कैसे पूरी हो शांति की तलाश

कैसे पूरी हो शांति की तलाश?

मनुष्य से लेकर जानवर और पेड़-पौधों तक सभी को शांति अति प्रिय लगती है।

ऋषि, मुनियों ने प्रकृति के शांत वातावरण के बीच आश्रमों में रहकर, त्याग और तपस्या द्वारा मानव कल्याण के अनेक मिसाल कायम किए हैं। वैज्ञानिकों ने शांति में डूबकर, भौतिक सुखों के लिए अनेक खोजें की हैं। शांति सबको चाहिए और आज भी शांति की तलाश जारी है।

शांति प्राप्ति के लिए शांति सम्मेलन किए जा रहे हैं। शांति पर नोबेल पुरस्कार दिए जा रहे हैं, लेकिन शांति की कमी फिर भी महसूस हो रही है। अल्पकाल के लिए शांति प्राप्त हो भी जाती है, लेकिन स्थायी नहीं रह पाती क्योंकि शांति का दुश्मन है देह अभिमान और इससे जुड़े काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि विकार। शांति हमारी खोयी है क्योंकि हमारे में देह होने का भान पक्का हो गया है। शांति का निवास देह में नहीं, बल्कि आत्मा में है। शांति आत्मा का स्वधर्म है। शांति एक शक्ति है, इसका अनुभव करने के लिए, हम देह नहीं बल्कि देह को चलाने वाली चैतन्य अविनाशी आत्मा हैं, यह पाठ पक्का करना है। आत्मा जन्म-मरण के चक्कर में सतो, रजो और अन्त में जब तमो अवस्था से गुजरती है, तो निज स्वरूप को भूल, देह अभिमान के वशीभूत हो अपने अंदर की शांति को अनुभव नहीं कर पाती। इस पर एक कहानी है कि रानी के गले में हार था और वो उसे बाहर ढूंढ़ रही थी। मनुष्य आत्माओं की भी यही स्थिति है। शांति आत्मा का स्वधर्म होते हुए भी उसे बाहर पाने का प्रयास जारी है, जो कि व्यर्थ है। अशांति से मनुष्य तब तक छूट नहीं सकते जब तक कि पांच विकारों के कर्मबंधन से नहीं छूटे हैं। अब सवाल है, इस कर्मबंधन से छुटकारा दिलाने वाला कौन है? कोई भी मनुष्यात्मा, किसी भी मनुष्यात्मा को कर्मबंधन से छुटकारा दिला नहीं सकती। कर्मबंधन का हिसाब-किताब तोड़ने वाले सिर्फ एक परमात्मा हैं। वे अवतरित होकर ज्ञान और योगबल से इस कर्मबंधन से छुड़ाते हैं, इसलिए ही उन्हें शांतिदाता कहा जाता है। अविनाशी शांति प्राप्ति के स्त्रोत हैं, शांति के सागर निराकार परमपिता परमात्मा शिव। शांतिधाम उनका निवास स्थान है।

शांति के सागर से शांति प्राप्त करने का आसान व सही तरीका है नियमित राजयोग का अभ्यास। राजयोग के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम शांत-एकांत स्थान चुनिए। फिर स्वयं को आत्मस्वरूप में स्थित करते हुए भृकुटि में केन्द्रित हो जाइए। देह, देह के संबंध और पदार्थ विस्मृत कर परलोक की यात्रा पर मन को ले चलिए। परलोक अर्थात् शांतिधाम में पहुंचकर वहां ज्योतिस्वरूप परमपिता को अंदर के नेत्र से निहारिए। उनके सामिप्य से शांति की शक्ति निज आत्मा में भर लीजिए। बार-बार इस प्रकार का अभ्यास करते रहिए।

इस अभ्यास द्वारा शांति की इतनी शक्ति आत्मा को प्राप्त हो जाती है कि साधक अपने घर-परिवार के साथ-साथ पूरे विश्व को शांति का योगदान दे सकता है। शांति की शक्ति ईश्वरीय देन होने के कारण परम पवित्र है, इसलिए अपवित्रता अर्थात् 5 विकार जहां प्रवेश हैं वहां शांति कायम नहीं हो सकती। माना भी जाता है कि पवित्रता सुख-शांति की जननी है। विज्ञान की शक्ति आराम देती है, लेकिन हाहाकार भी मचा देती है, परंतु शांति की शक्ति सिर्फ आराम ही देती है।

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