देवदत्त पटनायक

देवदत्त पटनायक की ‘माय गीता’

अपनी समझ और संवेदनाओं में ढालने वाली अपनी व्याख्या के लिए देवदत्त पटनायक जाने जाते हैं। इसके लिए पाठक को मूल पाठ के सभी अहम बिंदुओं को छूते हुए गीता की एक विषयगत समझ प्रदान करते हैं।

न जायते म्रियते वा कदाचि

नायं भूत्वा भविता वा न भूय: |

भगवद् गीता (Bhagwat Gita) के इस श्लोक का हिंदी में अनुवाद है कि “आत्मा न कभी पैदा होती है और न ही कभी मरती है। आत्मा अस्तित्व में न ही आई है, न ही आती है और न ही आएगी।” यह श्लोक हमें आत्मा के स्वभाव के बारे में बताता है।

इस विचार को सर्वोपरी रखते हुए मैंने देवदत्त पटनायक (Devdutt Pattanaik) की गीता को पढ़ना शुरू किया। पुस्तक (Pustak) कुरुक्षेत्र के मैदान में हुए युद्ध से शुरू होती है। कौरवों और पांडवों की सेनाएं पांडव राजकुमार अर्जुन से युद्ध की शुरुआत का बिगुल सुनने की प्रतीक्षा कर रही थी। वह युद्ध जो बाद में हिंदू पौराणिक कथाओं (Hindu mythology) में एक प्रमुख घटना ‘महाभारत’ बन जाएगा। अर्जुन जानते थे इस युद्ध में उनके द्वारा देखे गए किसी भी युद्ध से ज़्यादा जानें जाएंगी। अपने भाइयों, चाचाओं, शिक्षकों और दोस्तों की मृत्यु के अनुमान से घबराए हुए अर्जुन अपने मार्गदर्शक और सारथी कृष्ण (Krishna) से सलाह लेते हैं।

इस पर कृष्ण 18 अध्यायों में ब्रह्माण्ड के बारे में समय की शुरुआत से लेकर अंत तक की कहानी का वर्णन करते हैं। अर्जुन और कृष्ण के बीच के इस वार्तालाप को भगवद् गीता के रूप में जाना जाता है।

विभिन्न हिंदू संप्रदायों और मठों के विकास को समायोजित करने के लिए यह पवित्र पाठ अपने मूल स्वरूप से आंशिक रूप में कई परिवर्तनों से गुज़रा है। जिसे आज हम भगवद् गीता के रूप में जानते हैं, वह वैदिक दर्शन, पौराणिक ग्रंथों और मध्यकालीन धार्मिक अवधारणाओं का एक मिश्रण है।

अपनी व्याख्या में पटनायक पाठकों को मूल तत्व को सुरक्षित रखते हुए और सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करते हुए उन्हें अपनी समझ और संवेदनाओं में ढालकर गीता की विषयगत समझ प्रदान करते हैं। यह बात इस पुस्तक को ‘माय गीता’ नाम देने के देवदत्त पटनायक के फैसले का औचित्य साबित करती है।

लेखक गीता के प्रमुख सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से रखने में सफल रहे हैं, जो दार्शनिक रूप से भी सही है। हालांकि पटनायक का उद्देश्य केवल सिद्धांतों की व्याख्या करने तक ही सीमित नहीं है, वह पाठकों को उनकी आत्मा में गहराई से देखने और अपनी गीता बनाने का अधिकार देते हैं।

‘माय गीता’ के माध्यम से पटनायक यह संदेश देते हैं कि अंत होता ही नहीं है। यही भगवद् गीता का भी संदेश है। ब्रह्मांड जैसे लगातार विस्तार कर रहा है वैसे ही हमारे अंदर भी अपने जीवन का विस्तार करने की क्षमता है। यह वही क्षमता है जो कृष्ण ने अर्जुन में देखी थी। यह वही क्षमता है जो हम सब खुद में देखना चाहते हैं।

जिन व्यक्तियों को भगवद् गीता को पूरा पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे देवदत्त पटनायक की शैली और उनके अभिकथन से यह जान सकेंगे कि यह पुस्तक गीता का केवल एक संस्करण है। वहीं जिन पाठकों ने गीता के किसी भी संस्करण को नहीं पढ़ा है उन्हें शुरुआत करने के लिए इससे बेहतर संस्करण नहीं मिलेगा।

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