माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं और उसकी खासियत

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं में है देश के प्रति त्याग और समर्पण

आधुनिक काल के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) काव्य, संस्मरण, निबंध, नाटक और कहानी लिखने की कला में महारथी थे। हिंदी साहित्य में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने अपनी ज्यादातर रचनाएं, खड़ी बोली और हिंदी भाषा में लिखी हैं। उनके जीवन के साथ-साथ, उनकी प्रसिद्ध रचनाएं और उससे मिलने वाली सीख के बारे में जानने के लिए पढ़ें ये आर्टिकल।

माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) वो शख्सियत थे, जिनके नाम पर बने विश्वविद्यालय में पढ़कर आज भी युवा कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। इससे पहले उनकी रचनाओं के बारे में जानें, उनका जीवन परिचय जानना बेहद ज़रूरी है।
ओजपूर्ण भावनात्मक शैली में लिखने वाले माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) का जन्म 1889 को मध्यप्रदेश में हुआ। वहीं उनकी मृत्यु 1986 में हुई। उन्होंने अपने जीवन काल में प्रभा और कर्मवीर का संपादन भी किया। उनकी प्रमुख रचनाओं में नागार्जुन युद्ध, हिमकिरीटीनी, अमीर इरादे-गरीब इरादे, हिम तरंगिणी, समय के पांव, युगचरण, साहित्य के देवता, समर्पण, बीजुरी काजल आंज रही, मरण ज्वार, रेणु लो गूंजे धरा, मरण ज्वार प्रमुख हैं। साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें 1963 में पद्मभूषण, 1955 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1943 में देव पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

बचपन में उन्होंने बांग्ला, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती के साथ संस्कृत भाषा की शिक्षा हासिल की। देश को आजादी दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई और राष्ट्रीय आंदोलनों का हिस्सा भी रहें। उनके काव्य में आप देश के प्रति प्रेम, समर्पण का भाव, त्याग और बलिदान को महसूस कर सकते हैं।

‘पुष्प की अभिलाषा’ में है देश के प्रति प्रेम

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंद प्यारी को ललचाऊं
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ पर जानें वीर अनेक

कवि माखनलाल चतुर्वेदी स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा रहें। उनकी इस रचना में वीर रस है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ के ज़रिए उन्होंने युवाओं में देशभक्ति जगाने का काम किया। उनके इस काव्य में देशभक्ति की भावना झलकती है।

कवि इस काव्य के ज़रिए फूल की इच्छा को जता रहे हैं, जो कहते हैं कि मैं नहीं चाहता कि देवी के गहनों में मुझे पिरोया जाए, न ही मुझे दुल्हन के माला का हिस्सा बनना है। फूल ईश्वर को पुकारकर कहते हैं कि मैं नहीं चाहता कि राजाओं के मृत शरीर पर मुझे डाला जाए, न ही मैं चाहता हूं कि देवताओं के सिर पर चढ़कर घमंड करुं। फूल देश के प्रति प्यार को जताते हुए माली से कहता है, मुझे तुम उस रास्ते में गिरा देना, जहां से वीर जवान भारत मां की रक्षा करने के लिए और अपनी कुर्बानी देने के लिए गुज़रते हो।

‘जवानी’ के जरिए युवाओं में भरा जोश

प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी।
कौन कहता है कि तू विधवा हुई, खो आज पानी?
चल रही घड़ियाँ, चले नभ के सितारे, चल रही नदियाँ,
चले हिम-खण्ड प्यारे; चल रही है साँस,
फिर तू ठहर जाये? दो सदी पीछे कि तेरी लहर जाये?
पहन ले नर-मुंड-माला, उठ, स्वमुंड सुमेरु कर ले,
भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी:
प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!

ये पंक्तियां माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) के काव्य ‘जवानी’ से ली गई है। ‘जवानी’ कविता हिमकिरीटिनी काव्य संग्रह में है। इससे कवि देश के युवाओं में जोश भरते हुए उन्हें देश के लिए कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित करते हैं। कवि कहते हैं कि “युवाओं की पागल जवानी, तुम उत्साह और ताकत से भरे हुए हो। कौन कहता है कि तुमने अपनी सबसे कीमती चीज यानि ‘तेज’ (पति) को खो दिया है और तुम विधवा हो गए हो। मैं आज जहां भी देखता हूं, वहां तेज ही तेज है। समय नहीं रुका है, वो चल रहा है। तारे भी चल रहे हैं। नदियां भी बह रही हैं, पहाड़ के टुकड़े भी अपनी चोटियों से खिसक रहे हैं। जिंदा लोगों की सांस भी चल रही है… जब सब कुछ चल रहा है, ऐसे में ये कैसे हो सकता है कि तुम रुक जाओ? अगर तुम रुक गए तो तुम समय से पीछे चले जाओगे। यदि जवान लोग ही आलस करेंगे, तो देश की प्रगति रुक जाएगी और पीछे चली जाएगी।”

