दूसरों का बेहतर जीवन ही अपनी संतुष्टि है

दूसरों का बेहतर जीवन ही अपनी संतुष्टि है

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए इस स्वार्थी समाज में वंचितों की चिंता किसी को नहीं है। ऐसे समय में अक्षता शेट्टी और पीयूष गोस्वामी जैसे लोग समाज में एक मिसाल पेश करते हैं और समाज की टूटी कड़ियों को जोड़ने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

एक प्राचीन हिंदू शास्त्र में एक महा उपनिषद (Maha Upanishad) में लिखा गया है कि वसुधैव कुटुम्बकम। जो खुद में एक संपूर्ण वाक्य है, जिसका अर्थ है कि पूरी दुनिया एक परिवार है। भारतीय संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है, जो पूरे ग्रह को साथ में लेकर चलने में विश्वास रखती है। धरती पर रहने वाले सभी मनुष्य को समान दृष्टि से देखना सिखाती है। हमें बताती है कि सभी जीव हमारे परिजन हैं। लेकिन, आधुनिकता के इस दौर में हम अपनी संस्कृति की इस धारणा को भूलते जा रहे हैं। सबका नज़रिया बदल गया है। अब सभी अपने लक्ष्यों को पूरा करने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें दुर्बल और कमजोर लोगों की दुर्दशा नहीं दिखाई देती है।

इस भागदौड़ के ज़माने में जब किसी को किसी का हाल पूछने की फुर्सत नहीं है, तब दो युवा अक्षता शेट्टी और पीयूष गोस्वामी ने नज़रअंदाज लोगों के लिए काम करने का जिम्मा उठाया है। लोगों का काम दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में महत्वपूर्ण हो जाता है। यह दंपति पूरे देश में यात्रा करते हैं, खास कर ग्रामीण भारत में। वहां के समुदायों के साथ बातचीत करते हैं और उनके कठिन जीवन व अभावों के बारे में समझते हैं। रेस्ट ऑफ माय फैमिली नामक संगठन के ज़रिए वे सामाजिक कार्य को कला से जोड़कर करते हैं। ये युवा दंपति कॉर्पोरेट संस्थाओं से फंड पाते हैं और फिर उनकी मदद करते हैं, जो ज़रूरतमंद हैं। सोलवेदा ने इनका इंटरव्यू किया, जिसमें अक्षता और पीयूष ने अपने जीवन की प्रेरणा के बारे में जिक्र किया।

आपकी पहल के बारे में हम विस्तार से जनना चाहते हैं, हमें बताएं?

पीयूष और अक्षता: हमारी पहल एकदम जमीन से जुड़ी हुई है। हम उन लोगों के लिए काम करते हैं, जिन्हें आज के स्वार्थी प्रतिस्पर्धा के कारण औसत जीवन भी नहीं मिल पा रहा है। हम उनके जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के लिए जागरूकता फैला रहे हैं। डॉक्यूमेंटेशन और संवाद के ज़रिए हम पूंजीवादी समाज के नकारात्मक पहलुओं के बारे में पड़ताल करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही हम कमजोर वर्ग के लोगों के जीवन को आसान बनाने का विकल्प भी खोजते हैं। इस प्रतिस्पर्धात्मक और स्वार्थी नज़रिए को बदलने की हमारी इच्छा ही हमारे प्रेरणा का स्रोत है।

तो, इस पहल की शुरुआत कहां से हुई? इसके पीछे की कहानी क्या है?

