हरा ग्रह

मुंबई के शिक्षक का सपना, ‘हरा ग्रह हो अपना’

सोलवेदा के साथ एक विशेष बातचीत में सागर सिंह ने अपनी यात्रा के बारे में बात की। हमने ये जानने का प्रयास किया कि उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने की प्रेरणा कहां से मिली?

प्लास्टिक की थैलियों के हानिकारक प्रभावों को जानते हुए भी हममें से अधिकतर लोग रोज़ाना इसका उपयोग करते हैं। ऐसा नहीं है कि प्लास्टिक की थैलियों का कोई विकल्प नहीं है। जब हम खरीदारी करने जाते हैं, तो घर से जूट या कपड़े की थैली साथ लेकर जा सकते हैं। लेकिन फिर भी हम दुकानदारों से प्लास्टिक बैग मांगते हैं। एक बार जब हम प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग कर लेते हैं, तो हम उन्हें कूड़ेदान में या सड़कों पर फेंक देते हैं। इसलिए हम चाहे देश भर में कहीं भी जाएं प्लास्टिक कचरा हर जगह देखने को मिल जाता है। इससे हरा ग्रह गंदगी में तब्दील हो जाता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2018-19 में 33 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा पाया गया था। यदि हम दैनिक आधार पर देखें, तो प्रतिदिन 9,200 टन प्लास्टिक कचरा निकाला गया था। ये आंकड़े पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी और बेहद डरावने हैं, जिसके लिए तुरंत कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है। लेकिन पृथ्वी को हरा ग्रह बनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक हम खुद से जागरूक नहीं होंगे, तब तक बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है। लेकिन आज भी कुछ लोग हैं, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी उठा ली है। उनमें से ही एक मुंबई के 28 वर्षीय सामाजिक विज्ञान शिक्षक सागर सिंह हैं। उनकी पहल गोइंग ज़ीरो प्लास्टिक-फ्री, क्रुएल्टी-फ्री और केमिकल-फ्री, शाकाहारी, ज़ीरो-वेस्ट प्रोडक्ट्स को प्रोत्साहित करती है। सिंह कहते हैं कि “यह एक ऐसा मंच है, जहां छोटे व्यवसायों, विशेष रूप से पर्यावरण की रक्षा जैसे कार्यों से जुड़े लोगों को (अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने का) अवसर मिलता है। साथ ही मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, वह प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने या खत्म करने में मदद करेगा।”

सागर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले समुदाय इको वॉरियर्स इंडिया के संस्थापक भी हैं। वह समुद्र तट की सफाई अभियान, पौधरोपण अभियान और अन्य जल संरक्षण परियोजनाओं की शुरुआत करके अपना हरा ग्रह यानि पृथ्वी को प्लास्टिक फ्री बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सिंह कहते हैं, “जब आपके आसपास के लोग आपके द्वारा किए गए काम की सराहना करते हैं, तो यह एक दूरगामी प्रभाव की ओर ले जाता है।”

सोलवेदा के साथ एक खास बातचीत में सागर सिंह ने अपनी यात्रा के बारे में बात की। हमने ये जानने का प्रयास किया कि उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने की प्रेरणा कहां से मिली?

आप कई पर्यावरणीय कार्यों में शामिल हैं, जैसे पौधे लगाना, सफाई अभियान, जल संरक्षण और जलवायु परिवर्तन। इस काम को करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?

किसी भी काम को करने की प्रेरणा तब आती है, जब आप महसूस करते हैं कि हम सभी जीवन के एक ही धागे से जुड़े हुए हैं। जब आप पर्यावरण संरक्षण की बड़ी तस्वीर देखते हैं, तब आपको समझ में आएगा कि एक सामाजिक विज्ञान का शिक्षक होने के नाते, मैं जो कर रहा हूं, वह बहुत ही कम है। वर्ष 2025 तक भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। अब देश को एक जागरुक आबादी की ज़रूरत है, ऐसे लोगों की ज़रूरत है, जो पर्यावरण में हो रहे बदलाव के बारे जागरूक हो।

पर्यावरणीय समस्याओं में से आप किस चीज़ के प्रति सबसे अधिक भावुक हैं?

मैं अपने शब्दों और कार्यों के ज़रिए लोगों के जीवन को छूना चाहता हूं। मेरा मानना है कि सभी आपस में कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं। मान लीजिए कि जब मैं जल संरक्षण की बात करता हूं, तब लोगों का एक ही नज़रिया होता है कि पानी की बचत करने को कहा जा रहा है। लेकिन यह खुद से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है। पानी की कमी होने पर कई लोगों का जीवन प्रभावित होने वाला है। उदाहरण के साथ समझें, तो किसान पानी के बिना फसल नहीं उगा पाएंगे।

फिलहाल मैं प्लास्टिक कचरे पर ध्यान दे रहा हूं। मैंने खुद से वादा किया कि प्लास्टिक कचरे पर मैं विशेष रूप से काम करुंगा, क्योंकि सांस लेने के लिए अधिकांश ऑक्सीजन हमें समुद्र से मिलता है। अब प्लास्टिक कचरा महासागरों और समुद्रों में छोड़ा जा रहा है। इससे प्लैंकटन मर रहे हैं। प्लैंकटन ऐसे पौधे होते हैं, जो ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं।

भारत का प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस समस्या से निपटने के लिए आप क्या सुझाव देते हैं?

