लालच नहीं समझदारी

लालच नहीं समझदारी

धनंजय ईमानदार होने के साथ-साथ समझदार भी था। लेकिन, मगन ग्राहकों को ठगकर पैसे कमाने के फिराक में रहता था। उसके साथ हुआ एक बड़ा हादसा, उसे जिंदगी की असलियत दिखाता है। ये कैसे हुआ यह जानने के लिए पढ़ें पूरी कहानी।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ का गोल मार्केट मशहूर बाजा  में से एक है, जहां ग्राहक सूई से लेकर गाड़ी तक की खरीदारी करने के लिए आते हैं।

ऐसे में सुबह से लेकर देर रात तक, यहां की रंगत देखते ही बनती है। यहां की संकरी गलियों से गुजरते ही गर्म-गर्म जलेबियों की सुगंध के साथ, 300 में साड़ी… 200 में 10 जुराबें… जैसी आवाजें बरबस ही आपका ध्यान खींच लेती हैं।

इसी भीड़ में धनंजय राय और मगन राय की राशन की दुकान एक ही बिल्डिंग में अगल-बगल में थी। दोनों का घर दुकानों के ठीक ऊपर था। ऐसे में वे सुबह से लेकर शाम तक दुकानदारी भी कर लेते थे और सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने का इंतजाम भी दुकान में बैठे-बैठे ही हो जाता था।

धनंजय जहां नेक और ईमानदार था, वहीं मगन तेज़-तर्रार व ग्राहकों को चूना लगाकर खूब माल कमाने के चक्कर में    मगन उन्हें एक्सपायरी सामान बेचने के अलावा सामान के साथ मिलने वाला गिफ्ट भी नहीं देता था।

इसके ठीक उलट धनंजय की दुकान में कोई सामान खराब हो जाए, तो वे खुद नुकसान झेल लेता था, लेकिन ग्राहकों को खराब सामान देने की सोच भी नहीं सकता था।

धनंजय इतना कमा लेता था कि अपना और अपने परिवार का खर्च आराम से चला ले। वहीं, पड़ोसी मगन बेईमानी से खूब पैसे कमाता था और फिजूलखर्ची  वो कहते हैं ना..  गलत करके पैसे तो कमाएं जा सकते हैं, लेकिन ये पैसे  जितनी तेज़ी से आते हैं, उतनी ही तेज़ी से चले भी जाते हैं।

एक दिन  दोपहर के वक्त बिल्डिंग में शॉर्ट सर्किट होने के कारण आग लग गई। दुकान में ग्राहकों के साथ-साथ सह-कर्मियों की अफरा-तफरी मच गई, लोग चिल्लाने लगे, दुकान से सामान निकालने के लिए भारी मशक्कत करने लगे। लेकिन, आग की लपटें इतनी तेज़ थी कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। महज़ चंद मिनटों में ही पूरी दुकान धनंजय और मगन की आंखों के सामने जलकर खाक हो गई। वो तो गनीमत समझिए कि किसी की जान नहीं गई। लेकिन, दोनों की दुकान और घर का सारा सामान जल गया।

सालों की मेहनत को आग में राख बनता देखकर, धनंजय और मगन सिर पकड़कर दुकान के बाहर सड़क पर बैठ गए। धनंजय तो रोने ही लगा… रोए भी क्यों न… दुख जो इतना बड़ा था। मानों दोनों को सदमा लग गया हो, इनके चेहरे पर पीड़ा साफ झलक रही थी। दोनों यही सोच रहे थे कि..  क्या करेंगे, कैसे दोबारा दुकान खोलेंगे, परिवार कैसे चलाएंगे…?

इस हादसे के महज़ कुछ हफ्तों  के बाद मगन ने देखा कि पड़ोसी दुकानदार धनंजय ने फिर से दुकान खोल ली है। यही नहीं बल्कि दुकान में पहले का पुराना किराना दुकान अब लगभग सुपर मार्केट में बदल चुका था।

वहीं मगन भारी नुकसान से उबरने की कोशिश कर रहा था। लेकिन धनंजय की नई दुकान देखते ही उसका सिर चकरा गया। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि ये हुआ तो हुआ कैसे!

मगन राय से रहा नहीं गया, तो उसने धनंजय से पूछने की ठान ली। धनंजय की दुकान में जाकर उसने कहा, ‘ओ भाई धनंजय…धनंजय… एक बात तो बता, दुकान तो हम दोनों की जली थी और तेरे पास तो उतने पैसे भी नहीं हैं, मेरी तुलना में तेरी कमाई भी मामूली ही होती थी, फिर तूने कुछ ही दिनों में ये सुपरमार्केट जैसी दुकान कैसे खड़ी कर ली’?

धनंजय ने मुस्कुराकर जबाव देते हुए कहा, भाई… ‘कहते हैं न, जो सच का साथ देता है, ईश्वर भी उसी का साथ देते हैं। मैं परिवार और अपना खर्च चलाने के साथ-साथ हर साल दुकान का इंश्योरेंस भी कराता था, ताकि कभी कोई अनहोनी हुई तो संभल सकूं। देखो, आज दुकान के जलने का मुझे दुख तो है, पर धंधा खोने का नहीं… समझे जनाब’।

धनंजय की कही ये बात मगन के कानों में लाउड स्पीकर से निकले तेज़ आवाज़ की तरह गूंजने लगी। उसकी आंखों के सामने उसकी पूरी जिंदगी उसे साफ दिख रही थी। जिस जिंदगी में उसने कई ग्राहकों को बेवकूफ बनाया, उन्हें नकली और मिलावटी सामान बेचा। इसके साथ उसे अपनी हर फिजूलखर्ची भी याद आ रही थी। मगन पूरी तरह सदमे में था। अब उसे अच्छी तरह से समझ में आ गया था कि लालच नहीं बल्कि समझदारी और ईमानदारी  से काम करना चाहिए, ताकि कभी कोई अनहोनी हो, तो उससे इंसान उबर सके। वहीं वह अच्छे से इस बात को जान चुका था कि जैसी करनी, वैसी भरनी, यही विधि का विधान है।

इसलिए दूसरों को धोखा कभी नहीं देना चाहिए, क्योंकि हम जिसे धोखा दे रहे होते हैं, भले ही वो इंसान इस बात से अंजान है, लेकिन सच्चाई हमें तो मालूम होती ही है। इसलिए इंसान को गलती से भी किसी के साथ गलत नहीं करना चाहिए। आग में दुकान के साथ-साथ मगन का अहंकार भी जलकर राख बन चुका था। उसने आगे की जिंदगी नेकी के साथ बिताने की कसम खा ली।

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