सोशल एंजायटी

सोशल एंजायटी डिसऑर्डर क्या है: एक्सपर्ट से जानें इससे बचने के उपाय

वैश्विक स्तर पर सोशल एंजायटी डिसऑर्डर पर हुए कई रिसर्च ने भारत और अन्य देशों के युवाओं में इस समस्या के बढ़ते ग्राफ को इंगित किया है। लेकिन इस बात से राहत मिलती है कि दुनिया में सभी समस्याओं का समाधान है। इसी तरह से सोशल एंजायटी डिसऑर्डर से भी निपटने के कई तरीके हैं।

समाज हमसे और हम समाज से बनते हैं। लेकिन समाज में घुलना-मिलना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है। जिन लोगों को सामाजिक होने में परेशानी या दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, उन्हें सोशल एंजायटी (Social anxiety) डिसऑर्डर हो सकता है। यह समस्या उन्हें कभी भी और किसी भी परिस्थिति में महसूस हो सकती है। चाहे पहली बार डेट पर जाना हो या स्कूल के किसी समारोह में सभा को संबोधित करना हो। उस वक्त हम घबराहट महसूस करते हैं। इस प्रकार की घबराहट सामान्य है। लेकिन जब आप सभी परिस्थितियों या सामाजिक कार्यों को करने में घबराहट, चिंता, डर, तनाव महसूस करने लगे, तो आप सामाजिक चिंता विकार यानी सोशल एंजायटी डिसऑर्डर से पीड़ित हो सकते हैं। इस समस्या से जूझ रहे लोगों को दूसरों से बात करने या किसी भी पार्टी में शामिल होने पर घबराहट या समस्या हो सकती है। ऐसे लोगों को दूसरों द्वारा स्वयं का आकलन होने का डर रहता है, जिससे वे शर्मिंदा महसूस करते हैं।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट वाणी सुब्रमण्यम का मानना है कि “सोशल एंजायटी डिसऑर्डर से ग्रसित लोगों में सामाजिक आयोजनों या किसी के साथ मिलते-जुलते समय चिंता, परेशानी और घबराहट देखी जाती है। यह विकास खुद पर अविश्वास व अकेलेपन जैसी भावनाओं को बढ़ावा दे सकता है। जो सेहत पर प्रतिकूल असर भी डालता है।”

सोशल एंजायटी इन यंग पीपल : ए प्रीविलेंस स्टडी इन सेवेन कंट्रीज़ नामक अध्ययन में ब्राजील, चीन, इंडोनेशिया, रूस, थाईलैंड, अमेरिका और वियतनाम के युवाओं में सोशल एंजायटी के प्रभाव के बारे में पता लगाने का प्रयास किया गया। इसमें 3 में से 1 (36 प्रतिशत) युवाओं में सोशल एंजायटी डिसऑर्डर के लक्षण देखने को मिले। इस अध्ययन में एक और बात स्पष्ट हुई कि 18-24 वर्ष के युवाओं में सोशल एंजायटी डिसऑर्डर होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।

सोशल एंजायटी : प्रीविलेंस एंड जेंडर कोरिलेट्स अमंग यंग अडल्ट अर्बन कॉलेज स्टूडेंट्स नामक एक अन्य अध्ययन में प्रकाशित हुआ था कि युवाओं में सोशल एंजायटी डिसऑर्डर एक खतरनाक समस्या है। इस स्टडी में 472 छात्रों को शामिल किया गया था, जिसमें पुरुषों की संख्या 250 और महिलाओं की संख्या 222 थी। इस अध्ययन में पाया गया कि 28.60 प्रतिशत छात्र और 30.18 प्रतिशत छात्राएं सोशल एंजायटी से गुजरते हैं। यह स्टडी इस बात को स्पष्ट करती है कि इस स्थिति से भारत के युवा भी प्रभावित हो रहे हैं।

आइए सोशल एंजायटी डिसऑर्डर से उबरने के सुझावों के बारे में जानते हैं।

मेडिटेशन करें (Meditation karen)

प्राचीन काल से चली आ रही ध्यान पद्धति आज भी उतनी ही प्रभावी है। सिर्फ हमें उसके महत्व को समझने की जरूरत है। ध्यान लगाने या मेडिटेशन करने के लिए हमें अपने दिमाग को ट्रेनिंग देनी चाहिए। माइंडफुलनेस मेडिटेशन किसी भी चीज पर फोकस करने में मददगार है। इससे आपका मन किसी भी चीज से भटक नहीं पाता है। एक रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि माइंडफुलनेस मेडिटेशन किसी भी तरह की एंजायटी को कम करने में मददगार हो सकती है। यह एक ऐसा तरीका है, जिससे हम अपनी भावनाओं पर काबु पा सकते हैं।

