रहा है। इनसे पेड़ों के टिसूज तो कमजोर हो ही रहे हैं, पर पक्षियों को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। बहुत से पक्षियों की प्रजातियां तो रेडियोएक्टिव प्रदूषण का शिकार होकर विलुप्त हो चुकी है। मगर, हम बचे हुए पक्षियों को बचा सकते हैं। प्रकृति में नए-नए तरीके के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज के रेडियेशन को कम करने का एक ही तरीका है, और वो है उनका उपयोग कम करना या बंद कर देना ताकि पक्षियों का जीवन सुरक्षित रह सके।

पेड़ों की कटाई पर रोक

हमने बेजुबानों के आवासों को उजाड़ कर बिल्डिंग बनाने का चलन तो शुरुआत से ही कर रखा है। पेड़ों को काट कर वहां कोई बिल्डिंग बनानी हो या कोई चौड़ी सड़क बनानी हो, हम बिना सोचे उन्हें काट देते हैं। जिससे न केवल पेड़ों की संख्या कम हो रही है बल्कि जानवरों के रहने की जगह भी उनसे छीन ली जाती है। हमें पेड़ों को काटने से खुद को रोकना होगा। अपने मतलब के लिए पेड़ काटने की आदत छोड़नी होगी, और ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाकर, उन बेजुबानों के घरों को सुरक्षित रखना होगा।

छोटी कोशिशों से वन्यजीव रहेंगे सुरक्षित (Chhoti koshishon se vanyejeev rahenge surakshit)

राष्ट्रीय उद्यानों का विकास और उनका रख-रखाव ठीक से करके।

गैर-कानूनी तरीके से वन्य-जीवों के शिकार और वन्य जीव उत्पादों के अवैध व्यापार पर रोक लगाकर।

राष्ट्रीय उद्यानों और जंगलों के आस-पास के क्षेत्रों में इकोसिस्टम का विकास करके।

वन-विनाश पर रोक लगाकर। भारतीय कानून के मुताबिक वन्य विनाश के तरीके आजमाने वाले को सजा देकर।

वन क्षेत्र में वृद्धि करके और नये पेड़ लगाकर।

वन्य-जीवों के संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता लाकर।

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