प्राचीन काल के इमोजी

प्राचीन काल के इमोजी

अगली बार जब देवालय जाएं, तो वहां बने चित्रों और चिह्नों को गौर से देखें। इन ‘इमोजी’ से आप बहुत कुछ पता लगा पाएंगे।

आजकल जब हम सोशल मीडिया पर वार्तालाप करते हैं, व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजते हैं या ट्विटर पर ट्वीट करते हैं, तब हम इमोजी का इस्तेमाल करते हैं। इमोजी ऐसा चिह्न या चित्र है, जिसके प्रयोग से हम अपने भावों को व्यक्त कर सकते हैं। भारतीय परंपरा में हज़ारों वर्षों से चित्रों या वस्तुओं के माध्यम से कई प्रकार की इच्छाएं व्यक्त की जाती रही हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इमोजी का प्रयोग तो पुरातन काल से होता आ रहा है।

उदाहरणार्थ, जब भभूत दिखाया जाता है, तो हम समझ जाते हैं कि वैराग्य भाव और संन्यासियों के बारे में बात हो रही है, जो हमेशा यह याद दिलाते हैं कि दुनिया नश्वर है। लेकिन, जब हम चंदन की बात करते हैं, तो वह एक ऐसी सुगंधित वस्तु है जो हमें प्रकृति से प्राप्त होती है। इस प्रकार चंदन हमें जीवन के रस और उसके सौंदर्य व शृंगार के बारे में बताता है, ना की संन्यास के बारे में। इसका अर्थ है कि भभूत के माध्यम से संन्यास व्यक्त होता है और चंदन के माध्यम से शृंगार। शिवजी भभूत पहनते हैं और श्रीकृष्ण, विष्णु और राम को हम चंदन का शृंगार करते हैं। इस प्रकार प्रतीक के माध्यम से एक भाव व्यक्त हुआ।

कई पशु-पक्षियों का भी प्रतीक के रूप में प्रयोग किया गया है। उदाहरणार्थ, जब हम तोते का चिह्न देखते हैं, तो हमें कामदेव की याद आती है। इस प्रकार तोते के माध्यम से प्रेम और कामशास्त्र की बातें व्यक्त होती हैं। हंस को ज्ञान का चिह्न माना जाता है। हाथी या घोड़े हमें राजधर्म की बातें याद दिलाते हैं। जब नंदी-सांड दिखाया जाता है, तो हमें फिर से शिवजी की याद आती है– वे जिन्हें आप बांधकर नहीं रख सकते और जो पुरुषत्व के प्रतीक हैं। कुत्ते या कुकुर भय और मृत्यु के प्रतीक चिह्न हैं।

इनके अलावा कई पेड़-पौधों का भी प्रयोग विभिन्न भावों को दर्शाने के लिए किया गया है। उदाहरणार्थ, जब हम बरगद के पेड़ का चिह्न देखते हैं, तब वह हमें वैराग्य की याद दिलाता है। इसके विपरीत, केले का पेड़ या आम का पेड़ गृहस्थ जीवन का प्रतीक है।

गणेशजी के हाथ में कई बार हम परशु और पाश देखते हैं। परशु, जो कुल्हाड़ी होती है, वह विश्लेषण का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि किसी भी समस्या को हम छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ सकते हैं। पाश किसी भी चीज़ को जोड़ने का प्रतीक है। जो बुद्धिजीवी है, वह हर बात को तोड़ता है और फिर जोड़ता है। इस प्रकार परशु और पाश सांख्य और योग के चिह्न बन गए। गणेशजी के हाथ में अंकुश भी होता है। यदि हम अंकुश को देखें, तो उससे हम हाथी जैसे विशाल पशु को आगे बढ़ने की आज्ञा दे सकते हैं। उसी समय हम उसे रोकने की भी आज्ञा दे सकते हैं। तो इस प्रकार अंकुश के माध्यम से हम शक्ति की बात कर सकते हैं।

रेखागणित संबंधी चित्रों का भी विभिन्न चीजों को दर्शाने के लिए प्रयोग किया गया है। ऊपरी दिशा में संकेत करने वाला त्रिकोण चेतना का प्रतीक है, जबकि नीचे की ओर संकेत करने वाला त्रिकोण प्रकृति का। रंगों का भी प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है। उदाहरणार्थ लाल रंग उपजाऊपन का प्रतीक है, जबकि श्वेत रंग संन्यास या वैराग्य का।

इस तरह हम देखते हैं कि भारतीय सभ्यता से मिलने वाला ज्ञान केवल लेखन से नहीं आता, बल्कि चित्रों और चिह्नों से भी आता है, जैसे भभूत, चंदन, तोता, हंस, हाथी, घोड़ा, नंदी, सांड, कुकुर, बरगद, आम और केले के पेड़, परशु, पाश, अंकुश और त्रिकोण। ये चिह्न हमें मंदिरों की दीवारों पर दिखाई देते हैं और इनसे भी ज्ञान प्राप्त हो सकता है। है ना अद्भुत?

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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