धर्मवीर भारती की 5 कविताएं

धर्मवीर भारती की ये 5 कविताएं प्यार जताने के लिए आज भी हैं परफेक्ट

धर्मवीर भारती रूमानी और भावुकता वाली कविताएं लिखते थे। उन्होंने ठंडा लोहा, कनुप्रिया, सात गीत वर्ष, देशांतर, सपना अभी भी, आद्यंत के माध्यम से अपनी लेखनी की ताकत दिखाई। उन्होंने अज्ञेय के संपादकीय में निकलने वाले सप्तक के प्रमुख कवि के रूप में अपनी उपस्थिति हिंदी साहित्य में दर्ज़ करवाई।

“रख दिए तुमने नज़र में बादलों को साधकर,
आज माथे पर सरल संगीत से निर्मित अधर,
आरती के दीपकों की झिलमिलाती छाँव में,
बाँसुरी रखी हुई ज्यों भागवत के पृष्ठ पर।”

ये लाइनें लिखी हैं धर्मवीर भारती ने। धर्मवीर भारती का जीवन परिचय आज भी कई लोगों के द्वारा सराहा जाता है। हिंदी के बड़े संपादक रहे, धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद में हुआ था। धर्मवीर भारती को हिंदी साहित्य में ताज़गी लाने वाले साहित्यकार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने काफी कम उम्र में ही काफी कुछ पढ़ लिया था। वो स्कूल से सीधे लाइब्रेरी जाते थे। उनका बचपन काफी गरीबी में बीता, इतनी गरीबी थी कि वह किसी लाइब्रेरी का सदस्य नहीं बन पा रहे थे। लेकिन, उनकी लगन देखकर इलाहाबाद की लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन ने उन्हें उन्हें अपने विश्वास पर पांच दिनों के लिए किताबें देने लगे।

धर्मवीर भारती ने रूमानी और भावुकता वाले कविताएं लिखते थे। उन्होंने ठंडा लोहा, कनुप्रिया, सात गीत वर्ष, देशांतर, सपना अभी भी, आद्यंत के माध्यम से अपनी लेखनी की ताकत दिखाई। उन्होंने अज्ञेय के संपादकीय में निकलने वाले सप्तक के प्रमुख कवि के रूप में अपनी उपस्थिति हिंदी साहित्य में दर्ज़ करवाई। कई आलोचकों ने उनकी रचनाओं को कैशोर्य भावुकता (लड़कपन की भावना) वाला कहा था। लेकिन, उन्होंने प्यार के साथ-साथ प्रकृति को लेकर भी बहुत सारी कविताएं लिखीं।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको धर्मवीर भारती से तो मिलवाएंगे ही। साथ ही साथ उनकी पांच ऐसी कविताओं से भी रूबरू करवाएंगे, जो आज भी प्यार जताने के लिए परफेक्ट हैं।

धर्मयुग पत्रिका के साथ गुज़रे धर्मवीर भारती के लम्हे (Dharmyug patrika ke sath guzre Dharamvir Bharati ke lamhe)

धर्मवीर भारती हिंदी साहित्य के जाने-पहचाने नाम हो गए थे। इसको देखते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया ने उन्हें अपनी पत्रिका के प्रधान संपादक बनने का प्रस्ताव दिया। इसे धर्मवीर भारती ने अस्वीकार कर दिया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था कि क्योंकि उनके सामने यह शर्त रखी गई थी कि धर्मवीर भारती टाइम्स ऑफ इंडिया में काम करते हुए अपना लेखन नहीं करेंगे। उनका मानना था कि लेखक को निजी रचनात्मक लेखन से दूर नहीं किया जा सकता है। जब इस शर्त को खारिज कर दिया गया, तो वो संपादक बनने के लिए राजी हुए। धर्मवीर भारती 1960 से 1987 तक धर्मयुग के संपादक रहे। उस दौरान उन्होंने धर्मयुग को साहित्य की बेस्ट पत्रिका बना दिया था।

धर्मवीर भारती की 5 कविताएं, जो प्यार जताने के लिए हैं परफेक्ट (Dharamvir Bharati ki 5 kavitayein, Jo pyar jatane ke liye hain perfect)