पीयूष और अक्षता: जब हम भारत भ्रमण (Bharat Bhraman) पर निकले, तब हमने ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के साथ काफी समय बिताया। उनके साथ होने पर हमें उनकी समस्याएं समझ में आई। हमें यह बात समझ में आई कि हमारा समाज ही इस नींव के प्रति उदासीन रवैया अपनाए हुए है। इसी कारण से इन समुदाय के लोगों को भी अपने अस्तित्व पर सवालिया निशान लगता दिखाई देता है। इस बात ने हमें चिंता में डाल दिया और फिर हम दोनों ने अपनी-अपनी नौकरियां छोड़ दी। फिर निकल पड़े हम ग्रामीण भारत की यात्रा पर, जिसमें हम विभिन्न समुदायों के जीवन और उनके संघर्षों का डॉक्यूमेंटेशन करने लगे।

शुरुआती दो साल तक हम लोगों की समस्याएं सुनते और उन्हें डॉक्यूमेंटेशन करते या लिख लेते थे। उसके बाद हमें लगा कि अब हमारे पास पर्याप्त डॉक्यूमेंट है, जिससे हम अपना एक संगठन बना सकते हैं। इसके साथ ही एक मंच मिल जाएगा, जिस पर लोग आकर अपनी समस्याएं बता पाएंगे। लेकिन और वक्त गुजरने पर हमें अपनी गलती का एहसास हुआ कि इस तरह से हम सिर्फ कहानियां लिखते रह जाएंगे। जो बदलाव हम चाहते थे वह एक रणनीति के द्वारा हमें मिलता। इसलिए, हमने पहले लोगों की कहानियां फोटो के द्वारा, डॉक्यूमेंट्री फिल्म आदि के ज़रिए जागरूकता बढ़ानी शुरू की। इसके बाद समुदायों की मदद करने के लिए कुछ सशक्तिकरण प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू किया।

हर कोई अपनी आजीविका के लिए कार्य या नौकरी करता है। लेकिन जब बात समाज के लिए काम करने की आती है, तो इससे संतुष्टि मिलती है। इस बात पर क्या आप अपने विचार हमें बता सकते हैं?

पीयूष और अक्षता: यदि आप एक सुखी जीवन चाहते हैं, अपने जीवन में संतुष्टि चाहते हैं, तो आपको स्वार्थ और निस्वार्थ भावना के बीच का अंतर और दोनों के बीच संतुलन को समझना ज़रूरी है। ज्यादातर लोग सबसे पहले अपने बारे में सोचते हैं। वे स्वयं के अस्तित्व को सुरक्षित करने के लिए अपनी आजीविका के बारे में सोचने लगते हैं। इस कारण से वे स्वार्थी हो जाते हैं और दूसरों के हितों के बारे में नहीं सोच पाते हैं। यही मुख्य समस्या है, हम सभी को ऐसा लगता है कि हमारी जिम्मेदारी समाज के प्रति सिर्फ वैकल्पिक है। यही कारण है कि हम सिर्फ अपने आराम और सुख के संसाधनों से आगे ही नहीं जा पाते हैं।

जब तक हम यह नहीं समझेंगे कि समाज में मानव संबंध एक संतुष्ट जीवन की कुंजी है, तब तक हम कुछ भी नहीं बदल पाएंगे। जैसे-जैसे हम लोगों से जुड़ते हैं, वैसे-वैसे ही हम समृद्ध महसूस करने लगते हैं। लेकिन, जो लोग प्रतिस्पर्धी और असुरक्षित प्रवृत्ति के होते हैं, वे लोग मानव-संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं। इस असुरक्षा के डर को हमें अपने मन से निकालना होगा। अपने अहम के दीवार को ढहाना होगा, सभी को गले लगाना होगा। तब कहीं जाकर हमें एक संतुष्ट जीवन मिलेगा।

क्या आप हमें बता सकते हैं कि आप अपने प्रोजेक्टस पर किस तरह से काम करते हैं? जिन लोगों से आप अपनी यात्रा के दौरान मिलते हैं, आप उनकी मदद कैसे करते हैं?

