एक नज़र अमृता प्रीतम की सदाबहार रचनाओं पर

एक नज़र अमृता प्रीतम की सदाबहार रचनाओं पर

अमृता प्रीतम ने अपनी रचनाओं में एक स्त्री के मनोभावों को बहुत सुंदर और खुले ढंग से सबके सामने रखा है। उन्होंने अपने पूरे जीवन में सौ से भी ज़्यादा किताबें लिखीं और उनके साहित्य को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ व ‘पद्मश्री’ जैसे बड़े सम्मान भी मिल चुके हैं।

अमृता प्रीतम बीसवीं सदी की जानी मानी लेखिका रहीं हैं, जिन्होंने पंजाब की गलियों से निकल कर पूरे हिन्दुस्तान में अपनी कहानियों और कविताओं का जादू बिखेरा। अमृता प्रीतम की रचनाएं केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशी दिलों में भी घर कर चुकी हैं। अमृता की रचनाएं हिन्दी और अंग्रेजी के साथ-साथ अन्य कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएं पूरी तरह भावनाओं और प्यार पर लिखी गई हैं।

अमृता प्रीतम ने अपनी रचनाओं में एक स्त्री के मनोभावों को बहुत सुंदर और खुले ढंग से सबके सामने रखा है। उन्होंने अपने पूरे जीवन में सौ से भी ज़्यादा किताबें लिखीं और उनके साहित्य को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ और ‘पद्मश्री’ जैसे बड़े सम्मान भी मिल चुके हैं। अपनी रचनाओं के लिए उन्हें पाठकों की जितनी प्रशंसा मिली, उतना ही शुरूआत में हताशा भी हाथ लगी, क्योंकि अमृता प्रीतम पंजाब के लाहौर से थी और उस वक्त के समाज को एक लड़की का हर विषय पर इतना खुलकर लिखना पसंद नहीं था। पर अमृता प्रीतम ने कभी हार नहीं मानी और हमेशा साहित्य के योगदान में लगी रहीं। उनका यही योगदान तो आज हम सब के सामने उनकी रचनाओं के रूप में हाज़िर है।

तो चलिए फिर हम भी सोलवेदा के साथ अमृता प्रीतम की कुछ सदाबहार रचनाओं (Amrita Pritam ki rachnayein) के बारे में जानते हैं।

मैं तुझे फिर मिलूंगी (Main tujhe fir milungi)

अमृता प्रीतम की बहुत-सी कविताओं में से एक सदाबहार कविता है, ‘मैं तुझे फिर मिलूंगी…!’ यूं तो उन्होंने बहुत-सी कविताएं लिखीं और कहीं, जिन्हें पाठकों ने खूब सराहा। पर अमृता प्रीतम की ये कविता तो सदियों से प्रेमिकाओं की ज़ुबान पर बनी हुई है। हालांकि, अमृता ने ये शब्द अपने प्रेमी साहिर लुधियानवी साहब के लिए कहे थे, पर इस कविता को पढ़ने वाले हर व्यक्ति को ये कविता बहुत अपनी-सी लगती है। तो चलिए पढ़ते हैं ये खूबसूरत सी कविता।

मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं,
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे कैनवास पर उतरुंगी

या तेरे कैनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूंगी
मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं

एक स्त्री के मनोभावों से लिखी पिंजर (Ek stree ke manobhavon se likhi Pinjar)

पिंजर 1950 में लिखा गया एक उपन्यास है, जिसमें हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे से पहले की एक कहानी है। इस उपन्यास पर हिंदी सिनेमा में एक फिल्म भी बन चुकी है। पिंजर कहानी भले ही काल्पनिक हो, पर इसकी घटनाएं और मनोभाव ऐसे लिखे गए हैं कि कोई भी इस कहानी की वास्तविकता को नहीं ठुकरा सकता। उपन्यास की नायिका ‘पूरो’ नाम की एक स्त्री है। कहानी की शुरुआत उसके बचपन से होती है। चौदह वर्ष की उम्र में पूरो का विवाह तय होता है और उसी समय पूरो की मां अपने छटवे बच्चे को जन्म देने वाली होती है।

कहानी में उस समय की बहुत-सी प्रथाओं का अमृता ने बहुत सुंदर तरीके से ज़िक्र किया है, पर किसी भी घटना को सही या गलत नहीं ठहराया है। पूरो बड़ी हो रही है, जिससे उसके मन में अपने होने वाले पति के लिए प्यार पनप रहा है, पर इसी दौरान एक दिन मौका देख कर, उसके ही गांव का एक चौबीस वर्षीय नवयुवक रसीद पूरो को किसी पुरानी खानदानी दुश्मनी के चलते उठा ले जाता है। रसीद पूरो को गांव से दूर एक घर में पंद्रह दिन तक कैद रखता है और फिर पंद्रहवें दिन रसीद पूरो के लिए एक लाल शादी का जोड़ा लाकर, उससे निकाह करने को कहता है। पर पूरो वहां से भाग घर अपने घर चली जाती है, जहां उसके मां-बाप उसे वापस घर में लेने से इंकार कर देते हैं।

इस घटना को मद्देनज़र रखते हुए, अमृता प्रीतम ने एक स्त्री होने और उसके दिल पर बीतने वाले दर्द का बहुत मार्मिक वर्णन किया है। अपने ही परिवार द्वारा ठुकरा दिए जाने के बाद बेचारी पूरो रसीद से निकाह कर लेती है। पर कहानी सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती। इसके बाद पूरो और रसीद की ज़िंदगी में बहुत से हादसे होते हैं। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से जुड़ी कई घटनाएं घटती हैं, जिन्हें आप पिंजर उपन्यास को पढ़कर ही जान सकते हैं। पिंजर अमृता प्रीतम के साहित्य की सदाबहार रचना है।

