अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया का त्योहार हिंदू और जैन दोनों धर्मों में क्यूं मनाते हैं?

अक्षय तृतीया का मतलब है कभी न खत्म होने वाली खुशी, जिसका क्षय न हो, शाश्वत, सफलता और तृतीया यानी तीसरा। अगर धार्मिक तौर पर देखें, तो अक्ष्य तृतीया का दिन धनतेरस और दीपावली की तरह ही पुण्यफलदायी माना जाता है। इस दिन शुभ और मूल्यवान सामान की खरीदारी की जाती है।

हिंदू धर्म त्योहारों और संस्कृतियों का मिला-जुला स्वरूप है। हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का विशेष महत्व है और सभी को मनाने का तरीका अलग-अलग है। इसी में से एक त्योहार है अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya)। इस दिन को खरीदारी के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म के कैलेंडर के अनुसार हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अक्षय तृतीया मनाया जाता है। इस त्योहार का जैन धर्म में भी बहुत विशेष महत्व है।

अक्षय तृतीया का मतलब है कभी न खत्म होने वाली खुशी, जिसका क्षय न हो, शाश्वत, सफलता और तृतीया यानी तीसरा। अगर धार्मिक तौर पर देखें, तो अक्ष्य तृतीया का दिन धनतेरस और दीपावली की तरह ही पुण्यफलदायी माना जाता है। इस दिन शुभ और मूल्यवान सामान की खरीदारी की जाती है। इसके साथ ही इस त्योहार से जुड़े कई और भी ज़रूरी बातें हैं, जिनके बारे में हम आगे जानेंगे।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि इस त्योहार को हिंदू और जैन दोनों ही धर्मों में क्यों मनाते हैं। साथ ही यह भी बताएंगे कि अक्षय तृतीया कब मनाई जाती है और अक्ष्य तृतीया की कथा का महत्व क्या है।

कब मनाई जाती है अक्षय तृतीया ? (Kab manai jati hai Akshaya tritiya)

हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी की विधि-विधान पूजा-अर्चना की जाती है। माना ये भी जाता है कि इस दिन पूजा करने से लक्ष्मी माता की विशेष कृपा अपने भक्तों पर होती है और आर्थिक परेशानियां खत्म होती हैं। इस दिन भगवान गणेश, भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है।

अक्ष्य तृतीया के दिन गंगा स्नान करना भी माना जाता है शुभ (Akshaya tritiya ke din ganga snan karna bhi mana jata hai subh)

अक्षय तृतीया को अलग-अलग जगहों पर परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि राजा भागीरथ की तप से खुश होकर गंगा नदी इस दिन ही धरती पर अवतरित हुई थीं। इस दिन पवित्र गंगा नदी में स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। साथ ही देवी अन्नपूर्णा की पूजा भी की जाती है। गरीबों को खाना खिलाने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं रहती है। एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन से महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना शुरू किया था।

अक्ष्य तृतीया के दिन किन कामों का है महत्व? (Akshaya tritiya ke din kin kamon ka hai mahatv?)

इस दिन शादी, गृह प्रवेश, कपड़े और जेवरातों की खरीदारी को काफी शुभ माना जाता है। इस दिन अपने पितरों को तर्पण (देवताओं, ऋषियों और पितरों को जलदान) और पिंडदान भी किया जाता है। वहीं, सामान्य दान भी किया जाता है, जो अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन किया गया कोई भी काम शुभ माना जाता है, जिससे ज़िंदगी में सफलता मिलती है।

जैन धर्म में अक्षय तृतीया का खास महत्व (Jain dharm mein Akshaya tritiya ka khas mahatva)

मान्यता है कि जैन धर्म के भगवान आदिनाथ ने समाज में सबसे पहले दान के महत्व को समझाया था। इसके बाद दान देने का प्रचलन शुरू हुआ। भगवान आदिनाथ राज-पाट छोड़कर जंगल में तपस्या करने के लिए निकल गए थे। जब वो शहर में निकले तो सभी लोग उन्हें सभी चीजें देने लगे, लेकिन लोगों को पता नहीं था कि वो दुनिया की मोह-माया को त्याग चुके हैं। ऐसा करते-करते उनको छह महीने बीत गए, लेकिन उन्हें खाना की प्राप्ति नहीं हुई। इसके बाद वो एक राजा के यहां गए, जिन्होंने उन्हें आहार ग्रहण कराया, जिसके बाद मुनिराज को आहार मिला। इसके बाद उन्होंने आहार दान देने की बात कही।

जैन धर्म को मानने वाले इस दिन आहार दान, ज्ञान दान और दवाओं का दान करते हैं। मान्यता है कि भगवान आदिनाथ ने ही दुनिया को असि-मसि-कृषि के बारे में बताया था। असि का मतलब होता तलवार चलाना, मसि का मतलब होता है स्याही से लिखना और कृषि का मतलब होता है खेती करना। भगवान आदिनाथ ने इन चीज़ों के बारे में उपदेश दिया, जिसका जैन धर्म को मानने वाले लोगों ने अनुसरण किया।

अक्षय तृतीया की कथा (Akshaya tritiya ki katha)

अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार धर्मदास नाम के एक व्यापारी थे। उनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं थी। इसके कारण वह हमेशा परिवार को चलाने के लिए परेशान और चिंतित रहते थे। इसके बाद भी वे बहुत ही धार्मिक व्यक्ति थे और दान करते रहते थे। एक बार उन्होंने कहीं अक्षय तृतीया के दिन दान किए जाने की बात सुनी, जिसका काफी महत्व था। इसके बाद वो हर साल अक्षय तृतीया के दिन गंगा नदी में स्नान करके जल से भरे घड़े, जौ, अनाज, गुड़ आदि दान करने लगे। यह देख उनकी पत्नी उन्हें रोकने की कोशिश की, क्योंकि उनकी पत्नी को लगता था कि सबकुछ दान कर देंगे, तो परिवार कैसे चलेगा।

पत्नी की बात सुनने के बाद भी धर्मदास दान करते रहे। वो वृद्ध होने पर भी अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करते रहे। अक्षय तृतीया पर यही दान-पुण्य के कारण वो अगले जन्म में कुशावती राजा हुए। कहा जाता है कि उनके धार्मिक आयोजनों में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महादेव वेष बदलकर शामिल हुआ करते थे। यही राजा फिर अगले जन्म में महान सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुए। इसलिए कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन दान-पुण्य करना चाहिए। इससे सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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