‘सिपाही’ में दिखता है देश के प्रति प्यार

“दे हथियार याकि मत दे तू, पर तू कर हुंकार।
ज्ञातों को मत, अज्ञातों को, तू इस बार पुकार।
बोल अरे सेनापति मेरे, मन की घुंडी खोल।
जल, थल, नभ, हिल-डुल जाने दे, तू किंचित मत डोल।
धीरज, रोग, प्रतिज्ञा चिंता, सपने बने तबाही।
कह ‘तैयार’! द्वार खुलने दे मै हूं एक सिपाही।”

माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) की ये पंक्तियां ‘सिपाही’ काव्य से ली गई हैं। कहा जाता है उस दौर में जब उन्होंने ये कविता लिखी, तो उन्हें राष्ट्र के लोगों को जगाने का श्रेय दिया गया। उनकी इस कविता में राष्ट्र के प्रति अपार प्यार दिखता है। इस कविता में उन्होंने एक सैनिक की तरह, अपने दिल की आवाज़ को दुनियावालों के सामने रखा है।

कवि इस रचना के ज़रिए कहते हैं कि “चाहे मुझे हथियार दो या न दो, लेकिन देश के लिए आगे आओ। जो लोग देश की वर्तमान स्थिति को जानते हैं सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि जो नहीं भी जानते हैं, उन्हें भी आजादी की इस लड़ाई में साथ लो। चाहे कोई भी विपदा क्यों न आए एक सिपाही की तरह तुम डटे रहो।”

‘प्यारे भारत देश’ में मातृभूमि का किया गुणगान

“वेदों से बलिदानी तक जो होड़ लगी,
प्रथम प्रभात किरण से हिय में ज्योत लगी।
उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक,
मानो आँसू आये बलि-मेहमानों तक।
सुख कर जग के क्लेश,
प्यारे भारत देश।”

अपनी कविता ‘प्यारे भारत देश’ में माखनलाल चतुर्वेदी ने देश का गुणगान किया है। इन पंक्तियों के ज़रिए वे देश की समृद्ध संस्कृति के बारे में, राजनीति के साथ उत्तर से लेकर दक्षिण तक के भौगोलिक विस्तार के बारे में बताया है। कवि इन पंक्तियों के ज़रिए बताते हैं कि “बलिदान देना हमारी संस्कृति में कोई नई बात नहीं है। वेद काल से ही संस्कृति की रक्षा के लिए लोग बलिदान देते आ रहे हैं। जिस प्रकार सुबह की पहली किरण एक उम्मीद लेकर आती है, उसी तरह देश के युवा भी रौशनी की तरह हैं। गंगा हमारे खेतों को सींच रही है।” वे प्यारे देशवासियो को कहते हैं कि “जितनी परेशानी है वो मिट जाए और आप सभी सुखी-सुखी जीवन-यापन करें।”

‘मुक्ति का द्वार’ में देशवासियों की मुक्ति की करते हैं कामना

अरे कंस के बंदी-गृह की,
उन्मादक किलकार।
तीस करोड़ बंदियों का भी
खुल जाने दे द्वार।

माखनलान चतुर्वेदी के काव्य में देशभक्ति की भावना के साथ भक्ति भावना भी है। उनकी रचनाओं में श्री कृष्ण के प्रति भक्ति झलकती है। जब हम उनकी लिखी कविताओं को पढ़ें, तो लगता है मानो भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति भावना और राष्ट्र के प्रति प्रेम, एक हो गया है। ऊपर लिखी पंक्तियों की बात करें, तो ये ‘मुक्ति का द्वार’ कविता से ली गई हैं। इसे कवि ने गुलाम भारत के समय में लिखा था। वहीं वे देश की जनता को गुलाम की तरह देखते हैं, जिसकी आबादी करीब 30 करोड़ है। इन गुलाम लोगों के आजाद होने की कामना वे प्रभु श्री कृष्ण से करते हैं

किताबों, कविताओं और लेखकों की रचनाओं को करीब से जानने के लिए सोलवेदा के किताबें सेक्शन पर पढ़ते रहें लेख।

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