प्रेरणा की तलाश

प्रेरणा की तलाश में हैं, तो इन शख्सियत को करें याद

अगर आप जोश और जुनून की तलाश कर रहे हैं, तो इसके लिए आपको कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति की ज़रुरत पड़ती है। इस लेख में पढ़िए उन चार योद्धाओं की कहानी, जिन्होंने तमाम बाधाओं और अनिश्चितताओं के बावजूद अपने लक्ष्य को हासिल किया।

“इंसान के भीतर की प्रेरणा उसके हृदय के किसी खास कोने में दर्ज होती है, लेकिन उसे तब पता चलता है जब वह अपनी तीव्र इच्छा की आखिरी छोर को पार कर लेता है, यह बात का उल्लेख जॉन एल्ड्रेड अपनी किताब वाइल्ड एट हार्ट में किया है।” अगर कोई इंसान अपनी प्रेरणा की तलाश कर रहा है, तो दुनिया के मशूहर लेखक जॉन एल्ड्रेड के ये शब्द उन्हें राह दिखा सकते हैं कि अपने भीतर की प्रेरणा को कहां ढूंढें। मगर आपका मन क्या चाहता है, इस पर सिर्फ चिंतन-मनन करने मात्र से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। अगर आप अपने भीतर की प्रेरणा, जुनून और जोश की तलाश कर रहे हैं, तो आपको इसके लिए कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति की भी ज़रुरत पड़ सकती है। वास्तव में यह आपके लिए परीक्षा की भी घड़ी है। इस रास्ते पर चलने के दौरान कई लोग असफल हो जाते हैं, क्योंकि वे या तो बीच में ही हार मान लेते हैं या अगर जिंदगी में छोटी सफलता मिल जाती है, तो वे उसी के साथ समझौता कर शांत हो जाते हैं।

मान लीजिए कि यदि हम लोग किसी खास नियम और कायदे के साथ पैदा हुए हैं, जहां हम लोगों के जुनून और आकांक्षाएं लिखित स्वरूप में मौजूद हैं। साथ ही उसमें इस बात का भी जिक्र रहे कि हमें इन्हें किस तरह प्राप्त करना है, वो भी निर्देशों के साथ। ऐसे में हमारी ज़िंदगी काफी सरल होती और आप भी बड़े ही खुशहाल जीवन जीते। अफसोस की बात यह है कि जीवन जीने का यह तरीका ठीक नहीं है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपनी प्रेरणा की चाह नहीं रख सकते हैं। यह एक ऐसी अप्रत्याशित यात्रा है जिसका न कोई अंत है, जिसमें ढेर सारे अवरोध और खाईयां मौजूद हैं। न ही इसका कोई शॉर्टकट है। इस राह पर चलने के लिए आपके विचारों में स्पष्टता और हिम्मत की ज़रुरत पड़ती है। सोलवेदा के इस लेख में पढ़िए उन चार योद्धाओं की कहानी, जिन्होंने तमाम बाधाओं और अनिश्चितताओं के बावजूद अपने लक्ष्य को हासिल किया। इसके लिए उन्होंने अपने जीवन में सख्त से सख्त फैसले लिए, लेकिन अपने निर्णय पर कभी अफसोस जाहिर नहीं किया।

मुरली आरएक्स, हेड कोच, मैसूर वारियर्स

जब मैं 7वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा था, उस वक्त मुझे कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच खेले गए फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच को करीब से देखने का मौका मिला। इस तरह बचपन से ही मुझे खेलकूद के प्रति लगाव बढ़ गया। भले ही मैं पढ़ाई में होशियार नहीं था, फिर भी मैं क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता था। क्रिकेट मैच के दौरान मैं स्कूल मैचों में अन्य खिलाड़ियों की अपेक्षा हमेशा ज्यादा ही रन बनाता था। खेल के प्रति लगाव के चलते मैंने तय कर लिया कि मुझे तो फुलटाइम क्रिकेटर बनना है। क्रिकेट में अच्छा करने के बाद भी मुझे फर्स्ट क्लास का ओहदा नहीं मिला, तो मैंने कोचिंग लेनी शुरू कर दी। उस वक्त मैंने क्रिकेट के सभी समकालीन तौर-तरीके सीख लिए और इतना कुछ सीख लिया कि अब मैं किसी भी खिलाड़ी को अच्छी तरह प्रशिक्षित कर सकता था। जैसा कि किसी भी प्रोफेशन के साथ होता है, कोचिंग की संभावना काफी नामुनासिब थी। कोई भी बेहतर तरीके से कॉन्ट्रेक्ट का पालन नहीं करेगा। इस तरह मैंने साल 2007 में कोचिंग देने के काम को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दिया और फिर से बिजनेस में हाथ अजमाने लगा, जिसे मैंने 2004 में शुरू किया था।