पीयूष और अक्षता: एक समुदाय के साथ काम करने के बाद अब हमें अगले किस समुदाय के साथ काम करना है, इसे हम रिसर्च कर के तय करते हैं। इसके बाद तय स्थान के लिए हम यात्रा करते हैं और वहां के अपने लोकल फिक्सर से संपर्क करते हैं। फिक्सर हमारे रहने की व्यवस्था आदि कर देता है। फिर हम कई दिनों या महीनों तक उस समुदाय के बीच में रहते हैं और उस गांव में थोड़े समय के लिए बस जाते हैं। इसके बाद हम उनकी समस्याएं सुनते हैं और धरातल पर उनकी ज़रूरतों को समझते हैं। फिर उस पर डॉक्यूमेंट्री तैयार करते हैं। हम उनकी रोज़मर्रा की समस्याओं पर डॉक्यूमेंटेशन करते हैं, जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बिजली, सड़कें, बुनियादी ढांचा या पेयजल हो सकता है। ये सब समझने के बाद हम एक प्रोजेक्ट का प्रपोजल तैयार करते हैं, जिसे अपने फंडर्स को दिखाते हैं और फिर प्रोजेक्ट पर फंडिंग होने के साथ ही हम काम शुरू कर देते हैं।

अभी तक हमने कई राज्यों में लगभग 200 बच्चों को शिक्षा मुहैया कराई है। पश्चिम बंगाल के आर्सेनिक से दूषित पेयजल को उत्तर 24 परगना जिले में स्वच्छ किया है, इसके लिए हमने पेयजल आपूर्ति परियोजना शुरू की थी। वहीं, बस्तर में हमने स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया है। जिसके तहत हमने एक मोबाइल मेडिकल डायग्नोस्टिक्स प्रोजेक्ट शुरू किया। असम में हमने एक किसान समूह का गठन किया, जो किसानों की मदद करता है। फिलहाल हमारी और चार परियोजनाएं अभी धरातल पर आने वाली हैं।

किसी भी काम की शुरुआत कठिन होती है, आपने किन चुनौतियों का सामना किया? लोग आप दोनों को किस नज़रिए से देखते हैं, एक पर्यटक के रूप में या अपने शुभचिंतक के रूप में? क्या लोग अपनी समस्याओं पर आपसे खुल कर बात करते हैं?

पीयूष और अक्षता: हमने कुछ भी ऐसा खास नहीं किया, जिससे लोग समझें कि हम वहां पर क्यों आए हैं। अगर आपके इरादे पक्के होंगे, तो कोई भी मुश्किल आपका रास्ता नहीं रोक सकती है। हमने लोगों से सिर्फ उनका समय मांगा, जो लोग हमें देते हैं। हमने भी उन्हें समय दिया कि वे हमें समझ पाए। यह सब कुछ सिर्फ मानवीय संबंधों के कारण ही हो सका।

ऐसा नहीं कि रास्ता आसान था, हमने भी बहुत चुनौतियों का सामना किया। सबसे ज्यादा समस्या हमें फंडिंग के लिए आती है। क्योंकि कोई भी फंडिंग कंपनी जानना चाहती थी कि हम किस तरह से काम कर रहे हैं। बहुत उतार-चढ़ाव आए, लेकिन फिर भी हम डटे रहे।

आपने देश में कई गांवों की यात्रा की है। आपको कौन लोग याद हैं, जिनके साथ आपके खास पल जुड़े हैं?

पीयूष और अक्षता:  जब हम ओडिशा में यात्रा कर रहे थे, तब हमें ओडिशा की बोंडा जनजाति के साथ रहने का मौका मिला। वो जनजाति बहुत अच्छी थी, इसलिए हम तकरीबन दो महीने वहां पर रह गए। गांव वालों ने हमें रहने के लिए मिट्टी का घर दिया, बारिश में उस घर की छत टपकती थी। घर के अंदर न ही नल था और न ही शौचालय। जिसके लिए हमें नदी में नहाना पड़ा और शौच के लिए जंगल में जाना पड़ा। हम दोनों भी ग्रामीणों की तरह ज़रूरत की चीज़ें खरीदने के लिए आस-पास के गांवों में जाते थे। इसी दौरान पीयूष को मलेरिया हो गया और फिर उसी दिन उसके पैर में मोच भी आ गई। हमारे उस कठिन समय में ग्रामीणों ने हमारी जो देखभाल की, हम जीवन भर उनके कृतज्ञ रहेंगे। उनका प्रेम और लगाव देखकर हमें वहां पर घर जैसा महसूस हो रहा था। शायद इसलिए यह अनुभव हमारे दिल के बेहद करीब है।

लोगों की स्थिति देखकर आप लोग काफी भावनात्मक हो जाते होंगे! ऐसे में अपने पहल को जारी रखने की क्षमता आप कैसे ला पाते हैं?