खुद पर दया करने से मिलेगी मदद (Khud par daya karne se milegi madad)

खुद पर दया करने से सोशल एंजायटी में होने वाले सामाजिक नजरिए के डर से राहत मिलती है। सोशल एंजायटी डिसऑर्डर में यह चीज देखी गई है कि सामाजिक तौर पर खुद को जज करने के डर से भी लोग कहीं आना-जाना नहीं चाहते हैं। इस स्थिति में उन्हें अपनी आलोचना होने का डर रहता है। एक शोध में पाया गया है कि सोशल एंजायटी डिसऑर्डर के लोगों के लिए दया भाव कारगर है। लेकिन ऐसे लोग इतने अंतर्मुखी प्रकृति के होते हैं कि उन्हें दूसरों से नहीं, बल्कि खुद से खुद पर दया सकारात्मक प्रभाव डालती है। खुद पर दया करने का अभ्यास करने से आप बदलाव देखेंगे। इसके अलावा आप अपनी दिनचर्या में कृतज्ञता को किसी डायरी में नोट करना ना भूलें। इससे नकारात्मकता कम होगी और सकारात्मकता बढ़ेगी।

सावधानीपूर्वक अपने डर का सामना करें (Savdhanipurvak apne dar ka samna karen)

सोशल एंजयाटी डिसऑर्डर से ग्रसित लोगों में बहुत सी चीजों के लिए डर मौजूद होता है। लेकिन, दुनिया में ऐसा कोई डर नहीं है, जिसका सामना ना किया जा सके। इस प्रकार के डर की वास्तविकता पर सुब्रमण्यम कहती हैं कि “मेंटल हेल्थ सपोर्ट किसी भी डर का सामना करने के लिए हमें तैयार करता है। अगर इस स्थिति को हम उतार-चढ़ाव के ग्राफ के रूप में देखें, तो तस्वीर थोड़ी स्पष्ट होगी कि हम समाज के साथ मिलकर हर वह असंभव काम कर सकते हैं, जिसकी कल्पना हमने अकेले कर रखी थी। किसी मित्र या अपने का सहयोग सोशल एंजायटी को कम करने में एक प्रभावी भूमिका निभाता है।” सुब्रमण्यम का मानना है कि डर पर विजय पाने की स्ट्रेटजी कारगर हो सकती है अगर “आप अपने आराम और सुरक्षा को हमेशा सर्वोपरि रखें।” लेकिन, इसका बिल्कुल भी यह मतलब नहीं है कि हम सोशल एंजायटी से पीड़ित व्यक्ति को अकेले ही डर का सामना करने के लिए छोड़ दें। उसके मन से डर को बाहर निकालने के लिए हमें स्वयं का दृष्टिकोण स्पष्ट रखना जरूरी है।

ब्रीदिंग टेक्निक्स की प्रैक्टिस करें (Breathing technics ki practice karen)

सोशल एंजायटी डिसऑर्डर में ब्रीदिंग टेक्निक्स काफी असरदार साबित होती हैं। सुब्रमण्यम कहती हैं कि “जब भी कभी हम एंजायटी से रुबरू होते हैं, तो सांस लेने की तकनीक का इस्तेमाल करके होमियोस्टैसिस की स्थिति को फिर से रिस्टोर कर सकते हैं।” साइंटिफिक अमेरिकन के मुताबिक, होमियोस्टैसिस दो ग्रीक शब्दों से बना है, ‘सेम यानी कि समान’ और ‘स्टीडी यानी कि स्थिर’। “होमियोस्टैसिस प्रक्रिया जीवन जीने के मूलभूत आवश्यकताओं की मांग करता है। इसलिए ब्रीदिंग टेक्निक्स की प्रैक्टिस करने से आप खुद की एंजायटी पर जीत हासिल कर सकते हैं।”

सुब्रमण्यम का मानना है कि “सांसों पर ध्यान देना सबसे ज्यादा प्रभावी होता है। जब कोई इसकी डेली प्रैक्टिस करता है तो एंजायटी को कंट्रोल करके आप लोगों की तरह जीवन व्यतीत कर सकते है।” जब आप ब्रीदिंग टेक्निक्स की प्रैक्टिस करते हैं, तो आपको अपने सांसों की लय का पता चलता है। सिर्फ उस वक्त इस बात का खास ध्यान रखें कि आप अपने शरीर के कौन से अंग से सांस ले रहे हैं- डायाफ्राम, मुंह या नाक? सोशल एंजायटी डिसऑर्डर से निपटने के लिए यह टेक्निक आपकी काफी मदद कर सकती है।

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