ग्रीन वारियर , सालूमरदा थिम्मक्का

ग्रीन वॉरियर सालूमरदा थिम्मक्का की कहानी

इस दंपति ने मिलकर कर्नाटक में हुलिकल और कदुर के बीच राजमार्ग पर 350 से अधिक पौधे लगाए थे। उन्होंने उन पेड़ों के लिए एक 'सालुमरदा' नाम भी दिया, जिसका अर्थ कन्नड़ में 'पेड़ों की एक पंक्ति' है।

पर्यावरण प्रेमी होने के नाते मुझे पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले लोग बहुत प्रभावित करते हैं। जब मैं बड़ी हुई तो मैंने टेलीविजन पर बड़े पर्यावरण कार्यकर्ता सालूमरदा थिम्मक्का को देखा था। फिर उनके सराहनीय कार्यों के बारे में अखबारों और पत्रिकाओं में पढ़ा। शायद इसलिए ही तब मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा, जब अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस पर मुझे इस ग्रीन वॉरियर महान आत्मा से मिलने और बातचीत करने का मौका मिला।

मुझे यह जानकारी दी गई थी कि सालूमरदा थिम्मक्का शहर के बाहरी इलाके में मेट्रो की शोर से दूर रहती हैं। इसलिए मैंने अपने दिमाग में एक तस्वीर बना ली थी कि वह हरे भरे एक खेत में रहती होंगी और वह वही करती होंगी, जो उन्हें सबसे ज्यादा पसंद है। जैसे कि पेड़ लगाना। लेकिन जब मैं थिम्मक्का के घर पर पहुंचा तो मेरी कल्पनाओं के सभी चित्र धुमिल हो गए। मैंने गेट पर खड़े होकर जब अपने चारों तरफ देखा, तो मुझे बहुत बड़ा झटका लगा। मैंने वहां पर पेड़ों को देखने की कोशिश की, लेकिन वहां ज्यादातर जमीन खाली थी, भूमि बंजर थी।

जब मैंने डोर बेल बजाया, तो एक युवक ने मेरा स्वागत किया। मुझे पता था कि थिम्मक्का एक बच्चे को भी पालती हैं व उसके साथ रहती हैं, शायद यह वही थे। उनका नाम सालूमरदा उमेश था। उमेश एक छात्र थे, वह सालूमरदा थिम्मक्का के काम से प्रभावित होकर उनके जैसा बनने का सपना देख लिया था। जिसके बाद उन्होंने पौधरोपण मिशन से जुड़ने के लिए कम उम्र में ही घर छोड़ दिया था।

घर में एक अजीब सी खामोशी थी। गलियारा पूरी तरह से खाली था, जिसमें मुझे कहीं भी थिम्मक्का की झलक नहीं दिख रही थी। लेकिन जब मैंने लिविंग रूम में प्रवेश किया, तब वह कमरा थिम्मक्का के कार्यों का बखान कर रखा था। शोकेस में बड़े व्यवस्थित ढंग से ग्रीन वॉरियर के कई पुरस्कार और स्मृति चिह्न सजाए गए थे। कई तो पुरस्कार या स्मृति ऐसे थे, जो कमरे में जाने के रास्ते को भी बाधित कर रहे थे।

उस शोकेस में कई ऐसी चीज़ें थी, जिसने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उनमें से एक थी- सालूमरदा थिम्मक्का और उनके पति बिक्कालू चिक्कैया के सुनहरे दिनों की एक प्यारी फोटो। चिक्कैया ही थिम्मक्का की प्रेरणा थे। चिक्कैया ने एक सपना बोया और उसे थिम्मक्का ने सींचा। दोनों ने साथ में मिलकर गर्मी, बारिश व सर्दियों में पौधों को बोया और उन्हें अपनी उम्र के साथ पेड़ों में बदलते देखा।

जब मैं वहां खड़ी होकर उस जोड़े की तस्वीर को निहार रही थी, तभी मेरे कानों से एक कर्कश आवाज़ आई। “मैडम, कैसी हो?” मैं पलटी और सामने खड़ी बुजुर्ग महिला को देख कर आश्चर्यचकित रह गईं, वह कोई और नहीं ग्रीन वॉरियर सालूमरदा थिम्मक्का थी। थिम्मक्का चार फुट की थी और खूबसूरत लाल बॉर्डर वाली गहरे हरे रंग की साड़ी पहने हुए थी। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो स्वयं में प्रकृति की अवतार लग रही थी।

थिम्मक्का इतनी फुर्तीली थीं कि उन्हें मेरे बगल में रखी कुर्सी पर आकर बैठने में महज़ तीन सेकंड से भी कम समय लगा। यह देख मैं चौंक गई। मैंने उनसे उत्सुकता से पूछा कि “आपकी उम्र क्या है?” उन्होंने मुस्कुरा कर जवाब दिया कि “108 वर्ष में से 6 महीने कम।” मैंने महसूस किया कि वृद्धावस्था भी एक सदी में उन्हें पराजित नहीं कर सकी। फिर मैंने आश्चर्यचकित भाव से उन्हें अपनी ज़िंदगी का सफरनामा सुनाने के लिए कहा। उन्होंने मेरी बात को मान अपने सफर की बात बतानी शुरू की, “हमें शादी के कई साल बाद भी बच्चे नहीं हुए थे, जिससे हम दोनों निराश रहते थे, एक दिन मुझसे चिक्कैया ने कहा कि अगर हम ऐसे ही जीवन जीते रहे तो दुनिया हमारा सम्मान कभी नहीं करेगी। हमें बच्चे नहीं हुए तो क्या, हम पौधों को ही लगाकर उन्हें बच्चों की तरह पाल कर पेड़ बनाएंगे। इस तरह से हमारे पौधरोपण का सफर शुरू हुआ। आज 70 साल बाद भी मैं बतौर ग्रीन वॉरियर उनके सपने को संजो रही हूं।

