बैसाखी

बैसाखी: वसंत का स्वागत करने वाला एक प्यारा त्योहार

बैसाखी मनाने की एक खास वजह वसंत ऋतु भी है, वसंत के स्वागत में बैसाखी मनाई जाती है। यूं तो बैसाखी पूरे भारत में मनाई जाती है, पर पंजाब में इसकी धूमधाम देखते ही बनती है।

हम सब एक ऐसे राष्ट्र से हैं, जहां सभी धर्मों और संस्कृतियों का आदर किया जाता है। भारत में जितनी ज़्यादा संस्कृतियां हैं, उससे भी ज़्यादा यहां त्योहार मनाए जाते हैं। यहां हर छोटे-बड़े त्योहार मिलकर मनाए जाते हैं और ये त्योहार अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आते हैं। आज मैं बात कर रही हूं एक ऐसे ही त्योहार ‘बैसाखी’ की जो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार बैसाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है। बैसाखी मनाने की एक खास वजह वसंत ऋतु भी है, वसंत यानी सावन के स्वागत में बैसाखी मनाई जाती है। 

अब आप सोच रहें होंगे कि बैसाखी त्योहार कहां मनाया जाता है? तो बता दें कि यूं तो बैसाखी पूरे भारत में मनाई जाती है, पर पंजाब में इसकी धूमधाम देखते ही बनती है। पंजाब में सिक्ख धर्म के अनुयायियों के बीच इस त्योहार को बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। पूरे भारत में बैसाखी का जश्न अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, इसे असम में बिहू, बंगाल में नबा वर्षा और केरल में पूरम विशु कहा जाता है। बैसाख या अप्रैल में रबी की फसल पकने की वजह से, इस दिन को किसानों के मुख्य त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। साथ ही इस दिन से सिक्ख धर्म की कुछ ऐतिहासिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। 

आज सोलवेदा के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे बैसाखी की। तो फिर चलिए बैसाखी और इस त्योहार से जुड़ी कुछ खास बातें जानते हैं।

बैसाखी और वसंत का स्वागत (Baishakhi aur vasant ka swagat)

खेतों में लहराती सरसों और रबी की फसल पक चुकी है और इसके साथ ही हम कुछ ही दिनों में बैसाखी के दिन यानी बसंत का स्वागत करेंगे। बैसाखी, पतझड़ के बाद आई हरियाली के लिए मनाई जाती है। हवाएं फिर सुहावनी होने लगती हैं और हर किसी के चेहरे पर बैसाखी की खुशी देखने को मिलती है।

बैसाखी की ऐतिहासिक मान्यताएं (Baisakhi ki atihasik manyatayein)

बैसाखी को वैसाखी, बिसाख या मेष संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को विषुवत संक्रान्ति भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि बैसाखी के दिन आसमान में विशाखा नक्षत्र होता है और इस विशाखा नक्षत्र का पूर्णिमा में होने की वजह से इस महीने को बैसाख कहते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि बैसाखी के दिन सूरज मेष राशि में आ जाता है। 

इसके अलावा, बैसाखी मनाने की सबसे बड़ी वजह गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा 1699 में खालसा पंथ की नींव रखना, माना जाता है। सिक्खों ने इसी दिन अपना उपनाम ‘सिंह’ रखा था। ये दिन सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए नववर्ष माना जाता है। कहा जाता है कि, सिक्खों के तीसरे गुरु, ‘गुरु अमरदास जी’ ने बैसाखी के दिन की स्थापना की थी और तभी से हर साल इस त्योहार को मनाने का चलन है। बैसाखी के दिन ही, खालसा पंथ की स्थापना के लिए समर्पित लोग ‘पंच प्यारे’ नाम से जाने गए थे।

बैसाखी का त्योहार कब मनाया जाता है? (Baisakhi ka tyohar kab manaya jaata hai?)

इस बार बैसाखी अप्रैल महीने की 13 तारीख को है, जिस दिन हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार बैसाख महीने का पहला दिन है और वसंत ऋतु की शुरुआत है। कभी-कभी पंचाग कैलेंडर के अनुसार बैसाखी 14 अप्रैल को भी पड़ता है। यह त्योहार उत्तर भारत में वसंत ऋतु के फसल की खुशी में मनाया जाता है। 

सिक्ख धर्म में मनाया जाता है बैसाखी का जश्न (Sikh dharm mein manaya jata hai baisakhi ka jashn)

लोहड़ी के बाद बैसाखी ही ऐसा पर्व है, जो पंजाबियों और सिक्खों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बैसाखी सिक्खों का मुख्य त्योहार है। बैसाखी के दिन खेतों में लहराती फसल के पकने की खुशियां मनाई जाती हैं। सुबह से सब लोग गुरूद्वारा जाकर, वहां सत्संग और भवनों का आनंद लेते हैं। फिर घरों में बहुत से खास पकवान बनाए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को अपने साथ बैसाखी मनाने के लिए आमंत्रित करते हैं और शाम होते ही कुछ लकड़ियां जलाकर, सभी लोग खील और जौ गिराते हुए, आग के चारों ओर चक्कर लगाकर, भगवान को फसल और खुशियां देने के लिए धन्यवाद करते हैं। साथ ही घर की महिलाएं गिद्दा गाती हैं और डांस करती हैं। सच में, बैसाखी के दिन की रौनक बहुत खास होती है। 

सोलवेदा की ओर से आप सभी को बैसाखी के पावन पर्व की खूब सारी बधाई। आर्टिकल पर अपना फीडबैक देना और इसे शेयर करना बिल्कुल न भूलें। ऐसे ही आर्टिकल के लिए जुड़े रहें सोलवेदा हिंदी से।

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