आभार प्रकट करना

हमेशा शुक्रगुज़ार रहो

ज़िंदगी में हर किसी के पास दुखी होने के अनेक कारण होते हैं। इसके बावजूद अगर हम आभारी होने की प्रवृत्ति को लेकर चलते रहें, तो हमारे आसपास की चीज़ें बेहतर सूरत अख्तियार करना शुरू कर देती हैं।

मैंने ठीक से पढ़ना-लिखना शुरू भी नहीं किया था कि मेरी मां ने थैंक यू हूं जैसे सबसे आसान शब्दों से मेरा परिचय करवा दिया था। जब मैंने उनसे इन शब्दों के मायने पूछे, तो उन्होंने कहा “आपको सुबह और शाम की प्रार्थना करते वक्त भगवान का आभार प्रकट करना चाहिए। इसके साथ ही माता-पिता को भी आभार प्रकट करना चाहिए।” छोटी उम्र होने की वजह से मुझे यह तो समझ नहीं आया कि वे क्या कहना चाहती थीं, लेकिन यह दो शब्द मेरे जीवन का हिस्सा बन गए। फिर मैंने वही किया, जो मुझे बताया गया था। रोजाना मैं भगवान, अपने शिक्षक और माता-पिता का आभार प्रकट करना शुरू कर दी। मुझे यह पता ही नहीं था कि मैं ऐसा करते हुए अपनी ज़िंदगी में खुशियों के बीज बो रही थी।

जब मैं तीसरी कक्षा में थी, तो मुझे याद है कि मेरे नैतिक विज्ञान (मॉरल साइंस) के शिक्षक ने हमें ऐसोप की काल्पनिक कहानी एंड्रॉल्स एंड द लायन सुनाई थी। यह एंड्रॉल्स नामक एक गुलाम की कहानी थी, जो अपने मालिक के चंगुल से छुटकारा पाकर जंगल में भाग जाता है। जंगल में भटकते हुए उसे एक जख्मी शेर मिलता है। वह शेर दर्द से कराह रहा था। जब एंड्रॉल्स उसके पास जाकर देखता है, तो पता चलता है कि उस शेर के पैर में कांटा चुभा हुआ है। एंड्रॉल्स उस शेर के पैरों से वह कांटा निकाल कर उसे राहत दिलाता है। कुछ दिनों के बाद उस गुलाम और शेर दोनों को राजा के लोग पकड़ लेते हैं।

राजा तय करता है कि सजा के तौर पर एंड्रॉल्स को शेर को परोस दिया जाएगा। सजा पर अमल का दिन आने पर राजा का दरबार सज जाता है। तय कार्यक्रम के अनुसार भूखे शेर का पिंजरा खोलकर एंड्रॉल्स को उसके सामने रख दिया जाता है। भूख से बेहाल शेर दहाड़ते हुए एंड्रॉल्स की ओर लपकता है। लेकिन जैसे ही वह उसके पास आता है, वह एंड्रॉल्स को पहचान जाता है कि यह वही व्यक्ति है, जिसने मुझे दर्द से निजात दिलाई थी। वह दहाड़ना छोड़ कर एंड्रॉल्स के पास आकर आभार प्रकट करना शुरू कर देता है और उसके पैर चाटना शुरू कर देता है। यह चमत्कार देखकर राजा एंड्रॉल्स और शेर दोनों को रिहा कर देता है। हमारे शिक्षक के अनुसार कथा का सार यह है कि पुण्यात्मा के पास ही आभारी होने का नैतिक गुण होता है।

उस दिन मुझे अहसास हुआ कि दूसरों के प्रति आभार प्रकट करना सही है। दूसरों की अच्छाई की प्रशंसा करने का अर्थ क्या होता है। अहसानमंद होने का मतलब क्या होता है। शुरुआती दिनों में आभारी होना मेरे जीवन मूल्यों का अहम हिस्सा बन गया था। मुझे लगता था कि आभार प्रकट करना हमें खुश रखता है। जैसे टेड टॉक में ब्रदर डेविड स्टइंडल रस्ट ने ‘वांट टू बी हैप्पी? स्टे ग्रेटफुल’ विषय पर बोलते हुए कहा था “यह खुशी नहीं है, जो हमें आभारी बनाती है, बल्कि यह आभार प्रकट करना हमारी क्षमता है, जो हमें खुशी देती है।”