चिक्कैया और सालूमरदा थिम्मक्का ने साथ में न सिर्फ पेड़ लगाए बल्कि उनकी देखरेख भी की। ठीक वैसे ही जैसे लोग अपने बच्चे को पालते हैं। एक मजदूर होने के नाते उनके लिए आसान नहीं था। मेरे इस सवाल पर थिम्मक्का ने जवाब दिया कि “हमारा लक्ष्य था ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना और हम एक मिशन पर थे। सफर थोड़ा मुश्किल था, लेकिन हम एक-दूसरे का सहारा बन कर खड़े थे।

इस दृढ़निश्चयी दंपति ने मिलकर कर्नाटक राज्य में हुलिकल और कदुर के बीच एनएच पर 350 से अधिक पौधे लगाए थे। उन्होंने उन पेड़ों के लिए एक नाम ‘सालूमरदा’ दिया, जिसका अर्थ कन्नड़ में ‘पेड़ों की एक पंक्ति’ है। थिम्मक्का अपने पति के स्वर्गवास के बाद भी रुकी नहीं, वो पौधरोपण करती रहीं।

इतना सराहनीय काम करने के लिए उन्हें जो प्रशंसा मिली थी, वह नाकाफी थी। वो आज भी सरकार से मिलने वाले सामान्य से पेंशन राशि पर निर्भर हैं। बुढ़ापे के इस पायदान पर आकर भी शारिरिक कमज़ोरी को छोड़ उन्हें और किसी से कोई शिकायत नहीं है।

इसके बावजूद सालूमरदा थिम्मक्का मानसिक रूप से अधिक पेड़ लगाने के लिए हमेशा तैयार लग रही थीं। उन्होंने मुझसे कहा कि “गांव में मेरी थोड़ी ज़मीन है; मैं उसमें खेती करना चाहती हूं।“ बुजुर्ग महिला के जोश को देख मैं भी अचंभित थी। इतनी उम्र ढलने के बाद भी और अधिक पाने की उनकी इच्छाशक्ति अभी भी सराहनीय थी। वह हमारे बेहतर कल और हरे भरे ग्रह के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना चाहती हैं। थिम्मक्का का जीवन खुद में एक असाधारण कहानी है, जिसमें हम देख सकते हैं कि दिहाड़ी मजदूरी करने से लेकर एक प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता होने तक उन्होंने एक लंबा सफर तय किया है।

मैंने उनके उद्देश्य के बारे में जानने के लिए पूछा कि ” पेड़ लगाने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है? क्या इससे आपके जीवन में संतान का खालीपन भर गया है?” थिक्कम्मा ने एक गौरवांवित मां की तरह जवाब दिया कि “जब मैं अपने गांव जाती हूं और मेरे पति और मेरे द्वारा लगाए गए उन पेड़ों को देखती हूं, तो मुझे बेहद खुशी होती है। वे पौधे अब पेड़ बनकर आसमान तक पहुंच गए हैं। जो वहां रह रहे लोगों को लाभान्वित कर रहे हैं।”

बुजुर्ग औरत का मानना ​​है कि पेड़ हमारे जीवन का आधार हैं। पेड़ सभी को लाभ पहुंचाते हैं और यही कारण है जो मुझे ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करता है। थिम्मक्का ने आगे कहा कि, “मुझे बहुत अच्छा लगता है कि जब आजकल के युवा भी उत्साह के साथ पौधे लगाने में रुचि रखते हैं।” मैंने उनसे एक आखिरी सवाल पूछा कि वह लोगों से क्या कहना चाहती हैं? उन्होंने गंभीरता के साथ मुझसे नज़रे मिलाते हुए कहा कि, “मैं सभी को, चाहे वह युवा हो या बुजुर्ग को ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के लिए कहती हूं। आप एक पौधा लगाते हैं और उसे पेड़ बनते हुए देखना एक सुखद एहसास है। यह हमारे ग्रह और समाज के लिए ही अच्छा होगा। पौधरोपण करने से हम एक बेहतर नागरिक बना सकते हैं।”

उनकी इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। ग्रीन वॉरियर थिम्मक्का ने अपने जीवन में सिर्फ देना सीखा है। इसके बदले में कुछ भी पाने की इच्छा नहीं की। उनकी जीवन यात्रा हमें सिखाती है कि ज़िंदगी सिर्फ अपने सपनों व अकांक्षाओं को पूरा करने का नाम नहीं है, बल्कि किसी उद्देश्य को पूरा करना या उसका हिस्सा बनना है। अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस पर सोलवेदा सालूमरदा थिम्मक्का के जज़्बे को सलाम करता है।

  • सालूमरदा थिम्मक्का कर्नाटक की एक प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता और ग्रीन वॉरियर हैं। बीबीसी ने उन्हें दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं की फेहरिस्त में शामिल किया है, क्योंकि वह वृक्ष संरक्षण के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रही हैं। 107 वर्ष की उम्र में भी थिम्मक्का पेड़ लगाती हैं और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाती हैं।
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