पीयूष और अक्षता: जब हमें पता होता है कि हमें जीवन में क्या करना है। तब हमारे अंदर आने वाला जुनून हमें भावनात्मकता में बहने से रोकता है, जिससे हमें उस स्थिति पर काम करने की ताकत मिलती है। हमारा मानना है कि जीवन में संघर्ष, चुनौतियां और दिल को झकझोरने वाली ऐसी कई घटनाएं घटित होती हैं, जो हमारे संकल्प को कमजोर नहीं करती है, बल्कि उसे और अधिक मज़बूत कर देती हैं। समय के साथ हम और ज्यादा कठोर हो जाते हैं।

रेस्ट ऑफ माई फैमिली ने जीवन के प्रति आपका नज़रिया कैसे बदला?

पीयूष और अक्षता: सीखने का नाम ही जीवन है। हमने अपनी जिंदगी में कई अनोखी सीख ली हैं। हमने अपना पूरा ध्यान चीजों को स्वीकार करने में लगाया है। हमने सीखा है कि हमें आलोचनात्मक कम होना चाहिए। हमने अपनी अब तक की यात्रा में सीखा है कि हर जगह लोग एक जैसे हैं। सब लोग हमारे जैसे ही इंसान है, जो प्रेम और अपनत्व के भूखे हैं। हम एक या दो महीने से ज्यादा कहीं नहीं रूके, इससे हमने सीखा कि कोई भी चीज़ या व्यक्ति हमेशा के लिए नहीं रहता, रहती है तो सिर्फ उनकी यादें। जिसे हम अपने दिल में संजो सकते हैं।

रेस्ट ऑफ माई फैमिली ने हमें निस्वार्थी और समाजसेवक बनाया, जिससे हम सच्चे मन से मानव संबंधों को समझ पाए और यह समझ पाए कि जीवन में प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं है। इसलिए आज हमारे पास पैसे कम हैं, लेकिन हम एक संतुष्ट जीवन जी रहे हैं। हमें खुशी है कि हमारा जीवन लोगों के काम आ रहा है।

  • अक्षता शेट्टी

    इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग ग्रेजुएट

    अक्षता शेट्टी, इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं। ग्रेजुएशन के बाद शब्दों से हुए प्रेम ने उन्हें पत्रकार बना दिया। वर्ष 2013 में, उन्होंने रेस्ट ऑफ माय फैमिली की शुरुआत करने के लिए अपनी पत्रकारिता की नौकरी छोड़ दी। लेकिन इसके बाद भी अपनी कलम की ताकत से मूलभूत सामाजिक समस्याओं को उजागर कर रही हैं। अक्षता ग्रामीण भारत में अपनी यात्रा को पूरी दुनिया के सामने साझा करना चाहती हैं।
  • पियूष गोस्वामी

    मैकेनिकल इंजीनियर

    पीयूष गोस्वामी एक मैकेनिकल इंजीनियर थे, जो एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम करते थे। लेकिन फोटोग्राफी और फिल्म निर्माण के उनके जुनून ने उन्हें इस क्षेत्र में अपने स्किल को विकसित करने का मौका दिया, जिसके बाद वह अक्षता के साथ मिलकर रेस्ट ऑफ माई फैमिली नामक संगठन की शुरुआत की, जिसके माध्यम से वे समाज के टूटे हुए हिस्सों को जोड़ने के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाते हैं।
X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।