दिव्यांग

जानें ऐसे पैरेंट्स के बारे में जिन्होंने दिव्यांगता को बनाई शक्ति

दिव्यांग माता-पिता के संघर्षों और उनकी चुनौतियों को जानने के लिए ‘सोलवेदा’ ने ऐसे कुछ अभिभावकों से भेंट की, जो अपने अनुभवों को साझा करना चाहते थे।

चाहे जन्मजात हो या किसी हादसे के कारण विकलांगता हो, ये किसी अभिशाप की तरह होती है। वह मनुष्य की उमंग पर पानी फेर देती है। कल्पना कीजिए कि कोई प्रकृति के रंग ना देख सके या कोई इस दुनिया की आवाज़ ना सुन सके या कोई अपने प्रियजनों के साथ समुद्री तटों की सैर ना कर पाए, तो उसे कैसा महसूस होगा? असल में ऐसी कल्पना करना ही ठीक ना लगेगा या कहें कि अन्यायपूर्ण लगेगा। लेकिन यदि कोई माता-पिता ही दिव्यांग हो, तो दिव्यांगता का यह बोझ बहुत भारी पड़ जाता है। अपने बच्चे को ना देख पाना या उसकी आवाज़ ना सुन पाना अथवा उसे गोद में ना उठा पाना कितना दर्दनाक होता है, यह कोई दिव्यांग ही जान सकता है। बच्चों के लालन-पालन का आनंद ना उठा पाने से हुए दुखी दिल को सांत्वना देने का कोई जरिया नहीं है।

लिहाजा निराशा के कितने भी गहरे बादल क्यों ना हो, फिर हिम्मत ना हारने की ज़िद रोशनी की किरण बन सकती है। इसलिए अपने रवैये में थोड़ा बदलाव करें, तो आप देखेंगे विकलांग होने की निराशा पर आप आसानी से विजय पा सकते हैं। दिव्यांग अभिभावकों के संघर्षों और उनकी चुनौतियों को जानने के लिए ‘सोलवेदा’ ने ऐसे कुछ माता-पिता से भेंट की, जो अपने अनुभवों को साझा करना चाहते थे।

  • h 1970 में जन्मे महंतेश किवाडासन्नावर जब 6 माह के थे तभी टाइफाइड से उनकी आंखों की रोशनी चली गई। उन्होंने बेंगलुरु के यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज में अंग्रेजी के व्याख्याता के रूप में अपने करिअर की शुरुआत की। वे समर्थनम् ट्रस्ट फॉर डिसएबल्ड के सह-संस्थापक हैं। यह ट्रस्ट दिव्यांगों और वंचितों को शिक्षा, जीवनयापन सुविधाएं, बुनियादी संरचना, प्रोद्यौगिकी व आवश्यकतानुसार अन्य सहायता प्रदान करता है।

    दिव्यांगता कोई बाधा नहीं 

    महंतेश किवाडासन्नावर : मैं नहीं मानता कि बच्चों के लालन-पालन में दिव्यांगता से कोई बाधा आती है। आप विकलांगता को कैसे देखते हैं और बच्चों के सामने खुद को किस तरह पेश करते हैं, इस पर ही सब कुछ निर्भर करता है। हां, यह सच है कि विकलांगता से जीवन में खामियां आती हैं, लेकिन आप अपने कौशल या ज्ञान से इससे पार पा सकते हैं। यदि आप इसे जान गए, तो फिर आपको किसी बात की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

    कोई संकोच नहीं

    महंतेश किवाडासन्नावर : मैं आंखों से देख नहीं सकता हूं, यह देखते हुए ही मेरे बच्चे बड़े हुए हैं। मैंने उन्हें बताया कि जब मैं उनकी उम्र का था तब बहुत टीवी देखा करता था और बाद में मेरी आंखें चली गई। मेरे आंखों की रोशनी के बारे में मेरे बच्चों से बात करने में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ। वे मेरी ज़रूरतों को भी जान गए थे। मिसाल के तौर पर जब मैं चलने लगूं या सीढ़ियां चढ़ने लगूं तब वे आकर मेरा हाथ पकड़ लेते थे। इतना ही नहीं, वे मेरे पूछने के पहले ही बता देते थे कि फिल्म में कौन-सा दृश्य चल रहा है।

    दिव्यांगता को ताकत में बदल देना

    महंतेश किवाडासन्नावर : मुझे लगता है कि दिव्यांगता आपको अपने आंतरिक सामर्थ्य से रू-ब-रू कराती है, इससे आप खुद को तराश सकते हैं और दिव्यांगता का आसानी से मुकाबला कर सकते हैं। यदि भले आदमी मिले, तो वे आपके प्रति दया दिखाने की अपेक्षा आपकी सहायता करने को तत्पर होते हैं। आपकी मित्र मंडली जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे आप समाज को योगदान करने की प्रेरणा पाते हैं।

