अवसाद से मुक्ति, अवसाद से मुक्ति के उपाय

अवसाद से मुक्ति

कभी-कभी, सिर्फ एक सोच में बदलाव से सब कुछ मुमकिन हो जाता है।

वह बड़ा उदास था। काम से उदास, रिश्तों से उदास और सामान्यतः पूरे जीवन से उदास था। हर चीज़ गड़बड़ और अधोगामी लग रही थी। लोग कहते थे कि यह वक्त भी गुज़र जाएगा। इस तरह की सांत्वना और प्रोत्साहन को अब वह सुनना नहीं चाहता था। उसे बुरा समय समाप्त होता नहीं दिख रहा था। जब हर चीज़ अस्त-व्यस्त थी तब केवल जिस एकमात्र चीज़ से उसे तसल्ली मिलती थी, वह थी उसकी निकट आती हुई मृत्यु। जिस स्त्री के साथ वह 11 वर्षों से रह रहा था, उससे उसके रिश्ते उन परिस्थितियों के प्रहारों से क्षत-विक्षत हो चुके थे जो परिस्थितियां उसके नियंत्रण से पूरी तरह परे प्रतीत होती थी। जब वे अपनी इन परिस्थितियों पर विचार विमर्श और उनका विश्लेषण करते तो उनके समाधान कभी समाप्त न होने वाले फंदों की तरह हाथ से निकले जाते थे।

उनके काम से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी। गतिरोध भरे कार्यों से उनकी ज़िंदगी (Zindgi) प्रभावित हो रही थी, कुछ चिकित्सीय परीक्षण (Clinical trials) जो उनके लिए खुशियां नहीं ला पा रहे थे और अगर यह काफी नहीं था तो सिर्फ लड़ना ही बचा था। वह अक्सर सोचता था कि केवल लेना ही तो प्यार नहीं है। जब वह अपने यह विचार उससे साझा करता था तो वह आग बबूला हो जाती थी और उसे इस बात पर बहुत आश्चर्य होता था। खैर, यदि यह पर्याप्त होता तो हम इतने दुखी क्यों होते? हम दोनों के बीच प्रेम में कोई कमी तो है नहीं।

एक दिन सुबह बुरी बहस के बाद जब वह काम के लिए जाने लगा तो वह बड़ी दुख भरी और असहाय नज़र से उसे जाते हुए देखती रही। उसने निष्कर्ष निकाला कि यही वह कारण है। इस कहावती सुरंग के दूसरे छोर पर कोई प्रकाश की किरण न थी। इसलिए उसने उसे ज़िंदगी के इस प्रमुख निर्णय को साझा करने के लिए एक संदेश भेजने का निश्चय किया। एक किनारे खड़े होकर, व्यग्रतापूर्वक जैसे ही वह ‘एंटर’ का बटन दबाने लगा तभी उसने देखा कि सुबह का आसमान बादलों से भरा है। मंद-मंद पवन बह रही थी। शांत सड़क पर पंक्तिबद्ध खड़े हुए, हरे-भरे, खुशियों से भरे पेड़ों पर पत्तियां खुशी से सरसराती हुई प्रतीत हो रही थी। आज शुक्रवार की सुबह आम दिनों की अपेक्षा अधिक शांत थी। हमेशा रहने वाला गाड़ियों की आवाजाही का शोर भी आज नदारद था।

सप्ताहांत का दिन न होने पर भी आज का दिन कितना शांत था? वाह, एक लंबा सप्ताहांत! उसे हवा ताज़ा महसूस होने लगी। उसने रेडियो चालू कर दिया। जो गाना बज रहा था वह उसके बचपन की पसंद का गाना था। वह खुद को कार से बाहर आने से न रोक पाया। वह नाचने को लगभग तैयार था। हां, लगभग तैयार। जैसे ही प्रातःकाल 8 बजे की सूर्य की किरणों की गर्माहट को उसने अपने माथे पर महसूस किया, वह मुस्कुरा उठा। यह गर्म, अस्पष्ट, धुंधली-सी अनुभूति क्या है? मुझे यह क्या हो रहा है? खुशी! उसी क्षण वह खुश हो उठा।

उसने अपना फोन उठाया। उसे एक संदेश भेजा, जिसमें उसने लिखा, “सब कुछ बर्बाद नहीं हुआ है। अभी तक कुछ भी नहीं खोया है। यदि जीवन इतना सुंदर है तो हमें इसके सौंदर्य का अनुभव ज़रूर करना चाहिए। चलो, हम भी जीवन में कुछ करते हैं।”

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