उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग आस्था और विश्वास का है प्रतीक

उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग आस्था और विश्वास का है प्रतीक

मध्य प्रदेश का शहर उज्जैन पूरी दुनिया में दो चीज़ों के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है। पहला यहां स्थित महाकाल के मंदिर के लिए और दूसरा यहां होने वाले कुंभ मेले के लिए।

भगवान शिव को तो हम सब जानते ही हैं और हमने उनके कई रूपों के बारे में भी सुना है। शिव के उन्हीं रूपों में से एक है ‘महाकाल रूप’ जो उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में विराजमान है। मध्य प्रदेश का शहर उज्जैन पूरी दुनिया में दो चीज़ों के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है। पहला यहां स्थित महाकाल के मंदिर के लिए और दूसरा यहां होने वाले कुंभ मेले के लिए। उज्जैन में मौजूद महाकाल मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग को अन्य सभी लिंगों में सबसे खास माना जाता है और महाकाल के दर्शन के लिए हर साल यहां दूर-दूर से भक्त लाखों की संख्या में आते हैं।

भगवान शिव के इस स्वरूप का वर्णन शिव पुराण में भी विस्तार से मिलता है और महाकवि कालिदास ने अपनी कविताओं में इसकी विशेषताओं को खूब बताया है। कहा जाता है कि एक राक्षस के अन्यायों से प्रजा को बचाने के लिए शिव जी ने महाकाल का अवतार लिया और उस राक्षस को मार गिराया। तभी से यहां के लोग शिव के इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से पूजने लगे।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की खासियत (Mahakaleshwar jyotirlinga ki khasiyat)

उज्जैन के बारे में बात करें तो खुद खगोल शास्त्री मानते हैं कि, मध्य प्रदेश का ये प्राचीन शहर धरती और आकाश के बीच में स्थित है यानी उज्जैन पृथ्वी का केंद्र बिंदु है। यहां तक कि शास्त्रों में भी उज्जैन को देश का नाभि स्थल बताया गया है। वराह पुराण में भी उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि स्थल और बाबा महाकालेश्वर को इसका देवता कहा बताया गया है। उज्जैन के विषय में ये विश्वास हर भक्त के दिल में है कि यहां आकर भोलेनाथ सबके कष्ट दूर करते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती है।

आज से नहीं बल्कि सदियों से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर भक्तों को पूरा भरोसा है। यहां की भस्म आरती दुनिया भर में मशहूर है। जैसा कि हम जानते हैं, इंसान मिट्टी का पुतला है। आखिर में हम सब को राख ही बन जाना है। इस बात को ध्यान में रखते हुए रोज़ मंदिर में भस्म आरती की जाती है। इस भस्म या राख को गाय के गोबर से बने उपले और अन्य सामग्रियों को जलाकर बनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार महाकाल के दर्शन करने से जीवन-मृत्यु का चक्र खत्म हो जाता है और व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी श्रद्धा में लोग दूर-दूर से अपने कष्टों को दूर करने उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर आते हैं। वास्तव में, ये मंदिर श्रृद्धा और विश्वास का अटूट उदाहरण है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर और मान्यताएं (Mahakaleshwar jyotirlinga mandir aur manyatayein)

हिंदू धर्म में सबसे पूजनीय देवताओं में शामिल भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। जैसे शिवा, नीलकंठ, भोले भंडारी, शिवाय, शंकर भगवान आदि। देश की अलग-अलग जगहों पर भगवान शिव से जुड़े 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इनमें से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे मशहूर है, जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। भगवान शिव के इस भव्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने लोग बहुत दूर-दूर से चले आते हैं। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन की शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है। महाकालेश्वर मंदिर में दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में शिवजी विराजमान हैं।

मंदिर के तीन भाग हैं, जहां सबसे नीचे ज्योतिर्लिंग है। भगवान शिव के साथ यहां माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय विराजमान हैं। बीच वाले हिस्से में ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर बन हुआ है। ये पहला ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव की दिन में 6 बार आरती की जाती है। इसकी शुरुआत भस्म आरती से ही होती है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की अनोखी आरती (Mahakaleshwar jyotirlinga ki anokhi aarti)

महाकाल मंदिर में सुबह 4 बजे भस्म आरती होती है। इसे मंगला आरती भी कहा जाता है। कहा जाता है कि महाकाल भस्म से खुश होते हैं। ये आरती महाकाल को उठाने के लिए की जाती है। इस आरती को ढोल-नगाड़े बजाकर किया जाता है। शिव लिंग पर भस्म से श्रृंगार किया जाता है। वर्षों पहले महाकाल की आरती के लिए शमशान से भस्म या राख लाने की परंपरा थी। लेकिन, पिछले कुछ सालों से अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किए गए भस्‍म का इस्तेमाल किया जाने लगा है। मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग दूर होते हैं। महाकाल की भस्म आरती के पीछे एक यह मान्यता भी है कि भगवान शिवजी श्मशान के साधक हैं। भस्म को उनका श्रृंगार-आभूषण माना जाता है।

भस्म यानी राख देह का अंतिम सत्य और सृष्टि का सार है। महाकाल को भस्म लगाना संसार के नाशवान होने का संदेश है। इसके साथ ही इस आरती को केवल मंदिर के पुरोहित करते हैं, बाकी सामान्य लोगों के लिए इस आरती में शामिल होने के लिए धोती पहनना ज़रूरी है और महिलाओं को इस आरती को देखने की अनुमति नहीं होती। हालांकि, वो घूंघट करके आरती का हिस्सा बन सकती हैं। इसके साथ ही यहां की एक और मान्यता है कि शिव के दर्शन करने आया कोई भी राजा यहां रात को नहीं रुक सकता। वर्षों पुरानी इस परम्परा को आज भी निभाया जाता है। आज भी देश के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और अन्य शासक उज्जैन में रात नहीं बिताते। मंदिर की मान्यताएं आज भी बरकरार हैं और हर शिव भक्त पूरी श्रद्धा से उनका पालन करता है।

क्या है महाकाल ज्योतिर्लिंग की कहानी? (Kya hai mahakaal jyotirlinga ki kahani?)

शिव महापुराण में ये लिखा हुआ है कि भगवान शिव के महाकाल रूप की शुरुआत दूषण नामक एक राक्षस से भक्तों की रक्षा करने के लिए हुई थी। दूषण का वध करने के बाद भगवान शिव को ‘कालों के काल महाकाल’ या ‘महाकालेश्वर’ नाम से पुकारा जाने लगा। तभी से इस मंदिर में भक्तों का विश्वास और आस्था बढ़ती चली गई।

उज्जैन का कुंभ मेला (Ujjain ka Kumbha Mela)

उज्जैन सिर्फ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की वजह से ही मशहूर नहीं है, उज्जैन यहां के कुंभ मेले के लिए भी बहुत जाना जाता है। बारह साल में एक बार कुंभ मेला उज्जैन में भी लगता है। कहा जाता है कि पूरे भारत में चार जगहों पर कुंभ लगता है, जिनमें से एक उज्जैन भी है। श्रृद्धालु पूरे बारह साल तक उज्जैन में इस मेले का इंतजार करते हैं। इसमें दूर-दूर से आए पर्यटक श्रृद्धालु, पुजारी, अहोरी बाबा शामिल होते हैं। इस कुंभ मेले का आयोजन शिप्रा नदी के किनारे होता है। अगर आप भी उज्जैन जाकर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शन करने का विचार कर रहे हैं तो कुंभ मेले के वक्त जाना बिल्कुल सही रहेगा।

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