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संबंधों में निजी सीमाएं क्यों जरूरी हैं और इन्हें कैसे तय करें?

संबंधों में निजी सीमाएं आपको बेहतर संवाद साधने में सहायता करती है। आप यह तय करते हैं कि आपकी आवश्यकताओं और निराशाओं में से आपके लिए क्या सही है।

संबंधों में निजी सीमाएं के नियम या उसकी निजी सीमा रेखा खींचकर आप दूसरों को यह संदेश देते हैं कि आप कहां तक और क्या-क्या स्वीकार कर सकते हैं। यह दिशा-निर्देश आपको अपनी पहचान और निजता को अपने काबू में रखने में सहायता करते हैं। आप अपने साथी को यह बता देते हैं कि उसका बर्ताव आपके लिए कहां तक उचित है और उसे कब समझना है कि अब रुक जाना चाहिए। जब सीमाएं साफ हो जाती हैं तो आप उसका उल्लंघन नहीं कर सकते। ऐसा करके आप अपने संबंधों को आगे बढ़ने और खिलने का मौका देकर एक सुंदर सहजीवन की दिशा में आगे बढ़ जाते हैं।

निजी सीमा तय करने का सीधा अर्थ यह है कि आप साफ संवाद स्थापित कर यह तय कर लें कि आपकी ज़रूरत क्या है ताकि संबंधों में ईमानदारी आ सके। हालांकि संबंधों में उचित सीमाएं न हो तो बेकार के विवाद, निराशा और गलतफहमी बढ़ती है, जो अच्छे संबंधों के लिए घातक साबित हो सकती है। यह किसी के लिए भी अच्छी स्थिति नहीं होती।

संबंधों में निजी सीमाएं (Personal boundaries) आपको बेहतर संवाद साधने में सहायता करती है। आप यह तय करते हैं कि आपकी आवश्यकताओं और निराशाओं में से आपके लिए क्या सही है। यह स्पष्टता और ईमानदारी आपके और आपके साथी के लिए भी महत्वपूर्ण है। उचित निजी सीमा होने पर ही आप खुद को सुरक्षित, संतुष्ट और खुश महसूस कर सकते हैं। प्रसिद्ध लेखक मार्क मैनसन ने अपने ब्लॉक में लिखा है कि, “निजी सीमा न केवल आपके आत्मसम्मान और खुद की पहचान को मज़बूत करती हैं, बल्कि यह आपके जीवन को सुगम और सरल बनाने में भी सहायक साबित होती हैं।”

उचित सीमा तय करने और उसका पालन करने के कुछ मूल नियम होते हैं। यहां यह कहना पड़ेगा कि जो बात किसी व्यक्ति के लिए सही होती है वह दूसरे व्यक्ति के लिए सही हो यह जरूरी नहीं होता। चीज़ों को सरल बनाने के लिए हम कुछ बातों पर यहां चर्चा करेंगे, ताकि आप अपने संबंधों में निजी दायरा तय कर सकें।

पहले से तय करें संबंधों में निजी सीमाएं (Pahle se tay kar len sambandho mai niji simayen)

किसी भी संबंध के लिए सबसे पहले यह जरूरी होता है कि संबंधों में निजी सीमाएं पहले से ही तय कर ली जाए। संबंध में आगे बढ़ने के बाद रोज़मर्रा की आदत को बदलने में काफी दिक्कत आती है। ऐसा करते हुए आप अपने साथी को यह बता देंगे कि आपके लिए क्या सही है और उसके लिए क्या सही होगा। इसमें दोनों की ज़रूरत और आवश्यकताएं स्पष्ट हो जाती हैं। ऐसा करने के लिए हो सकता है कि आपको अपने खुशहाल दायरे से बाहर निकलकर यह साफ करना पड़े कि आपकी मानसिक और शारीरिक ज़रूरत और उम्मीद क्या है।

लेकिन, ध्यान रखिए ऐसा करते वक्त आपको यह याद रखना होगा कि खुलकर होने वाली बात से जोड़े के तौर पर आप कहां खड़े हैं और क्या आप इस संवाद के बाद भी संबंधों में अनुकूल रहकर एक-दूसरे के प्रति सम्मान बनाए रखेंगे।

अपने आदर्शों का सहारा लें (Apne aadrsho ka sahara len)

अधिकांश मामलों में हम संबंधों में निजी सीमाएं इसलिए तय नहीं कर पाते, क्योंकि हमें यह पता ही नहीं होता कि हमारे आदर्श क्या हैं। यदि आपको ही अपने आदर्शों के बारे में पता नहीं होगा तो आप अपने साथी को इसका महत्व कैसे समझा सकेंगे। आपके आदर्श ही वह पैमाना हैं जिनके आधार पर आप यह तय करते हैं कि कौन सा बर्ताव और आदतों के साथ आप सहज महसूस करेंगे। अनेक बार जो लोग विवादास्पद संबंधों में फंसे होते हैं, उन्हें यह पता ही नहीं होता कि वे किस बात में विश्वास करते हैं और क्या करना चाहते हैं। अपने आदर्श की जानकारी रखने पर ही आप यह तय कर सकेंगे कि आप किस विचारधारा और आस्थाओं के साथ समझौता नहीं कर सकेंगे। ऐसे में आपके आदर्श बेहतर संबंध स्थापित करने में आपकी सहायता कर सकेंगे।