अहसानमंद होने की प्रवृत्ति ने ही मुझे जीवन की छोटी-छोटी खूबसूरत बातों पर ध्यान देना सिखाया, जिनसे ज़िंदगी हसीन बनती है। सुबह उठने से लेकर शाम को वापस सोने की तैयारी करते हुए तक मैं सूर्योदय, सूर्यास्त, सुबह-शाम के भोजन, आज मिलने वाले लोगों और तमाम उन बातों के लिए आभार प्रकट करता हूं। स्टइंडल रस्त कहते हैं, “यह उपहार है। यह न आपने खरीदा है और न ही पाया है। आप यह सुनिश्चित भी नहीं कर सकते कि यह वक्त आपको दोबारा मिलेगा ही। यदि आप मौजूदा समय का उपयोग नहीं करते हैं, तो आपको इसे अनुभव करने का कोई और मौका नहीं मिलेगा।” इसी वजह से अहसानमंद होने की प्रवृत्ति ने बतौर व्यक्ति मुझे संपन्न बनाने में सहायता की। मैं हॉस्टल की खानसामा का भी स्वादिष्ट भोजन बनाने के लिए आभार प्रकट करता था। इसमें मुझे खुशी मिलती। इन छोटी-छोटी बातों ने जीवन को देखने का मेरा नज़रिया बदल दिया।

संगठन विकास सलाहकार एवं प्रशिक्षक स्वास्तिका राममूर्ति का भी यही मानना है। वह मानती हैं कि दुनिया को देखने का हमारा नजरिया महत्वपूर्ण होता है। यदि हम दुनिया को हिकारत की नज़रों से देखेंगे, तो हमें अपने दिल और दिमाग को संकुचित करने से कोई नहीं रोक सकता। यह सच भी है। जो आप दुनिया को देंगे, वही आपको वापस मिलेगा। जब आप दुनिया को पर्याप्त प्रशंसा की निगाह से देखना शुरू कर देंगे, तो आपको भी चमत्कारी परिणाम दिखाई देंगे। दुनिया भी आपको भरपूर प्यार लौटाएगी।

ऐसा होने के बावजूद हममें से कितने लोग हमारे आसपास की चीजों को प्रशंसा की दृष्टि से देखते हैं। जैसे खूबसूरत पहाड़, आकर्षक नजारे, नील गगन, स्वच्छ जल, समुद्र के रेतीले किनारे, घने जंगल या फिर अद्भुत सूर्यास्त। यह सारी बातें हमेशा से यही हैं, लेकिन हमारी निगाह इन पर जाती ही नहीं है। यह वैसे ही है, जैसे किसी पैर विहीन व्यक्ति को दो जून की रोटी जुटाने के लिए संघर्ष करते हुए देखने के बाद ऊपर वाले को इस बात के लिए धन्यवाद देना कि उसने हमें दोनों पैर दिए।

अहसानमंद होने का अहसास लेकर ज़ीवन जीने से ही सच्ची खुशी मिलती है। लेकिन कितने लोग होंगे, जो इस राह पर चलते होंगे? स्वास्तिका कहती हैं कि 83000 जीवित प्राणियों में से आपको ही मनुष्य के रूप में पैदा होने का सौभाग्य मिला है। जरा सोचिए यह कितनी अहम बात है। इसके लिए आभार प्रकट करना चाहिए।

इंसान के रूप में जन्म लेना ही प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार है। हमें ही सोचने-समझने के बाद किसी बात पर अमल करने की शक्ति हासिल है। स्थिति चाहे कितनी भी नाजुक क्यों न हो, हर बार आशा की कोई सुनहरी किरण नज़र आ ही जाती है। हमें उसका शुक्रगुज़ार होने की आदत डालनी चाहिए। स्वास्तिका कहती हैं “जिस क्षण हम ज़ीवन को इस दृष्टिकोण से देखना शुरू कर देते हैं, हमारा ज़ीवन खुशियों से भर जाता है। हमें हर बात में खुशी ही नज़र आती है।”

मुश्किलों से भरी पड़ी इस दुनिया में हमें दुखी होने के तो सौ बहाने मिल जाएंगे, लेकिन यदि हम अपने आसपास की बातों को सराहने लगेंगे और जो हमें मिला है। उसको लेकर अहसानमंद होना शुरू कर देंगे, तो जीवन खुशियों से ओतप्रोत हो जाएगा।

इसी वजह से मैं अपनी मां की अहसानमंद हूं कि उन्होंने मुझे जिंदगी के दो सबसे अहम शब्द सिखाए- थैंक यू।

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