कारोबार में मैं काफी अच्छा कर रहा था और खूब मुनाफा भी मिल रहा था। बावजूद इसके इस काम में मेरा मन नहीं लग रहा था। इसी बीच साल 2009 में जब मेरे पास एक दिन कर्नाटक प्रीमियर लीग में एक टीम का कोच बनने के लिए कॉल आया, तो मैंने इस शानदार मौके के लिए तुरंत हामी भर दी और इस अवसर को हाथों-हाथ ले लिया। टीम ने जब केपीएल टूर्नामेंट का उद्घाटन मैच अपने नाम कर लिया, तो क्रिकेट के लिए मेरा जुनून एक बार फिर से जाग उठा। इसके बाद मैंने अपनी क्रिकेट अकादमी शुरू करने का फैसला किया। इसके बाद मुझे इस बात का अहसास हुआ कि आप जिस काम से बहुत अधिक प्यार करते हैं और आप उसी काम को करते हैं, तो आपका हर दिन बड़ा ही सुखद अनुभव वाला गुजरेगा। आपका जीवन ऊर्जा से भरपूर रहेगा। नि:संदेह किसी भी दूसरे प्रोफेशन की तरह इसमें भी उतार-चढ़ाव आएंगे। लेकिन, आपके भीतर का जुनून हमेशा सभी बाधाओं से पार पाने के लिए आपको प्रेरित भी करेगा।

टोनी पायस, चिकित्सक और भरतनाट्यम डांसर

मेरा मनाना है कि जुनून और प्रेरणा का कोई गंतव्य नहीं होता है, बल्कि यह एक सदैव चलनेवाली यात्रा है। इस यात्रा के दौरान हम प्रतिदिन इसकी पड़ताल करते हैं कि हम कौन हैं? फिलहाल, मेरे पास उन चीजों की एक फेहरिस्त है, जो मैं जीवन में हासिल करना चाहता हूं। उन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मैं तमाम बाधाओं से जूझ रहा हूं। इस दौरान मैं हर दिन अपने बारे में और भी सीख रहा हूं। डांस से मेरा विशेष लगाव है। यह मेरा पैशन है, इसे पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा हूं। इसे आप ‘आउट-ऑफ-द-बॉक्स’ के रूप देख सकते हैं। मगर, मैं कहना चाहता हूं कि मेरे जीवन का क्या उद्देश्य है, इस बारे में अभी भी मुझे बहुत कुछ समझना बाकी है।

ईमानदारी से कहूं तो, अपने जुनून के पीछे पड़े रहना कुछ दिनों में बहुत सुखद लगता है, लेकिन दूसरी तरफ यह काफी निराशा भरा भी होता है। निराशाजनक इसलिए होती है, क्योंकि एक आर्टिस्ट के रूप में जीवन इतना सरल नहीं है। यह बहुत ही संघर्षों से भरा हुआ है। मेरा जीवन पहले भी बहुत संघर्षपूर्ण रहा है और अभी भी संघर्ष कर रहा हूं और आने वाले समय में भी यह संघर्ष जारी रहेगा। हालांकि, मुझे नहीं पता कि संघर्ष कभी खत्म होंगे या नहीं। मगर, जब भी मुझे मेरी मेहनत का प्रतिफल मिलता है, तो बहुत अच्छा लगता है। विशेष रूप से तब, जब मैं उसे पाने के लिए काफी प्रयास करता हूं। मेरा मन उल्लास से भरा जाता है। उस पल मुझे इस बात का अहसास होता है कि मुझे अपने सपने को साकार करने के लिए आगे बढ़ने रहना है कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना है।

सुधा नारायणन, संस्थापक, चार्लीज़ एनिमल रेस्क्यू सेंटर

मुझे हमेशा से मासूम जानवरों के प्रति बेइंतहा मोहब्बत रही है। मैं उनके लिए महज सहानुभूति दिखाने के अलावा बहुत कुछ करने की ख्वाहिश रही है। मुझे पहला मौका तब मिला, जब मैं पहली बार साल 1994 में CUPA के संस्थापक क्रिस्टल रोजर्स से मिली। उनमें वो सब कुछ था, जो मैं बनने की सोचती थी और मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा कि कैसे जानवरों की देखरेख की जाती है। करीब 17 वर्षों तक मैंने CUPA के साथ बतौर एक ट्रस्टी के रूप में काम किया और अपने सपने को पूरी तरह साकार कर रही हूं।

