काशी विश्वनाथ मंदिर का रहस्य, महत्व और इतिहास

काशी विश्वनाथ मंदिर का रहस्य, महत्त्वता और इतिहास

काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के वाराणसी शहर में बसा हुआ है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भगवान शिव के ही अलग-अलग रूप हैं।

भगवान शिव, शिव-शंभु, शंकर और भोलेनाथ नामों से जाने जाते हैं और उनका एक अन्य नाम विश्वनाथ भी है। हिन्दू धर्म में शिव जी की बहुत महत्त्वता है और विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के वाराणसी शहर में बसा हुआ है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भगवान शिव के ही अलग-अलग रूप हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर में विराजमान देवता विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाने जाते हैं, जिसका अर्थ ‘ब्रह्मांड के शासक’ है। वाराणसी शहर को काशी भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है।

प्राचीन काल से ही शिव भक्त श्रद्धालु मोक्ष पाने की कामना मन में लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर आते हैं और पूरी श्रद्धा से शिव-शंभु के दर्शन करते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में कुछ साल पहले काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) निर्माण हुआ है, जिसकी वजह से मंदिर की भव्यता में और बढ़ गई है। काशी विश्वनाथ मंदिर में रोज़ हज़ारों श्रद्धालु की भीड़ उमड़ी रहती है और सैलानी दूर-दूर से कॉरिडोर घूमने आते हैं। आइए सोलवेदा के साथ आगे जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास और इसके रहस्यों के बारे में।

काशी मंदिर और इतिहास (Kashi mandir aur itihaas)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की यह नगरी उनके त्रिशूल की नोक पर बसी हुई है और बाबा विश्वनाथ को विश्वेश्वर यानी विश्व के शासक के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ का यह मंदिर बहुत सालों से यहां मौजूद है, जिसका उल्लेख महाभारत जैसे पौराणिक वेद-ग्रंथ में किया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है, हालांकि इसको लेकर साल स्पष्ट नहीं है कि मंदिर की नींव कब रखी गई। 

कुछ स्रोतों की मानें, तो मंदिर की स्थापना लगभग 3500 वर्ष पहले हुई थी। कुछ का यह भी मानना है कि मंदिर को महाभारत काल में बनाया गया था। मध्यकालीन इतिहास के कुछ लेखकों का मानना है कि इस मंदिर को बार-बार तोड़ा गया और फिर इसका पुनर्निर्माण हुआ। ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने भी इस मंदिर को तोड़ा और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी। लेकिन 11वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र इस मंदिर को फिर से बनवा दिया। कई महान साधु-संत जैसे आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी ईविवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, गोस्वामी तुलसीदास, भगवान काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर चुके हैं। मंदिर पर आक्रमण और पुनर्निर्माण का क्रम 11वीं सदी से 15वीं सदी के बीच समय-समय पर चलता रहा।

काशी विश्वनाथ का रहस्य (Kashi vishvnath ka rahasya)

बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग काशी में है, जिसे बाबा विश्वनाथ कहते हैं। काशी को बनारस और वाराणसी भी कहते हैं। शिव और काल भैरव की यह नगरी श्रृद्धा और आस्था से भरी हुई है, जिसे सप्तपुरियों में शामिल किया गया है। दो नदियों ‘वरुणा’ और ‘असि’ के मध्य बसे होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के कुछ दिलचस्प रहस्य।

काशी पहले थी विष्णु नगरी (Kashi pahle thi Vishnu nagari)

पुराणों के अनुसार पहले यह भगवान विष्णु की नगरी थी। जहां भगवान विष्णु के आंसू गिरे थे, वहां बिंदु सरोवर बन गया और भगवान यहां ‘बिंधुमाधव’ के नाम से पूजे जाने लगे। जब महादेव काशी आए तो महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास स्थान बन गई और काशी में काशी विश्वनाथ मंदिर की नींव रखी गई। 

काशी के कोतवाल श्री काल भैरवनाथ (Kashi ke kotwal Shree Kaal Bhairavnath)

भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल (रखवाली करने वाला) कहा जाता है। काशी विश्‍वनाथ में दर्शन से पहले भैरव के दर्शन करना ज़रूरी होता है। तभी दर्शन का महत्व माना जाता है। ऐसा बताया गया है कि शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उस खून के दो हिस्से हो गये और पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव बन गये। इसलिए काशी विश्वनाथ में दो भैरवों की पूजा होती है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। 

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