मुंशी प्रेमचंद की कहानियां

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों से हमें मिलती है ज़िंदगी जीने की सीख

कहानी और उपन्यास लिखने वालों में मुंशी प्रेमचंद कोहिनूर हीरा हैं, जिन्हें हर उम्र व वर्ग के लोग पढ़ना पसंद करते हैं। पूस की रात, बड़े घर की बेटी, गोदान, दो बैलों की कथा, बूढ़ी काकी सहित सैकड़ों कहानियां हैं, जो न केवल चर्चित हैं, बल्कि सामाजिक सीख भी देती हैं। मुंशी प्रेमचंद की कहानियों से ही चुनकर हम आपके लिए लाएं हैं ऐसी सामाजिक सीख, जिन्हें हर कोई अपने जीवन में उतारना चाहेगा। जानने के लिए पढ़ें ये लेख।

हम मुंशी प्रेमचंद की कहानियों व उससे मिलने वाली सीख के बारे में जानें, उससे पहले इतिहास के इस महान लेखक के बारे में जानना ज़रूरी है। बनारस के लमही में मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ था। बेहद गरीब परिवार से आने के बावजूद इनकी लिखी कहानियां आज के डिजिटल युग में भी सार्थक हैं। इनके लिखे साहित्य हमें सामाजिक सीख देते हैं, अपनेपन का एहसास दिलाते हैं, जात-पात के बंधन से ऊपर उठने की सीख देते हैं। इनकी लिखी कहानियों में अमीरी और गरीबी के बीच के दर्द को महसूस किया जा सकता है। इनके कुछ उपन्यास हैं, जिसे सभी को पढ़ना चाहिए, जैसे निर्मला, सेवासदन, गबन, रंगभूमि, प्रेमाश्रम, कर्मभूमि व अन्य। कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद जीते-जीते तो फेमस नहीं हुए, लेकिन मृत्यु के बाद इनकी को इतनी ज्यादा प्रसिद्धि मिली कि देश-दुनिया में इनके प्रशंसक हैं।

कौशल से मिलती है आलस्य न करने की सीख (Kaushal se milti hai alas na karne ki sikh)

मुंशी प्रेमचंद की कहानी कौशल (munshi premchand ki kahaniyan) पंडित बलराम और उनकी पत्नी माया के इर्द-गिर्द घूमती है। पंडित जी सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति थे, बच्चों को पढ़ाते थे, जिससे घर का खर्च चलाते थे। एक दिन उनकी पत्नी माया पंडित ज़िद करने लगी कि मुझे भी दूसरी महिलाओं की ही तरह हार चाहिए। इसपर बलराम बोले, हार से क्या होगा, चोरी का डर बना रहेगा… इन जैसी कई बातों में उलझाकर वे नहीं देते थे। असल में बलराम आलसी थे। एक दिन माया पति को बिन बताए एक चाल चली और पड़ोसी से हार लेकर चोरी की अफवाह फैला दी। उसके बाद पड़ोसी को हार देने के लिए बलराम ने खूब मेहनत की। सुबह बच्चों को पढ़ाते, शाम में कुंडली देखते व पूजा-पाठ कराते। इससे होने वाली आमदनी से उन्होंने जब वे पत्नी को हार देने आए और कहा कि इसे पड़ोसी को लौटा दो, तो पत्नी माया ने सारा भेद खोला। तब बलराम को काफी पछतावा हुआ। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि यदि हममें कौशल है, तो जो हम चाहते हैं उसे पाने के लिए हमें कभी भी आलस नहीं करना चाहिए। वहीं कई बार सिर्फ आलस करने के कारण ही हम अपनी चाहतों को पूरा नहीं कर पाते हैं, लेकिन जब-जब जिम्मेदारी हम पर पड़ती है, तो चाहते और न चाहते हुए भी हम ज़िम्मेदारियों को पूरा करते हैं।

माता के हृदय से मिलती है दुख न देने की सीख (Mata ke hriday se milti hai dukh na dene ki sikh)

माता का हृदय कहानी मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में सबसे खास है। ये कहानी माधवी, जिसके पति की मौत हो चुकी होती है और इनके बेटे आत्मानंद के अलावा मिस्टर बागची और मिसेज बागची जैसे किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। माधवी का बेटा पढ़ने में , लेकिन राजनीति में रुझान के कारण उसे पुलिस के कई अधिकारी पंसद नहीं करते थे, इस कारण झूठे केस में फंसाकर उसे जेल भेज दिया जाता है। बेटे के साथ हुई घटना से नाराज माधवी बदला लेने के लिए अधिकारी मिस्टर बागची के घर नौकर बनकर जाती है। लेकिन उनके बेटे की देखभाल करते हुए अपनी ममता से मुंह नहीं मोड़ पाती है। एक समय ऐसा आता है, जब किसी कारणवश मिस्टर बागची के बेटे की मौत हो जाती है इसके बाद बदला लेने की नीयत से वहां गई माधवी दुखी होकर लौटती है। इस कहानी में हमें मां की ममता देखने को मिलती है। मां की छवि को इस प्रकार दर्शाया गया है कि वो बच्चों को देखकर अपना गम भूल जाती है। इसके अलावा मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की इस कड़ी में ये सीख भी मिलती है कि हमें लालच नहीं करना चाहिए। वहीं, कोशिश यही रहनी चाहिए कि हमें कभी भी किसी को दुख नहीं पहुंचाना चाहिए।

