चंदामामा: एक प्रेम कथा

चंदामामा: एक प्रेम कथा

चंद्रमा को प्रेम के साथ जोड़ने का एक लंबा इतिहास है। उनका प्रेम जीवन बहुत ही रोमांचक और तनावपूर्ण भी है। इसमें लड़ाई-झगड़ा और रूठना-मनाना भी होता रहता है।

चांद और चंद्र ग्रह की कहानियां हमेशा प्रेम से जुड़ी होती हैं। प्रेमी और प्रेमिका चांदनी रात में मिलते हैं और शरद पूर्णिमा की रात राधा और कृष्ण रासलीला रचते हैं। चंद्रमा को प्रेम के साथ जोड़ने का एक लंबा इतिहास है। पौराणिक ग्रंथों में चंद्र सोम के साथ भी जुड़ गए। हम चंद्रमा को सोम भी कहते हैं, इसलिए सोमवार होता है और चंद्र के देवता शिवजी के मंदिर को हम सोमनाथ कहते हैं।

लेकिन, जब हम ऋग्वेद पढ़ते हैं, तो उसमें चंद्र सोम से नहीं जुड़े हैं। सोम एक पदार्थ है, एक ऐसा रस जो देवताओं को प्रस्तुत किया जाता था। इसे सोमरस कहते थे। यज्ञ के समय इंद्र का आह्वान करके उन्हें सोमरस दिया जाता था और उससे प्रसन्न होकर इंद्र यजमान को वरदान देते थे। इस तरह वैदिक ग्रंथों में सोम और चंद्र का कोई संबंध नहीं था।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। ये 27 बेटियां सत्ताईस स्त्री नक्षत्र हैं और अभिजीत नामक एक पुरुष नक्षत्र भी है। लेकिन, चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी स्त्री नक्षत्रों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनके साथ पति का कर्तव्य नहीं निभाते। दक्ष प्रजापति के डांटने के बाद भी चंद्र ने रोहिणी का साथ नहीं छोड़ा और बाकि पत्नियों की अवहेलना करते गए। तब चंद्र पर क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने उन्हें क्षय रोग का श्राप दिया। क्षय रोग के कारण सोम या चंद्रमा का तेज़ धीरे-धीरे कम होता गया। कृष्ण पक्ष की शुरुआत यहीं से हुई।

कहते हैं कि क्षय रोग से चंद्र का अंत निकट आता गया। वे ब्रह्मा के पास गए और उनसे मदद मांगी। तब ब्रह्मा और इंद्र ने चंद्र से शिवजी की आराधना करने को कहा। शिवजी की आराधना करने के बाद शिवजी ने चंद्र को अपनी जटा में जगह दी। यह करने से चंद्र का तेज़ फिर से लौटने लगा। इससे शुक्ल पक्ष का निर्माण हुआ। चूंकि दक्ष ‘प्रजापति’ थे। चंद्र उनके शाप से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकते थे। श्राप में केवल बदलाव आ सकता था। इसलिए चंद्र को बारी-बारी से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। दक्ष ने कृष्ण पक्ष का निर्माण किया और शिवजी ने शुक्ल पक्ष का।

चंद्र को लेकर पुराणों में एक और कथा है। इसमें चंद्र नक्षत्रों से नहीं, बल्कि तारों से जुड़े हुए हैं। कहते हैं कि देवताओं के गुरु बृहस्पति ऋषि की बहुत ही सुंदर पत्नी थीं, जिनका नाम था तारा। चूंकि बृहस्पति ऋषि बूढ़े थे और पूजा पाठ में विलीन रहते थे इसलिए तारा उनसे प्रेम नहीं करती थी। उनको चंद्रमा से प्रेम हो गया और एक दिन वे दोनों एक साथ भाग गए। यह जानकर बृहस्पति ऋषि को बहुत क्रोध आया। उन्होंने इंद्र का यज्ञ करने से मना कर दिया और कहा कि वे चाहते हैं कि उनकी पत्नी लौट आए। तब इंद्र और चंद्र का स्वर्ग में एक महायुद्ध हुआ। इसके पश्चात चंद्र तारा को उनके घर लौटाने पर विवश हो गए।

लेकिन, जब तारा घर आईं, तब वह गर्भवती थीं और सबने पूछा कि गर्भ में किसका बच्चा है। क्या वह बृहस्पति का बच्चा है या चंद्र का? तारा ने उत्तर नहीं दिया, लेकिन गर्भ के अंदर बैठे हुए बेटे ने कहा कि उसका जन्म चंद्र के बीज से हुआ है। यह सुनकर बृहस्पति बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने बच्चे को श्राप दिया कि वह नपुंसक के रूप में जन्म लेगा। यह नपुंसक ग्रह बुद्ध ग्रह (Mercury) से जुड़ गया, जो पुरुष और स्त्री दोनों का रूप लेता है।

ऐसे हम देखते हैं कि चंद्रमा प्रेम से जुड़े हुए हैं। उनका प्रेम जीवन बहुत ही रोमांचक और हमेशा तनावपूर्ण है। उसमें लड़ाई झगड़ा और मनाना होते रहता है। यदि हम देखें तो प्रेमियों के बीच में भी ऐसा ही होता है, शिव-शक्ति की कहानियों में, राधा-कृष्ण की कहानियों में लड़ाई होना और मनाना हमेशा चलते रहता है, ठीक चंद्रमा के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष जैसे।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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