देश में कई महान कवि हुए। कुछ की कविताओं के लिए तो पढ़ने वाले हर वक्त बेचैन रहते थे। धर्मवीर भारती की अद्भुत कविताओं के दीवाने सिर्फ पहले ही नहीं थे बल्कि आज भी हैं। अगर प्यार जताने के लिए आप कोई प्यारी सी कविता की तलाश में हैं तो महान लेखक धर्मवीर भारती की कविताओं के अंश आपके काम आएंगे।

तुम कितनी सुंदर लगती हो से कुछ पंक्तियां

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास !
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में, सूने खंडहर के आसपास
मदभरी चांदनी जगती हो!
मुंह पर ढक लेती हो आंचल,
ज्यों डूब रहे रवि पर बादल।

धर्मवीर भारती ने इस कविता में प्यार की बात की है। उन्होंने समझाने की कोशिश की है कि उदास होने के बाद भी वह कितनी सुंदर लगती है। उन्होंने इस कविता के माध्यम से प्रेम के दृश्य को रेखांकित करने का प्रयास किया है।

गुनाह का गीत की कुछ लाइनें

अगर मैंने किसी के होठ के पाटल कभी चूमे
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे
महज इससे किसी का प्यार मुझको पाप कैसे हो?
महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?

धर्मवीर भारती सुंदरता के प्रति अपने आकर्षण को कभी छिपाते नहीं है। वो खुले तौर पर अपनी कविता में इसका इज़हार करते हैं। कविता के इन लाइनों में उन्होंने सुंदरता की बात करते हुए अपने आकर्षण का वर्णन किया है।

कनुप्रिया की प्यार भरी पंक्तियां

रात गहरा आयी है
और तुम चले गये हो
और मैं कितनी देर तक बांह से
उसी आम्र डाली को घेरे चुपचाप रोती रही हूं
जिस पर टिक कर तुम मेरी प्रतीक्षा करते हो…

इस कविता में धर्मवीर भारती ने इंतज़ार की बातों को समेटा है। उन्होंने प्रेमी-प्रमिका के बिछड़ने पर होने वाले कष्ट को अपने शब्दों में पिरोया है।

ठंडा लोहा से कुछ चुनिंदा पंक्तियां

अधखुल ये, व्याकुल ये दो कंपते ओठ
रह रह दहकें जैसे फूल दो पलाश के
कटावदार
टेसू कैसे फूले चंदन की डार?
बन बन में उड़ी महक आग की
ओ मेरे प्यार?

इस कविता में धर्मवीर भारती ने होंठों के गुलाबी रंग की बात नहीं की है। उन्होंने इस कविता बताया है कि जब होंठों में दहक होता है, तो वो गुलाबी नहीं दिखता है बल्कि वो दो पलाश के फूल के तरह के होते हैं। इसमें उन्होंने प्रणय की विह्वलता, मिलन की आग, दहकता पलाश और आग की महक का उदाहरण देते हुए प्रेम की बात की है।

बरसाती झोंका का कवितांश

चूमता आषाढ़ की पहली घटाओं को,
झूमता आता मलय का एक झोंका सर्द;
छेड़ता मन की मुंदी मासूम कलियों को
और खूशबू-सा बिखर जाता हृदय का दर्द!

इस कविता में धर्मवीर भारती ने प्रेम की बात बारिश के साथ जोड़कर की है। उन्होंने बारिश की बात करते हुए प्रेम का साक्षात्कार दिया है। बताया है कि कैसे बारिश होने पर प्यार और भी अंदरूनी रुह तक को कंपा देता है।

ऊपर दिए गए धर्मवीर भारती की कविताओं में प्यार आपको आसानी से महसूस हुआ होगा। इसके अलावा भी उनकी कई रचनाएं आप पढ़ सकते हैं। उनका सबसे मशहूर उपन्यास गुनाहों का देवता है। इसके अलावा ‘सूरज का सातवां घोड़ा’, ‘ग्यारह सपनों का देश’ भी उनके फेमस उपन्यास हैं।

इस आर्टिकल में हमने धर्मवीर भारती की लेखनी और उनकी पांच कविताओं की जानकारी दी। यह पढ़कर आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। हिंदी साहित्य से जुड़ी इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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