    दिव्यांग माता-पिता को सलाह

    महंतेश किवाडासन्नावर : अपनी दिव्यांगता के बारे में अपने बच्चों को बिना किसी लागलपेट के बता दीजिए। आप जैसे भी हैं वैसे ही वे आपको स्वीकार करें और आपके साथ मानवता का बर्ताव करें। आपको यदि कोई चीज़ चाहिए, तो उनसे कहने में संकोच मत कीजिए। यही नहीं, उन्हें प्रेरित करें कि वे आपसे सवाल पूछें। जो भी हो लेकिन आपकी विकलांगता आप और आपके बच्चों के बीच रोड़ा ना बनें।

  • h नवनीत भारद्वाज आईटी पेशेवर हैं। वे बाईक पर देश की सैर करना चाहते हैं। खेल और फोटोग्राफी उनकी रुचि के विषय हैं। तीन वर्ष की उम्र से ही वे दोनों कानों से सुन नहीं सकते थे, फिर भी वे जीवन को पूर्ण रूप से जीना चाहते हैं। वे शादीशुदा हैं व उनकी एक बच्ची है।

    हमारी बच्ची और हियरिंग एड

    नवनीत भारद्वाज : मैं और मेरी पत्नी बिना हियरिंग एड के कुछ नहीं सुन सकते। इसलिए सोने का समय छोड़कर दिन भर हम इन्हें पहने रहते हैं। जब मेरी बच्ची अनन्या कुछ माह की थी तब मेरे लिए बड़ी समस्या पैदा हो गई। हमें रात में भी हियरिंग एड पहनकर सोना पड़ता था; क्योकि इसके बिना हम जान ही नहीं पाते थे कि वह सो रही है, जाग रही है या रो रही है। इससे मेरे कानों में गंभीर संक्रमण हो गया और डॉक्टरों ने मुझे लगातार हियरिंग एड ना पहनने की सलाह दी। मेरे जैसे हर किसी के लिए यह चुनौती भरा समय होता है, लेकिन पत्नी और मेरे माता-पिता के सहयोग से इससे मैं निपट सका।

    अनन्या समझ गई 

    नवनीत भारद्वाज : मेरी बेटी अनन्या ने बचपन से ही मुझे हियरिंग एड पहने देखा है। इस तरह वह जान गई कि इसके बिना मैं सुन नहीं सकता। यह उसकी सीखने की प्रक्रिया थी। मिसाल के तौर पर जब मैं हियरिंग एड पहने नहीं होता था तब वह उसे बक्से से निकालकर मुझे दे देती थी। कुछ सालों बाद शायद वह मुझसे इस बारे में पूछें। लेकिन मुझे नहीं लगता कि अपने माता-पिता के अपंगत्व को समझना उसके लिए मुश्किल होगा। इसी कारण, मैं उसे अभी कोई प्रवचन नहीं सुना रहा हूँ। हमें बच्चों को प्रश्न पूछने और चीजों को स्वाभाविक रूप से समझने का अवसर देना चाहिए।

    दिव्यांगता में अवसर

    नवनीत भारद्वाज : मेरे लिए दिव्यांगता ना कमजोरी है, ना सामार्थ्य है और ना ही कर्म है। यह तो यथार्थ है और उससे हरेक को निपटना चाहिए। जहां तक मेरी बात है, दिव्यांगता ने मुझे खुद को साबित करने और जीवन को बेहतर ढंग से जीने का अवसर प्रदान किया है। बच्चे के रूप में मैंने जब हियरिंग एड का इस्तेमाल करना शुरू किया तब मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं जानता था। मुझे स्कूल में भी बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा। लेकिन जल्द ही मैं समझ गया कि यदि मुझे सफल और स्वतंत्र ज़िदगी जीनी है, तो इन चुनौतियों का मुकाबला करना ही होगा।

    विकलांग माता-पिताओं को सलाह

    नवनीत भारद्वाज : विकलांग माता-पिता को मेरी सलाह है कि वे जैसे हैं वैसे ही ठीक हैं, इसे स्वीकार करें। अपने बच्चों को सांत्वना और अवसर दें। आज ऐसे कई साधन उपलब्ध हैं, जिनसे आप अपनी विकलांगता पर विजय हासिल कर सकते हैं। याद रहे कि आपकी शारिरिक कमज़ोरी आपके बच्चों और उनके प्रति आपके प्यार में बाधा ना बनें।

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