‘वारिस शाह’ से मशहूर हुईं अमृता (‘Varis shah’ se mashhoor hui Amrita)

अमृता प्रीतम की ‘आई से अनटू वारिस शाह’ उनकी पंजाबी कविता ‘अज्जखान वारिस शाह नून’ का हिन्दी अनुवाद है। यह एक साहित्यिक रचना है, जिसे अमृता ने बंटवारे का दर्द बयां करने के लिए लिखा। यह कविता हमें बंटवारे के समय लोगों की दुर्दशा की याद दिलाती है। अमृता प्रीतम उस समय में मानव जाति की मदद करने के लिए, अपनी प्रेम त्रासदी रचना ‘हीर रांझा’ के लिए मशहूर पंजाबी कवि, वारिस शाह की भावना को उजागर करती हैं। वह प्यार का प्रचार करना चाहती थी, जैसे वारिस शाह ने हीर और रांझा की प्रेम कहानी के साथ किया था, तभी तो अमृता ने अपने पिता की इस सोच को भी ठुकरा दिया, जब उन्होंने अमृता से सिर्फ धार्मिक रचना लिखने को कहा था। वारिस शाह अमृता की एक ऐसी रचना है, जिसने बहुत-से पाठकों के बीच अमृता प्रीतम की एक अलग पहचान बना दी और उस समय के बहुत से लोगों को इस रचना पर विरोध करने के लिए भी मजबूर कर दिया था। जब आप यह कविता पढ़ेंगे तो आपको लगेगा कि ये कविता सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है बल्कि इसमें पूरी तरह डूबा जा सकता है। तो चलिए पढ़ते हैं, इस कविता के कुछ अंश।

आज वारिस शाह से कहती हूं –
अपनी क़ब्र में से बोलो!
और इश्क़ की किताब का
कोई नया वर्क़ खोलो!
पंजाब की एक बेटी रोयी थी,

तूने एक लम्बी दास्तान लिखी,
आज लाखों बेटियां रो रही हैं
वारिस शाह! तुम से कह रही हैं:

ऐ दर्दमन्दों के दोस्त,
पंजाब की हालत देखो
चौपाल लाशों से अटा पड़ा है,
चनाब लहू से भर गया है…

‘रसीदी टिकट’ है अमृता की कहानी (‘Rasidi ticket’ hai Amrita ki kahani)

अपने उपन्यास रसीदी टिकट में अमृता ने अपनी जीवनी लिखी है। जिसमें उनके जीवन के बहुत से हिस्से और बहुत से किस्से, उन्होंने कागज़ पर उतार दिए हैं। अमृता पंजाब के लाहौर में जन्मी थी, बेहद कम उम्र में उनकी शादी प्रीतम सिंह नाम के एक व्यक्ति से हुई और शादी के कुछ सालों बाद ही वो प्रीतम सिंह से अलग हो गईं। साहित्य की वजह से वो मशहूर शायर साहिर लुधियानवी साहब से मिलीं। दोनों की आंखें चार हुईं, पर दोनों में से किसी ने भी एक-दूसरे से कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं किया। साहिर लुधियानवी सिर्फ एक शायर ही नहीं, बल्कि हिन्दी सिनेमा में भी अपना अच्छा नाम बना चुके थे और उधर अमृता प्रीतम भी हर पाठक पर अपना जादू बिखेर चुकी थीं। इसके बावजूद उन्होंने कभी अपने दिलों का हाल ज़ाहिर नहीं किया।

एक जगह अमृता लिखतीं हैं कि जब भी साहिर उनसे मिलने घर पर आते थे, तो सिगरेट पीते थे और आधी सिगरेट पीने के बाद उसे राखदान में डाल देते थे। साहिर के जाने के बाद अमृता उन सिगरेटों को निकाल कर फिर से जला लेती थीं और उन्हें पीने की कोशिश करती थीं। वो कहती हैं, ऐसा करना उन्हें साहिर से मिलने का एहसास देता था, पर इससे उन्हें सिगरेट की भयंकर लत भी लग गई थी।

अमृता ने एक जगह कहा है कि साहिर ने उन्हें एक कागज़ पर एक नज़्म लिख कर दी, जिस नज़्म को अमृता ने किताब में नहीं लिखा, क्योंकि शायद वो नज़्म सिर्फ अमृता के लिए थी। अमृता ने इस आत्मकथा में साहिर की मोहब्बत के साथ इमरोज़ की दोस्ती के बारे में भी लिखा है। इमरोज़ अमृता के लिए एक दोस्त, एक कंधा और एक साथी थे। अमृता के जीवन का बहुत लम्बा वक्त उन्होंने इमरोज़ के साथ बिताया और उस वक्त में भी वो साहिर लुधियानवी को कभी नहीं भूल पाईं।

अमृता की जीवनी एक लव ट्राएंगल है, जिसको पूरा जानने के लिए तो आपको खुद रसीदी टिकट उपन्यास पढ़ना पड़ेगा। अमृता के जीवन और प्रेम के भावों का अमृता ने इतनी बारीकी और सुंदरता से वर्णन किया है कि कोई भी पाठक इस जीवनी में खुद को पूरी तरह डूबा हुआ पाता है।

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