इंद्र के कितने रूप

इंद्र के कितने रूप!

आजकल जब हम इंद्र की बात करते हैं, तो वह अधिकतर पौराणिक कथाओं के इंद्र के बारे में होता है, वह इंद्र जो स्वर्ग में रहता है, अप्सराओं और गंधर्वों से घिरा रहता है, सोमपान करता है, ऐरावत पर बैठा है, जिसके हाथ में वज्र है और जिसके गुरु का नाम बृहस्पति है।

एक ऐसा राजा जो असुरों से डरता है और हमेशा ब्रह्म से असुरों का संहार करने का कोई न कोई उपाय पूछता रहता है। वह ऋषियों से भी डरता है और उनकी तपस्या को भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजता है। वह उन राजाओं से भी डरता है, जो यज्ञ करते हैं और वह उनके घोड़े चुरा लेता है। अर्थात हमें इंद्र की बतौर एक असुरक्षित राजा की कथा ही प्राप्त होती है। ये पौराणिक कथाएं करीब 1500 वर्ष पुरानी हैं, जब पुराण लिखे गए थे।

लेकिन, इसके 2000 वर्ष पहले जब हम वेदकालीन इंद्र के बारे में सोचते हैं, तब उनका एक अलग ही रूप दिखाई देता है। पौराणिक इंद्र, विष्णु, शिव और दुर्गादेवी से प्रार्थना करते हैं अपनी रक्षा के लिए। लेकिन, वे ऋग्वेद के रक्षक भी हैं। वे वृत्र और वाला जैसे असुरों के साथ अपने वज्र से युद्ध करते हैं और पानी व नदियों को घेरने वाली बाधाओं को तोड़कर उन्हें फिर से मुक्त करते हैं। अर्थात वे जल को मुक्त करने का काम करते हैं। इंद्र को लेकर रची गई वैदिक कविताओं या वैदिक संहिताओं में इंद्र की प्रशंसा ही की गई हैं। यहां पर इंद्र एक बड़े शक्तिशाली योद्धा हैं। वे युद्ध से नहीं डरते। यहां पर न स्वर्ग का वर्णन है, न ऐरावत का और न ही उनकी असुरक्षा की भावना का।

वैदिक और पौराणिक काल के बीच में हमें बौद्ध, जैन और तमिल परंपराओं के बारे में भी पता चलता है। 2000 वर्ष पहले हमें बौद्ध, जैन और तमिल ग्रंथों में इंद्र का वर्णन मिलता है। लेकिन, ये इंद्र न तो वैदिक इंद्र जैसे हैं और न ही पौराणिक इंद्र जैसे। बौद्ध ग्रंथों में इंद्र को ‘शक्र’ कहा गया है। कहते हैं कि जब बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ था, तब वे ब्रह्म के साथ इंद्र के सामने प्रस्तुत हुए और उनसे यह इच्छा व्यक्त की कि वे अपने ज्ञान का प्रचार विश्व भर में करें। इंद्र के स्वर्ग को 33 देवताओं का स्वर्ग माना जाता है, जो मेरु पर्वत के ऊपर है। वेदों में इंद्र की पत्नी का नाम इंद्राणी बताया गया है। बौद्ध ग्रंथों में कहा गया है कि उनकी पत्नी असुर पुत्री है और इंद्र उनसे विवाह करते हैं। इसके बावजूद असुरों के साथ उनके हमेशा मतभेद और युद्ध होते रहते हैं।

जैन ग्रंथों में इंद्र हमेशा तीर्थंकरों की सेवा करते दिखाई देते हैं, इंद्राणी या सची के साथ। जब किसी तीर्थंकर का जन्म होता है, तब उस घटना स्थल पर इंद्र हमेशा प्रस्तुत होकर उनकी सेवा करते हैं। मंदिरों में भी वे सेवक के रूप में दिखाए गए हैं। इसका अर्थ है वे देवों के राजा हैं, लेकिन जैन तीर्थंकरों के सेवक।

तमिल ग्रंथों में वरुण को समुद्र का देवता माना गया है, मुरुगन को पहाड़ों का देवता, तो इंद्र को मैदानों का देवता। मरू भूमि, मरुस्थल को काली देवी के साथ जोड़ा गया है और जंगलों को विष्णु के साथ। यहां पर इंद्र का अधिक वर्णन ना होते हुए वे एक क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, न की पानी या स्वर्ग से।

इस तरह 5 प्रकार के इंद्र पाए जाते हैं, वैदिक काल के इंद्र, पौराणिक काल के इंद्र, बौद्ध धर्म के इंद्र, जैन धर्म के इंद्र और तमिल परंपरा के इंद्र। कौन से इंद्र सत्य हैं? आजकल ऐरावत वाले इंद्र को हम ज्यादा मानते हैं, जो शिव, विष्णु और देवी की आराधना करते हैं। इंद्र के कोई मंदिर नहीं होते, लेकिन इंद्र की सबसे पुरानी छवि हमें बंबई के पास भाजा नामक एक बौद्ध गुफा में मिलती है। यह गुफा लगभग 2200 वर्ष पुरानी है और यहां पर इंद्र ऐरावत के ऊपर बैठे दिखाई देते हैं। संभवत: यह ऐसी पहली छवि होगी, जिसमें वे ऐरावत पर बैठे हैं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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