साल 2012 में मुझे क्रिस्टल रोजर्स की संस्था से इतर अपना खुद का रास्ता अख्तियार करने ज़रुरत महसूस हुई। ट्रामा केयर और शेल्टर में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद मैंने चार्लीज़ एनिमल रेस्क्यू सेंटर (केयर) की नींव रखी। यह संस्था चार्ली के लिए समर्पित था, एक थेरेपी डॉग, जिसके साथ मैंने 6 साल की एनिमल असिस्टेड थेरेपी का अनुभव हासिल किया था। शुरुआती साल बेहद ही मुश्किल भरे थे। हमारे पास महज तीन शेड थे, जहां हम लोग दिन-रात ट्रामा में इन जानवरों की मदद किया करते थे। मेरी सैलरी का अधिकतर हिस्सा केयर को संचालित करने में खर्च हो जाता था। मेरे पास बमुश्किल से खुद के खर्चे के लिए पैसे बच पाते थे। जिस जमीन पर हम लोगों की संस्था चल रही थी, उसे बचाने के लिए मुझे अपना अपार्टमेंट तक बेचना पड़ा, लेकिन इससे कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। इन बेजुबानों की मदद करने का ख्याल और उन्हें ठीक होते देखकर काफी खुशी महसूस होती थी। इसी प्रेरणा ने मुझे अंदर से हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

मुझे यह प्रेरणा केयर संस्था में रहने वाले उन बेजुबां जानवरों से मिलती है, जो मुझे हमेशा अपनी सीमाओं को पार करने के लिए प्रोत्साहित करती है। विपरीत परिस्थिति में रह रहे हर बेजुबानों के पास साहस की अनूठी कहानी है। उनकी रक्षा करना और उनकी अच्छे से देखभाल सुनिश्चित करना ही मेरा असली मकसद है। मैं तमाम बाधाओं के बावजूद इस राह पर चलने के लिए कटिबद्ध हूं। क्योंकि जो काम मैं कर रही हूं, उसे करना मुझे बहुत अच्छा लगाता है। इसके लिए मुझे मोटी तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी छोड़ने का कोई पछतावा नहीं है। यह काम भले ही शारीरिक और मानसिक रूप से थोड़ा मुश्किल भरा है, लेकिन दुनियादारी के लिए मैं इसे करना कभी नहीं छोड़ूगी।

संदीप पंडित, सोल इन हार्मनी के संस्थापक और वेलबीइंग कोच

जब कभी मैं अपने जीवन में पीछे मुड़कर झांकता हूं, तो अहसास होता है कि मैंने हमेशा विपरीत परिस्थिति में फंसे लोगों को एक बेहतर मार्ग दिखाया है। यह सोचकर अपने आप में बेहद खुशी महसूस होती है। एक दिन यह मेरा जुनून बन जाएगा, इस बारे में तब तक पता नहीं चलता, जबतक मैं इस परिस्थिति से गुजरा न होता। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं काउंसर और गाइड का काम करूंगा। जब मैंने खुद विपरीत परिस्थिति का सामना किया, तब जाकर इसे अपने आप से जोड़ा और काम करना शुरू किया।

मेरे शुरुआती दिन बड़े ही उथल-पुथल भरे रहे। करीब 15 सालों तक कॉरपोरेट जगत में काम करने के बाद खुद से इसको अलग करना इतना आसान काम नहीं था। इसके लिए अपने परिवार के लोगों, दोस्तों और सहकर्मियों को अपने फैसले के लिए राजी करना वास्तव में काफी मुश्किल भरा था। लेकिन, मैंने इस काम को शुरू करने से पहले मैंने खुद से सवाल किया कि क्या मैं इस काम को आखिरी दम तक जारी रख पाऊंगा? मेरे भीतर के जवाब ने मुझे विश्वास से भर दिया और मुझे आगे बढ़ने के लिए काफी प्रोत्साहित किया।

इसके बाद भी मुझे महसूस होता है कि मेरी यात्रा तो अभी शुरू हुई है। अपनी अंदर की प्रेरणा और जुनून को साकार करना सच में किसी स्वर्ग से कम नहीं है। खासतौर पर उस वक्त जब मुझे बहुत अच्छा लगता है, जब मैं महसूस करता हूं कि मेरी सेवाओं के चलते लोगों की ज़िंदगी और रिश्तों में कैसे बदलाव आ रहा है। इस अहसास ने ही जीवन में दूसरों को खुश करने के मेरे उद्देश्य को और भी प्रगाढ़ कर दिया है। मैं जिस तरह की समाज की कल्पना करता हूं, मैं उसी से सबसे अधिक प्रभावित होता हूं और यही मुझे आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित भी करता है।

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।