नदियों में प्लास्टिक फेंका जा रहा है, जहां यह कभी नहीं सड़ पाएगा। फिर यह कई हिस्सों में बंटकर माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाएगा और हमारे थाली में वापस आ जाएगा। ईको सिस्टम के लिए प्लास्टिक बड़ा खतरा है और हमें इससे कैसे निजात पाना है, ये भी नहीं पता है।

मेरा सपना है कि कम से कम मुंबई में एक ज़ीरो-वेस्ट वार्ड बनाया जाए, जहां हम गीले कचरे को कंपोस्ट में बदल सकें। मैं दक्षिणी मुंबई के डी-वार्ड पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं। इसमें कई जागरूक और शिक्षित लोग शामिल हुए हैं, जिन्हें पर्यावरण अनुकूल कार्यों को समझाना आसान है। एक बार मुंबई में एक वार्ड ज़ीरो-वेस्ट हो जाता है, तो खुद-ब-खुद दूसरे लोग भी इस ओर काम करने के लिए प्रेरित होंगे।

लोगों को पर्यावरण के लिए जिम्मेदार बनाना आसान नहीं है। आप उन्हें पर्यावरण अनूकूल जीवनशैली अपनाने के लिए कैसे प्रोत्साहित करते हैं?

मैं अपने कम्युनिटी के ज़रिए लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत कर रहा हूं। उदाहरण के लिए, मैं उन्हें पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में जागरूक करने के लिए छोटे स्तर पर सफाई अभियान चलाता हूं। आमतौर पर मैं पश्चिमी घाट के पास ट्रेक करता हूं। मैं लोगों को सिखाने की कोशिश करता हूं कि पौधों की पहचान कैसे करें। मैं फॉरेस्ट बाथिंग और ग्राउंडिंग प्रोग्राम भी आयोजित करता हूं। यह ईको-टूरिज्म की तरह है। जब हम ट्रेक पर जाते हैं, तो हम प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करते हैं, जिसे अपने साथ हम वापस ले आते हैं।

न्यूनतम जीवनशैली अपनाने से पर्यावरण को कैसे लाभ होता है?

न्यूनतावाद जीवनशैली का मतलब सकारात्मक कमी से है। न्यूनतावाद सिर्फ अपनी ज़रूरतों को प्राथमिकता देना है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आपको कुछ भी नहीं खरीदना चाहिए। लेकिन आपको यह पता होना चाहिए कि आप कोई भी चीज़ क्यों खरीद रहे हैं? उदाहरण के लिए, आपके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मोबाइल फोन 3-4 वर्षों के बाद पुराना हो जाएगा। फिर आप क्या करते हैं? आप इसे फेंक देते हैं या इसे रिसाइकिल के लिए रख देते हैं और एक नया खरीदते हैं। अंत में यह लैंडफिल में चला जाता है। यह एक पूरा चक्र है, जो निरंतर चलता रहता है। इसलिए सिर्फ अपनी ज़रूरतों को प्राथमिकता देना ज़रूरी है, जिससे हमारा हरा ग्रह सही सलामत रहेगा।

पर्यावरणीय पहल में भारत के युवा कैसे अधिक से अधिक शामिल हो सकते हैं?

आप यदि किसी व्यक्ति में बदलाव लाते हैं, तो उसके साथ समाज भी बदलता है। हर व्यक्ति को खुद का ख्याल रखना पड़ता है। यदि आप अपना ध्यान नहीं रख रहे हैं, तो कहीं न कहीं आप अस्वस्थ हैं। इस समस्या को आप कैसे दूर करेंगे? इसका एक उपाय है, आप लोगों की बातों को सुनना बंद कर दें। आपको कुछ ऐसे लोग मिलेंगे, जो आपको सही और गलत में अंतर बताएंगे। लेकिन सच्चाई यही है कि उन्हें खुद इसकी सटीक जानकारी नहीं होती है। उनकी बातों को दरकिनार करते हुए अपनी मन की सुनें, क्योंकि उसे सबकुछ पता है, क्या सही है और क्या गलत।

  • सागर सिंह सामाजिक विज्ञान के शिक्षक होने के साथ ही मुंबई के बाहरी इलाकों में पर्यावरणविद् के रूप में काम करते हैं। साथ ही वे ई-कॉमर्स स्टोर गोइंग ज़ीरो के सह-संस्थापक हैं। गोइंग ज़ीरो का उद्देश्य उन लोगों को पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के प्रति जागरूक करना है, जो जीरो वेस्ट जीवनशैली को अपनाते हैं। वे ईको वारियर्स इंडिया के संस्थापक हैं। जो बुद्धिजीवियों का समुदाय है और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहा है। सागर सिंह फिलहाल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट साइंस बीवीपी डीम्ड यूनिवर्सिटी से पर्यावरण विज्ञान और टेक्नोलॉजी में एमएससी कर रहे हैं।
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