मातृभाषा हमारी पहचान

मातृभाषा की शक्ति

शब्द, भावनाएं, विचार, बोलियां, मातृभाषा और भाषाएं। लेकिन विकास की रफ्तार और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के बीच मदर लैंग्वेज पीछे छूट रही है। यही नहीं कई बोलियां और स्थानीय भाषाएं तो खत्म हो चुकी हैं।

मां… दुनिया का सबसे प्यारा शब्द है। कहते हैं भगवान हर जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने मां को बनाया। दुनिया में कदम रखने के साथ ही नवजात अपनी मां की भाषा पहचान लेता है। इसलिए तो घर में बोली जाने वाली भाषा को मातृभाषा यानी मदर लैंग्वेज (Mother Language) कहा जाता है। वह भाषा जिसके साथ हम बचपन से ही पले-बढ़े हैं। इससे जितना अपनापन हम महसूस करते हैं उतना शायद किसी दूसरी चीज़ से नहीं। आखिर यही तो है जिसके जरिए हम अपने विचार और इमोशन बेझिझक जाहिर करते हैं।

कहावत है कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी, मतलब थोड़ी ही दूरी पर बोली बदल जाती है। भारत जैसे विशाल देश में सैकड़ों मदर लैंग्वेज हैं। यहां अलग-अलग बोली वाले लोगों के लिए भाषा पुल का काम करती है। इसलिए तो हम स्कूल या वर्कप्लेस में रोज़मर्रा के काम के लिए मदर लैंग्वेज (Mother Language) सीखते हैं। लेकिन कहीं ऐसा न हो कि इसमें महारत हासिल करने की कोशिश में हम अपनी भाषा से दूर चले जाएं। यह बात इतने बड़े पैमाने पर हो रही है कि दुनियाभर में कई मूल भाषाएं खत्म होने की कगार पर हैं।

इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे (International Mother’s Day) के मौके पर सोलवेदा सांस्कृतिक नज़रिए से मातृभाषा के महत्व पर नज़र डाल रहा है।

सांस्कृतिक पहचान बनाने में मददगार 

बहुत सारे लोग ऐसी जगहों पर बस जाते हैं जहां अलगअलग भाषाएं बोली जाती हैं। समय के साथ  हम भी नई भाषा सीखते और इन जगहों पर सांस्कृतिक रूप से जुड़ने की कोशिश करते हैं। इसके बावजूद हमारी मदर लैंग्वेज बोलने वाला कोई शख्स मिल जाए तो उसके प्रति लगाव को बयां करना आसान नहीं होता। हमें अपने घर की याद सताने लगती है, जिसे रोजी-रोटी की तलाश में छोड़ना पड़ा। इसलिए मदर लैंग्वेज (Mother Language) सिर्फ बातचीत का ज़रिया नहीं है। इसके शब्द बहुत कुछ बयां करते हैं- हमारे क्षेत्र, कल्चर, खान-पान, पहनावा और मिट्टी की सौंधी खुशबू।

समाजशास्त्री मालती गोपाल कहती हैं, “हमारी मातृभाषा हमें अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को मज़बूत करने और बढ़ाने में मदद करती है- न सिर्फ अपने लिए बल्कि दुनिया के लिए भी। यह हमारी अपनी संस्कृति में हमारे गौरव को बढ़ाता है। जब हम अपनी मातृभाषा में बात करते हैं तो सुनने वाले को बताते हैं कि हम किस जगह और संस्कृति से जुड़े हैं। किसी भाषा में बारीक फर्क,  जैसे उच्चारण से भी जाहिर होता है कि हम कौन हैं।

कल्चर बचाने में मददगार

मदर लैंग्वेज के जरिए पुश्तैनी ज्ञान एक से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचता है। इसलिए भाषाएं हमारे कल्चर को बचाने में अहम भूमिका निभाती हैं। मूल भाषाओं के खत्म होने के साथ ही कई चीज़ें हमेशा के लिए गुम हो जाती हैं। वहां के लोगों के पास अपने एनवायरनमेंट, कल्चर,  दर्शन और धर्म के बारे में जानकारी खत्म हो जाती है। भाषा के बिना कोई विरासत कैसे आगे बढ़ सकती है?

उदाहरण के तौर पर हम पूर्वोत्तर चीन की भाषा हेज़े (Hezhen) को ले सकते हैं। हेज़े ट्राइबल की परंपरा के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है, जिससे यहां यिमाकन यानि कहानी कहने की परंपरा चलती रहे। कहानी के इस सेशन में इतिहास, उनकी लड़ाइयों और गठबंधनों के बारे में बताया जाता है। इसमें वे अपने हीरो की तारीफ भी करते हैं। हेज़े जनजाति के लोग शिकार, मछली पकड़ना, ज़िंदगी-मौत और दूसरे अनुष्ठानों के बारे में भी बताते हैं। जाहिर है इस परंपरा के जरिए हेज़े युवाओं को अपने रीति-रिवाजों के बारे में पूरी जानकारी देते हैं। इसलिए मौखिक यिमाकान परंपरा इनके कल्चर को बनाए रखने के लिए जरूरी है। लेकिन चिंता की बात है कि आज उनकी मातृभाषा ही मुश्किलों से घिरी है, जिससे यिमाकान ट्रेडिशन और हेज़े कल्चर खत्म हो सकता है।

सामाजिक एकता बनाने में मददगार

हम जानते हैं कि कम्युनिकेशन के जरिए लोगों को एक साथ लाया जा सकता है। ये सही है कि आज हममें से कई लोग बहुत सारी भाषाएं बोल सकते हैं। इसके बावजूद हम अपने मदर लैंग्वेज में आसानी से अपने विचार और भावनाएं रख सकते हैं। यह बताता है कि आखिर क्यों कई सामाजिक संबंध और समूह का आधार मदर लैंग्वेज है। तमिल संगम या गुजराती समाज जैसे संगठनों का उदाहरण लीजिए। ये मदर लैंग्वेज बेस्ड क्लब दुनियाभर में मौजूद हैं, जिससे लोग मिल-जुल सकें और विदेशों में भी घर जैसा महसूस करें। दिलचस्प बात यह है कि ये ग्रुप विभिन्न धर्मों, नस्लों और यहां तक ​​कि अलग-अलग देशों के लोगों को भी एक जगह लाते हैं। जाहिर है भाषा के आधार पर बनने वाला संबंध काफी मज़बूत होता है। अंग्रेजी और विदेशी भाषा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एम माधव प्रसाद कहते हैं कि सामाजिक एकता के लिए भाषा जरूरी है। इसलिए पहले के सभी समुदाय भाषा के आधार पर बने समुदाय थे।”

हम कह सकते हैं कि मातृभाषा समाज में मज़बूत बंधन बनाने में मददगार है। वहीं यह लोगों के बीच एकता लाने का भी काम करती है। इतिहास के समृद्ध भंडार, ट्रेडिशन और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की यह कुंजी है। मदर लैंग्वेज हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और विरासत सहेजने में भी मदद करती है। इसलिए यह सिर्फ एक भाषा नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। यह हमारी पहचान का एक जरूरी हिस्सा है।

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