पूस की रात से मिलती है चुनौतियों से निपटने की सीख (Poos ki raat se milti hai chunautiyon se nipatne ki sikh)

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की इस कड़ी में पूस की रात एक ऐसी कहानी है, जिसे हर साहित्य प्रेमी न केवल पढ़ना चाहते हैं, बल्कि इस कहानी के साथ दिल से जुड़ जाते हैं। इस गांव में लोग महाजन से पैसे तो उधार ले लेते हैं, लेकिन उन्हें चुकाने के लिए अपनी ज़रुरतों की कुर्बानी देते हैं। हल्कू ने पैसे जमा किए थे कि ठंड में कंबल खरीदने के लिए, लेकिन सर्दी आने से पहले ही महाजन आ जाता है और अपने पैसे मांगने लगता है। महाजन को वापस भेजने के लिए हल्कू पत्नी के मना करने के बावजूद कंबल खरीदने के लिए रखे पैसे उसे दे देता है। इस दौरान हल्कू अपनी पत्नी से कहता है कि पहले महाजन से पीछे छुड़ाता हूं ठंड आने पर हल्कू नीलगाय से फसल को बचाने के लिए अपने कुत्ता के साथ खेत में जाता है। लेकिन ठंड ज्यादा होने के कारण वह चाहकर भी फसल को नीलगायों से बचा नहीं पाता है। उसके सामने नीलगाय फसल को बर्बाद करता रहा, लेकिन वह और उसका कुत्ता फसल की सुरक्षा नहीं कर पाते हैं। अंत में कुत्ता भी ठंड की वजह से मालिक के पास आकर शांत होकर सो जाता है। इस कहानी के ज़रिए भारत के गांव में गरीबी की झलक देखने को मिलती है। साथ ही यह संदेश मिलता है कि कई बार इंसान को अपने जीवन में न चाहते हुए भी बड़े फैसले लेने पड़ते हैं, जो उनके जीवन को प्रभावित करते हैं। वहीं जीवन चुनौतियों से भरा है, इसलिए लोगों को हमेशा चौकन्ना रहना चाहिए।

कफन से मिलती है कामचोरी नहीं करने की सीख (Kafan se milti hai kaam chori nahi karne ki sikh)

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में से ही एक कफन है, जो न केवल सकारात्मक संदेश देती है, बल्कि अपने पात्रों व तानों-बानों के ज़रिए सीख भी दे जाती है। ये कहानी माधव, उसकी पत्नी बुधिया और ससुर घीसू के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी के ज़रिए मुंशी प्रेमचंद माधव व उसके पिता घीसू के कामचोरी को दिखाते हैं कि कैसे उन्होंने लालच व अपनी भूख मिटाने के लिए बुधिया का इलाज तक नहीं करवाया और प्रसव पीड़ा से कराह कर वो मर जाती है। वहीं, घर के बाहर पति व ससुर दोनों पड़ोस के खेत से आलू लेकर पहले तो अपने पेट की आग को शांत करते हैं और बुधिया की पीड़ा को जानते हुए भी नज़रअंदाज़ करते हैं। सुबह होते-होते बुधिया की मौत हो जाती है। दोनों बाप-बेटे इतने गरीब होते हैं कि इनके पास कफन व दाह-संस्कार करने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं। ऐसे में गांव के अमीर लोगों से पैसे मांगते हैं और उसे भी अपनी लालच के लिए खर्च कर देते हैं। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि इंसान को कभी भी कामचोरी नहीं करनी चाहिए। वहीं जिम्मेदारी को निभाना चाहिए न कि उससे मुंह मोड़ना चाहिए। इसके अलावा परिवार के बड़े सदस्य की जिम्मेदारी है कि घर का छोटा यदि गलत करे, तो उसे सही सीख दे, ऐसा नहीं करने से विपत्ति ही आती है।

विजय कहानी हमें बताती है कि लालच करना है बुरी बलाय (Vijay kahani hume batati hai ki lalach karna hai buri balay)

विजय भी मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में से एक है। ये कहानी शहजादा मसरूर और मलका मखमूर जैसे किरदारों पर के इर्द-गिर्द बुनी गई है। मसरूर खेती करता, तो मखमूर घर पर ही खाना बनाती व घर संभालती थी। ऐसे में दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी ठीक-ठाक चल रही थी। लेकिन इनके जीवन में बुलहवस खां नाम का व्यक्ति आया है क्योंकि बुलहवस ठीक व्यक्ति नहीं था, वहीं इसके ठीक विपरीत मसरूर नेक इंसान था। इन किरदारों के जरिए मुंशी प्रेमचंद ने ये शिक्षा दी है कि इंसान को कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। लालच का फल बुरा ही होता है। व्यक्ति लालच के चक्कर में पड़कर ठीक चल रही ज़िंदगी को बर्बाद कर सकता है। लेकिन, यदि आपके इरादे मजबूत हैं तो आप इसके चक्कर से निकल सकते हैं।

यहां महज़ 5 कहानियों और उससे मिली सीख का ही जिक्र है। इसके अलावा मुंशी प्रेमचंद की हर कहानी सामाजिक ताने-बाने को दर्शाती है और व्यक्ति को सकारात्मक सीख देती है।

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