ग्रामीण जीवन की एक सटीक तस्वीर

फणीश्वर नाथ “रेणु” की रचनाओं में दिखती है ग्रामीण जीवन की तस्वीर

फणीश्वर नाथ "रेणु" अपनी रचनाओं में आंचलिक शब्दों और मुहावरों का सहारा लेते हुए ग्रामीण जीवन का सजीवता से चित्रण किया है।

फणीश्वर नाथ “रेणु” हिंदी साहित्य के सबसे विरले रचानाकर थे। उनकी रचनाओं में जहां एक ओर आंचलिकता झलकती है, तो दूसरी ओर भारतीय ग्रामीण जीवन का दर्द भी दिखता है। उन्होंने अपनी रचनाओं से ग्रामीण समाज की संरचना को विश्व पटल पर रखा। फणीश्वर नाथ “रेणु” (Phanishwar Nath Renu) का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले (अब अररिया जिला) के हिंगना औराही गांव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक पढ़ाई फारबिसगंज के अलावा विराटनगर (नेपाल) में हुई। इसके बाद इन्होंने काशी विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी की।

इन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था, जिसकी वजह से इन्हें जेल भी जाना पड़ा था। इसके बाद ये नेपाल के राजतंत्र विरोधी आंदोलन का भी हिस्सा रहे। इन्होंने जेपी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मैला आंचल और परती परिकथा इनके उल्लेखनीय उपन्यास हैं। फणीश्वर नाथ “रेणु” लिखित मारे गए गुलफाम कहानी पर तीसरी कसम के नाम से फिल्म भी बनी, जो भारतीय सिनेमा में मिल का पत्थर साबित हुई। इन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। फणीश्वर नाथ “रेणु” ने अपनी रचनाओं में आंचलिक शब्दों और मुहावरों का सहारा लेते हुए ग्रामीण जीवन का सजीवता से चित्रण किया है। तो आइए हम आज इनकी रचनाओं को समझने के साथ-साथ उन रचनाओं से हमें क्या सीख मिलती है, वो जानते हैं।

मैला आंचल (Maila Aanchal)

मैला आंचल ग्रामीण जीवन का सबसे सटीक तस्वीर प्रस्तुत करता है। इसमें फणीश्वर नाथ “रेणु” ने अनेक समस्याओं का उठाया है। उन्होंने भूमि संबंधित समस्या, शोषण की समस्या, जमींदारी प्रथा, जातिभेद की समस्या, यौन समस्या, अंधविश्वास को लेकर लोगों के नजरिए को मैला आंचल में जगह दिया है। साथ ही उन्होंने इस उपन्यास के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान भी बताया है। उन्होंने आंचलिक शब्दों का उपयोग करते हुए मैला आंचल में हमें यब बताने का प्रयास किया है कि सामाजिक कुरीतियां किसी भी सभ्य समाज के लिए कितनी खतरनाक है और इससे कैसे बचा जा सकता है। उन्होंने अपने उपन्यास में समाज के सभी वर्गों की पीड़ा को स्थान दिया गया है।

फणीश्वर नाथ “रेणु” ने मैला आंचल के माध्यम से समाज को आइना दिखाया है, जो हकीकत क्या है और इनसे हम कैसे उबर सकते हैं, जिससे एक समतामुलक समाज को विकास हो सके। उन्होंने अपने उपन्यास में सभी वर्गों को बराबर जगह दिया है। मैला आंचल से हमें सामाजिक समरसता और ज़िंदगी जीने के तरीकों के बारे में सीख मिलती है। साथ ही कैसे अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखते हुए समाज में जीवन व्यतीत किया जा सकता है उसके बारे में भी बताया गया है।

परती परिकथा (Parti Parikatha)

परती परिकथा का केंद्र एक गांव है। इस गांव में कई जातियों के लोग रहते हैं। परती परिकथा में लोगों के सामाजिक स्तर और सरकारी योजनाओं को लेकर रचना है। इसको पढ़ने के बाद हमें ग्रामीण भारत का सही चित्र दिखता है। इसके माध्यम से ग्रामीण जीवन को समझने का एक नया नजरिया विकसित होता है। साथ ही भारत की सामाजिक संरचना को समझने का अवसर मिलता है। परती परिकथा के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों से कैसे लड़ा जा सकता है, इसकी सीख मिलती है। राजनीतिक समझ कैसे ज़िंदगी जीने के लिए ज़रूरी है, ये समझने को मिलता है। इससे सबसे बड़ी सीख ये मिलती है कि ग्रामीण जीवन कितना सरल और खुशहाली भरा होता है। यहां लोग छोटी-छोटी बातों में ही खुश होकर ज़िंदगी को बहुत ही उमंग के साथ व्यतीत करते हैं।