साफ संवाद रखें (Saf samvad rakhen)

जब आप यह तय कर लेते हैं कि संबंधों या इस रिश्ते में आपको अपने साथी से क्या उम्मीदें हैं, तो फिर इसे लेकर आपको उसके साथ जहां तक संभव हो सके साफ-साफ बात करनी होगी। संदेह और शंका के लिए इस संवाद में कोई जगह नहीं छोड़नी चाहिए। ऐसा होने पर ही आपका साथी आपकी निजता की सीमा का सम्मान करेगा। जो भी बात करें उसमें ‘मैं’ का उपयोग करें। जैसे, ‘मुझे लगा कि जो हुआ वह बेहद बुरा था’ अथवा ‘मुझे उस वक्त गुस्सा आता है जब आप मेरी अनुमति के बगैर मेरा फोन खंगालते हो।’ कहने का अर्थ यह है कि रिश्तों में स्पष्टता रखी जानी चाहिए। आपको यह बात समझनी होगी कि आपका साथी मन की बात पढ़ने में सक्षम नहीं है। उन्हें आप अपने संबंधों में निजी सीमाएं बताएं और उन्हें यह बात समझने में सहायता करें ताकि वह इस बात का सम्मान कर सकें। यह सुनिश्चित करें कि यह संवाद सम्मानजनक और सहानुभूतिपूर्वक साधा जाए।

अपनी निराशा जाहिर करें (Apni nirasha zahir kare)

यदि आपका साथी आपकी निजता की सीमा से आगे बढ़ता है और आप इस बारे में कुछ नहीं कहते हैं तो आप खुद उसकी हिम्मत बढ़ाने में सहायता कर रहे हैं। आप अपने विचार अपने ही पास रखकर खुद में गुबार जमा करके कुंठित होते चले जाते हैं। इससे निराशा पनपती और बढ़ती है। ऐसा आपको नहीं करना चाहिए। इसकी बजाय आपने जैसे संबंधों में निजी सीमाएं तय करते वक्त स्पष्टता से संवाद साधा था ठीक उसी तरह संबंधों में निजी सीमाओं का उल्लंघन होने पर भी अपनी निराशा व्यक्त करें। जब आप अपने साथी को उनकी हरकतों के लिए जवाबदेह मानेंगे और उन्हें यह बताएंगे तो भविष्य में वे यह गलती दोहराने से पहले दोबारा सोचेंगे। इसके बाद ही वह आपकी बात को समझकर आपकी संबंधों में निजी सीमाएं भेदने की कोशिश नहीं करेंगे।

अपनी निजी सीमा खुद तय करें (Apni niji samayen khud tay kare)

जब आप अपने संबंधों में निजी सीमाएं तय करते हैं तो यह बात ध्यान में रखें कि जो बातें दूसरे जोड़े के लिए उपयोगी थी वह आपके लिए भी उपयोगी हो यह जरूरी नहीं है। प्रत्येक जोड़ा अलग होता है। इसमें शामिल दोनों शख्सियतें जुदा होती हैं। ऐसे में आपको अपनी ज़रूरत और उम्मीदों का स्वयं आकलन करना होगा। कुछ ऐसे बर्ताव और आदत होगी जो आपको अपने साथी में पसंद नहीं आएंगी और इसी प्रकार आप उन्हें किस सीमा तक बर्दाश्त करेंगे यह आपको तय करना होगा। ऐसा करने से आप अपने सहजीवन को सकारात्मक और उचित अंदाज में शुरू कर सकेंगे। यहां यह बताना भी जरूरी है कि आपको अपनी निजी सीमा में समय-समय पर परिवर्तन करना होगा और अपनी चिंता से साथी को अवगत भी करवाना होगा। ऐसा करने से उनका जीवन भी सुगम होगा।

धैर्य रखें

अपने संबंधों में निजी सीमाएं तय करने के लिए यह बेहद आवश्यक है कि आप धैर्य रखें। निजता की सीमा तय करने के उल्लेख मात्र से आपका साथी भौंचक्का हो सकता है। संभव है पहले वह इसे स्वीकार करने की स्थिति में ही न हो। ऐसे में आपको धैर्य रखकर अपने साथी को समझाना होगा कि आप इसे जरूरी क्यों मानते हैं। अपने साथी के साथ इस विषय पर निरंतर संवाद बनाए रखें, उन्हें बताएं कि आप किस वजह से निजता की सीमा का सम्मान चाहते हैं। समय के साथ यह संवाद ही सारे संदेह को आगे बढ़ने से पहले ही समाप्त कर देगा।

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