पंचलाइट (Panchlight)

पंचलाइट कहानी संग्रह ठुमरी में सग्रहित है। पंचलाइट के माध्यम से फणीश्वर नाथ “रेणु” ने ग्रामीण जीवन में एकजुटता की ताकत को दर्शाया है। पंचलाइट आंचलिक कहानियों में सबसे श्रेष्ठ कहानी मानी जाती है। पंचलाइट बिहार के ग्रामीण परिवेश के आसपास घूमती है। एक दिन मेले से गांव के लोग पेट्रोमैक्स खरीद कर लाते हैं। सभी उत्साहित होते हैं, लेकिन पेट्रोमैक्स कैसे जलाया जाए ये किसी को नहीं आता है। इसके बाद मुनरी अपनी सहेलियों के माध्यम से पंचों से कहलवाती है कि गोधन को पंचलाइट जलाने आता है, जिसके बाद पंच दूसरों गांव के लोगों को बुलाने पर होने वाली बेइज्जती से बचने के लिए गोधन को माफ कर देते हैं और उसका हुक्का-पानी बहाल कर दिया जाता है। इसके बाद गोधन पंचलाइट जलाता है पूरे गांव में रोशनी आती है। इस कहानी के माध्यम से फणीश्वर नाथ “रेणु” ने सामाजिक समरसता को दिखाने का प्रयास किया है। साथ ही गांव के लोगों के भोलापन को दर्शाया है। इससे हमें यही सीख मिलती है कि समाज में बिना गलत भावना के जीने से हमेशा खुशी मिलती है और समाज में सभी लोगों का बराबर महत्व होता है, कोई किसी से कम नहीं होता है। समाज में रहने का सभी को बराबर का हक है।

मारे गए गुलफाम (Mare Gaye Gulfam)

मारे गए गुलफाम मानवीय संवेदना और प्यार की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है। ये ऐसी कहानी थी जिसपर प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने तीसरी कसम के नाम से सिनेमा बना दी। यह फिल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। इस कहानी के माध्यम से ग्रामीण परिदृश्य को दर्शाने का काम किया है। यह कहानी प्रेम को अपने ही तरीके से परिभाषित करता है, जो आज के प्रेम से बिल्कुल अलग होता था। इसमें प्रेम के सादगीपूर्ण तरीकों को दर्शाया गया है। साथ ही प्रेम के महत्व को बहुत ही सरल भाषा में समझाया गया है। इस कहानी से हमें ज़िंदगी में प्रेम के महत्व को सीखने का अवसर मिलता है। साथ ही सादगीपूर्ण जीवन को जीते हुए एक आम सी ज़िंदगी में क्या-क्या खुशियां हम पा सकते हैं, ये समझने का मौका मिलता है।

फणीश्वर नाथ “रेणु” जैसे साहित्यकार या यूं कहें कि सामाजिक संरचना को परिभाषित करने वाले रचनाकर विरले ही होते हैं। फणीश्वर नाथ “रेणु” ने अपनी कहानियों और उपन्यास में ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था का जीवंत तस्वीर हमारे सामने रखा है। इनकी कहानियों के माध्यम से हमें भारत को अलग नजरिए से देखने का अवसर मिलता है। साथ ही छोटी-छोटी खुशियों के बीच ज़िंदगी को कितने सुंदर तरीके से सजाया जा सकता है, ये समझने का मौका मिलता है।

रेणु से अपनी कहानियों और उपन्यास के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर जहां प्रहार किया है वहीं गांव के लोगों के भोलापन को भी हम सभी के सामने लाया है। इनकी कहानियां समाज का सबसे सही चित्र प्रस्तुत करती है। इस लेख के माध्यम से हमने फणीश्वर नाथ “रेणु” की रचनाओं को जहां समझने का प्रयास किया, वहीं हिंदी साहित्य ने सामाजिक व्यवस्था को कैसे व्यवस्थित किया ये भी समझा। ऐसे और भी लेख पढ़ने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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